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जिले के प्रसिद्ध धजरई हनुमान मंदिर में साकेत महोत्सव चल रहा है। शनिवार रात कथा के तीसरे दिन निर्माेही अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष और धीर समीर आश्रम वृंदावन के महंत मदनमोहन दास महाराज ने मनु और शतरूपा की कथा प्रसंग का वर्णन किया।
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ध्रुव महाराज की कथा सुनाई
उन्होंने कहा कि मनु शतरूपा के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद था। राजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं। एक का नाम सुरुचि और दूसरी का नाम सुनीति था। राजा सुरुचि को अधिक प्यार करते थे। उनके पुत्र का नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था।
बालक ध्रुव एक बार पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगता है, लेकिन सुरुचि उसे पिता की गोद में बैठने नहीं देती है। ध्रुव रोता हुआ मां सुनीति को सारी बात बताता है। मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह ध्रुव को भगवान की शरण में जाने को कहती हैं।
पांच वर्ष का बालक ध्रुव राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चला जाता है। नारद जी रास्ते में मिलते हैं और ध्रुव को समझाते हैं कि मैं तुम्हें पिता की गोद में बैठाउँगा, लेकिन ध्रुव ने कहा कि पिता की नहीं अब परम पिता की गोद में बैठना है।
कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न होकर उसे वरदान देते हैं। इसके बाद महाराज ने कपिल चरित्र, सती चरित्र, जड़ भरत चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है।
बच्चों को धर्म की शिक्षा जरूरी
कथा में महाराज ने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन में दिया जाना चाहिए। ताकि जीवन भर उन्हें उसका स्मरण करता है। अच्छे संस्कारों के कारण ही भक्त ध्रुव को पांच वर्ष की आयु में भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ।
जीवन में विवेक के साथ काम करें
कथा के दौरान उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। सत्संग में वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है।
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