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राजस्थान के चुनावी नतीजे आ चुके हैं। सत्ता वाली पार्टी में हर कोई 25 सीट जीतने के दावे कर रहे थे। अब पता लगा है कि जनता में ही नहीं दिल्ली में हाईकमान के सामने भी इसी से मिलते जुलते दावे किए थे।
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दो तीन सीट के नुकसान की रिपोर्ट ही हाईकमान को दी थी। जब रिजल्ट आया तो नुकसान चार गुणा निकला। मतलब हाईकमान को सही रिपोर्ट नहीं दी गई।
अब रिजल्ट आने के बाद जिम्मेदारों पर पार्टी के चाणक्य नाराज हैं। एक तो रिजल्ट खराब रहा, ऊपर से रिपोर्ट तक सही नहीं दी गई। अब नाराजगी के साइड इफेक्ट आगे दिखने तय हैं।
जश्न-स्वागत की तैयारी पर पड़ गई डांट
सत्ता वाली पार्टी में उम्मीद से कम सीटें आने पर तरह-तरह के चर्चे हैं। रिजल्ट आने के बाद नए सांसदों की प्रदेश की राजधानी में स्वागत सत्कार बैठक की तैयारी हो गई, मतलब जीत के जश्न जैसी तैयारी की गई। जब यह बात ऊपर गई तो स्थानीय नेताओं को डांट पड़ गई। डांट के बाद कार्यक्रम की रूपरेखा बदली गई।
सांसदों की बैठक को स्थगित कर दिया। जश्न जैसा कुछ नहीं किया गया। अब सियासत का रंग ढंग और देश काल के हिसाब काम तो करना ही होता है लेकिन यह हर किसीके बस की बात नहीं होती।
बजट पेश करने वाली उपमुखिया की जगह बैठक में एसए को क्यों बनाया प्रतिनिधि
प्रदेश का बजट अगले महीने आना है, इससे पहले बजट पर अलग अलग वर्गों से राय लेने की बैठकें भी चल रही है। हाल ही बजट पर राय के लिए एक बैठक हुई। बैठक में खजाने वाले मंत्री की हैसियत से जिन्हें बजट पेश करना है, वो बैठक में नहीं थीं।
इसे लेकर जिम्मेदारों ने तर्क दिया कि उपमुखिया प्रदेश से बाहर होने के कारण बैठक में नहीं आईं, लेकिन सियासी हलकों में यह टॉकिंग पाॅइंट बन गया, कहा जा रहा है बैठक में बुलाने की औपचारिकता ही नहीं की गई।
बाद में गलती सुधारी गई और बैठक की सूचना में ही उपमुखिया के बाहर होने और उन्हें वीसी से जोड़ने की बात मेंशन कर दी, यही नहीं उपमुखिया की जगह उनके विशिष्ट सचिव को उनके प्रतिनिधि के तौर पर बैठक में शामिल होने का भी विकल्प दे दिया। दरअसल, उपमुखिया बजट तो खजाने वाले मंत्री की हैसियत से पेश करेंगी, लेकिन टैक्स लगाने वाला महकमा प्रदेश के मुखिया के पास है।
टैक्स से जुड़ी बैठक में उपमुखिया के नहीं होने की चर्चा होती ही नहीं अगर आदेशों में चूक नहीं हुई होती लेकिन कागज बोलते हैं, और यह सब दस्तावेजों में दर्ज हो गया, ऐसे में चर्चा तो होनी ही थी।
नेताजी के भितरघात और जाति प्रेम के वीडियो-ऑडियो टॉप तक पहुंचे
विचारधारा की सियासत करने वाले नेताओं के बारे में यह धारणा रही है कि वे जातिवाद नहीं करेंगे, लेकिन अब यह धारणा टूट रही है। इन लोकसभा चुनावों में कई नेताओं के बारे में ऐसी शिकायतें आई कि उन्होंने विचारधारा को ताक पर रखकर जाति को महत्व दिया।
सत्ता वाली पार्टी में विचारधारा वाले नेताजी के जातिप्रेम का मामला तूल पकड़ गया। नेताजी पर जाति के नाम पर विरोधी उम्मीदवार की मदद के आरोप लगे। कुछ वीडियो-ऑडियो तक सामने आ गए। इसकी शिकायत ऊपर तक हुई है।
मुखिया की बैठक में कर्मचारियों ने क्यों दिखाए तेवर?
प्रदेश के पावर बैलेंस और सत्ता की राजनीति में कर्मचारी वर्ग का बहुत बड़ा रोल रहता है। कर्मचारियों की नाराजगी का जोखिम कोई भी पार्टी और सरकार नहीं उठा सकती। हाल ही बजट को लेकर कर्मचारी नेताओं को सुझाव के लिए बुलाया गया। सुझाव वाली बैठक में कर्मचारी नेताओं ने जमकर कमियां गिनाईं।
पिछले कुछ महीनों में जारी हुए कुछ सर्कुलर को लेकर कर्मचारी नेताओं ने नाराजगी जाहिर की तो ब्यूरोक्रेसी के मुखिया ने सफाई दी। प्रदेश के मुखिया ने भी आश्वासन दिया कि ऐसा कुछ नहीं होगा। कुल मिलाकर इस बैठक से यह तो तय होग गया कि अब ब्यूरोक्रेसी और कर्मचारी मामलों में ज्यादा क्रांतिकारी करने की गुंजाइश नहीं रहेगी।
क्यों टाल दिया मंत्रीजी ने इस्तीफा
सियासत में कही गई बात पर अमल करना भी देश, काल, परिस्थिति पर निर्भर करता है। वादों पर अमल करने का भी टाइम होता है। सियासत में बाबा के नाम से मशहूर नेताजी ने सात सीटों पर पार्टी के लोकसभा चुनाव नहीं जीतने पर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।
नतीजा जो आया सबके सामने है। विपक्ष ने मंत्रीजी को वादा याद दिलाया। शुभचिंतकों की राय के बाद मंत्रीजी ने इस्तीफा टाल दिया है। अब देश के मुखिया से मिलने के बाद ही इस्तीफे देने पर विचार करेंगे, अब इसमें भी पेच है। देश के मुखिया से मिलने के बाद इस्तीफा देने का स्कोप नहीं बचेगा।
ब्यूरोक्रेसी में फेरबदल का काउंट डाउन, शिकायत वाले अफसर बदलेंगे
प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी में बड़े फेरबदल का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। लिस्ट लगभग तैयार है। कई महकमों के बड़े अफसरों के खिलाफ प्रदेश के मुखिया तक शिकायतें पहुंची है।
एक बड़े अफसर को लेकर भी टॉप तक शिकायत पहुंची। पहले सिंगल आदेश से विभाग से हटाने पर लगभग सहमति हो गई लेकिन टॉप से इस पर वीटो हो गया। क्योंकि सरकार की इमेज का सवाल था। अब शिकायत वाले अफसरों का एक साथ ही तबादले किए जाएंगे। एक चर्चित अफसर का भी विभाग बदलेगा।
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