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औद्योगिक नगरी के रूप में विख्यात टंडवा के आम जनमानस की जिन्दगी कफ़न से कीमत तक में सिमटकर रह गई है। यहां पर संचालित मगध और आम्रपाली के आलावे पिपरवार और चट्टी बारियातू कोल खनन क्षेत्र के हजारों वाहनों ने पिछले एक दशक में करीब बारह सौ से अधिक यहां के
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देश जिस कोयले से रौशन उत्पादन वाली जगह अंधेरा
टंडवा के कोयले से भले ही देश रौशन होता हो और बड़ी-बड़ी कम्पनियो व ट्रांस्पोर्टरों का विकास होता हो,पर यहां के आम जनमानस के लिए इसी कोयले से विनाश की पटकथा लिखी जा रही है। एक ओर जहां बड़ी-बड़ी कंपनियों और कोयले के ट्रांसपोर्ट में लगे ट्रांसपोर्टर लाखों रुपए रोजाना छाप रहे हैं वहीं दूसरी ओर दो जून की रोटी के लिए भागते-दौड़ते आम गरीब के लिए बने आम सड़क पर कोल वाहनों ने कब्जा जमा लिया है। जिस पर प्रगति,जय मां अम्बे,आरकेटीसी व नक्कास सहित दर्जनो कम्पनियों के वाहनों का कब्जा है। जिससे उड़ने वाले धूल-गर्दे को फांकने के साथ यहां के आम लोग कोल वाहनों के पहिए में पिसकर जान गवां रहे हैं।
पहले धूल से परेशान अब मौत का खतरा
पहले तो यहां के मूलवासी कोयले के डस्ट से परेशान थे लेकिन अब इसका साथ एनटीपीसी ने भी दे दिया है। एनटीपीसी मे रोजाना 20-25 हजार टन कोयले की खपत है। जिससे निकलने वाले राख से आस-पास का इलाके के लोग परेशान हैं। चिमनी से उड़ने वाले राख के की मोटी परत आसपास के गांव के घरों के छतो और पेड़-पौधों में सफेद चादर की तरह लिपट गई है। एनटीपीसी से प्रभावित टंडवा, गाड़ीलौग, कामता, नईपारम व राहम सहित कई गांव के लोग गंभीर बिमारियो का शिकार रहो रहे हैं। यहां पर निवास करने वाले लोगों का कहना है कि कोरोना जैसी महामारी से भी खतरनाक एनटीपीसी से निकलने वाले राख की बदबू और उससे होने वाली बीमारी है। लोगों ने बताया कि हम सभी लोग नरक की जिंदगी बिताने को मजबूर है लेकिन इस पर ना तो जिला प्रशासन का ध्यान है और ना ही वोट लेकर चुनाव जितने वाले विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों का।
ना बनी मुआवजा नीति और ना ही लगी नो एंट्री
कोल वाहनों से लगातार हो रही दुर्घटनाएं और दुर्घटनाओं में हो रही बेगुनाहों की मौतों को लेकर मुआवजा नीति बनाना जिला प्रशासन के साथ-साथ यहां के जनप्रतिनिधियों के लिए भी एक चुनौती बनकर रह गई है। मुआवजा नीति नहीं बने होने के कारण हर एक हादसे के बाद मृतक की कीमत तय की जाती है। जिसको लेकर कभी घंटों तक सड़क जाम रहता है तो कभी कई दिनों तक। वहीं हादसों पर विराम लगाने के लिए टंडवा-सिमरिया मुख्य पथ पर नो एंट्री भी लगाना जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के लिए चुनौती बनी है। हर हादसे के बाद मुआवजा नीति और नो एंट्री लगाने की मांग उठती है। लेकिन सौदा तय होने के बाद न तो कोई जनप्रतिनिधि इस पर ध्यान देते हैं और ना ही जिला प्रशासन के लोग। हर हादसे के बाद आम ग्रामीण वोट देकर जीतने वाले जनप्रतिनिधियों पर उम्मीद की निगाह से देखते हैं, लेकिन अब तक यह मुद्दा हर हादसे के बाद उठता ही रहा है।
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