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इंडो-पाक बॉर्डर के गांवों में नल का पानी पहुंचा तो महिलाओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महिलाओं ने न केवल मंगल गीत गाए बल्कि नल की मंगल आरती भी की।
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शुभ अवसर पर गाए जाने वाले “बधावा’ गीत गाए। नल को माला पहनकर स्वागत किया गया। यह नजारा बाड़मेर जिले के गडरारोड उपखंड ढगारी गांव का है।
इस गांव के आसपास न तो पक्की सड़क है और न कोई बिजली का कोई स्थायी समाधान। आजादी के बाद से मूलभूत सुविधाओं के लिए यहां के लोग संघर्ष कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बचपन में जब किताबों में न से नल पढ़ाया जाता था। तब समझ नहीं आता था कि नल होता क्या है क्योंकि गांव के लोगों ने कभी नल देखा ही नहीं था। अकाल व सूखे के चलते पलायन यहां आम बता थी।
अब जल जीवन मिशन के लिए देश के सर्वाधिक चुनौती वाले इलाकों में से एक ढगारी गांव में पानी पहुंचना एक सपने से कम नहीं है।
सरहदी जिले बाड़मेर के बॉर्डर के गांवों में एक-एक बूंद के लिए लोग तरसते थे। बरसाती पानी के सहारे पूरा साल निकालते थे। गर्मियों में सुबह उठने के साथ सोने तक पानी के लिए संघर्ष करते थे। खारे और उच्च क्लोराइड की मात्रा वाले पानी मिलता था।
पानी ऊंटों पर बेरियों से लाया जाता था। 150 घरों की आबादी वाले इस ढगारी गांव में पानी पहुंचना एक सपने से कम नहीं था। बॉर्डर के गांवों में जल जीवन मिशन स्कीम से 2023 में पाइल जलप्रदाय योजना ढगारी की शुरुआत की गई थी।
बॉर्डर के गांव पहुंचा पानी, ग्रामीणों के चेहरे पर छाई खुशी।
ग्रामीण जगदीश प्रसाद का कहना है कि एक वक्त था यहां पर पानी नहीं था। उसके बाद बेरियां बनाई गई। इसके बाद होदीयां बनाई लेकिन पानी कभी-कभार ही आया। अब बीते दो सालों से पानी नहीं आ रहा है। नर्मदा नहर की टंकी बनी हुई है।
अब घर-घर नल हो गए और पानी भी आना शुरू हो गया है। पहली-दूसरी क्लास में न से नल पढ़ते थे। लेकिन इस बारे में समझते नहीं थे। नल चीज क्या है। अब हमारे घर पर नल कनेक्शन हो गया। नर्मदा नहर का मिठा पानी आ जाता है।
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग बाड़मेर के अधीक्षण अभियंता विपिन जैन के मुताबिक इस गांव में जितने चुनौती पूर्ण हालात थे। विभाग ने उन चुनौतियों को ही अपनी ताकत बनकर काम किया गया।
विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों, पानी की नगण्यता,पक्की सड़क का अभाव,संसाधनों की कमी पर कड़ी मेहनत, सामूहिक प्रयास, ग्रामीणों से लगातार संवाद के जरिए कार्य को निरंतर किया गया। 6 से 8 महीने के अंदर भारत-पाकिस्तान की सड़क पर बस एक रेतीली गांव ढगारी में हर घर ने नल से पहुँचा वह जल जो अब तक आँखों और सपनों में ही था।
एक-एक बूंद के लिए संघर्ष करने वाले गांव में पहुंचा पानी।
पानी के लिए लगती थी लाइनें
ग्रामीण जगदीश का कहना है कि हमारे गांव में पानी नहीं होता था। करीब 10-15 किलोमीटर दूर जाकर पानी लाते थे। एक बेरी होती थी उस बेरी से सब गांव वाले पानी निकालते थे। एक-एक करके नंबर आता था। एक मटका पानी मिलता था।
यहां ऊंट पर पखाल भरकर ले जाते थे। लाइनें लगी रहती थी। पानी भी नहीं था। लगातार पानी खींचने से पानी रुक जाता था। दो घंटे तक इंतजार करते फिर बेरी से पानी आता था।
घी गिरता तो दुख नहीं होता था पानी गिरने पर दुख होता था
पानी का बहुत महत्व था। एक-एक बूंद का सहेज कर रखते थे। पानी पीना ही फालतू नहीं गिराते थे। अब तो पानी खूब है। पशु पक्षी और पौधों को पिलाते हैं। ऐसा इलाका था कि घी गिर जाता तो दुख नहीं होता था और पानी का लौटा गिर जाता था तो दुख होता है। घी बहुत था लेकिन पानी नहीं था।
पानी के लिए महिलाओं और युवतियों ने गाए मंगल गीत
जल जीवन मिशन के तहत ढगारी गांव में पानी पहुंचने पर महिलाओं और ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी का ठिकाना नहीं है। महिलाए सज-धजे कर नल के पास बैठ गई। जैसे ही नल से पानी आया तो उनके चेहरे पर खुशी छा गई। महिलाओं ने न केवल मंगल गीत गाए साथ ही जीवनदायक पानी की मंगल आरती भी की गई।
2023 में जलप्रदाय ढगारी योजना की हुई शुरूआत
2023 को पाइप जलप्रदाय योजना ढगारी की शुरुआत की गई। 62.31 लाख की योजना का जिम्मा मैसेज बी सारण कोटडा कंपनी को दिया गया। 150 घरों के लिए पंप हाउस, स्वच्छ जलाशय, चार दिवारी, मुख्य पाइप, लाइन वितरण पाइपलाइन, कार्यशील हर घर नल कनेक्शन का कार्य मई 2024 में पूरा हुआ।
जब इस गांव के हर घर नल से जल पहुंचा तो यहां की महिलाओं ने न केवल मंगल गीत गए साथ जीवनदायक पानी की मंगल आरती भी की।
40 किलोमीटर दूर गिराब से मंगवाते थे टैंकर
बाड़मेर की ढगारी गांव में पानी पहुंचने से पहले यहां होने वाले निर्माण के लिए सामग्री पहुंचाना ही सबसे बड़ी समस्या थी। पक्की सड़क के नहीं होने के चलते निर्माण सामग्री को पहुंचने में भारी समस्या से रूबरू होना पड़ा। भूजल के अत्यधिक रासायनिक और खारा होने के चलते निर्माण कार्य के लिए पानी को 40 किलोमीटर दूर गिराब गांव से टैंकरों के जरिए मंगवाया गया।
श्रमिकों को हर दिन लाना और वापस पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। यहां के हजारों पशुओं के लिए पशु खेली का निर्माण भी जरूरी था इसलिए इस निर्माण कार्य में उसे भी शामिल किया गया।
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