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63 साल के वृद्ध का ढाई लाख रुपए का मेडिक्लेम खारिज करने के बीमा कंपनी की दलील को उपभोक्ता फोरम ने खारिज कर दिया। यह पॉलिसी 20 साल पहले ली गई थी। बीमा कंपनी ने मेडिक्लेम यह कहते हुए नहीं दिया था कि इलाज मोटापा कम करने का कराया गया है। यह पॉलिसी के दाय
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इसी के खिलाफ वृद्ध ने उपभोक्ता फोरम की शरण ली। यहां बीमा कंपनी के तर्क नहीं चले और उसे इलाज में खर्च हुए ढाई लाख रुपए चुकाने के आदेश दिए हैं।
आदेश 28 मई को किया गया, जिसकी डिटेल कॉपी अब सामने आई है। मामला राधा नगर, नीलकंठ कॉलोनी के रहने वाले राजेंद्र भाटिया का है। साल 2000 में उन्होंने खुद व परिवार का नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से मेडिक्लेम कराया था। 16 दिसंबर 2020 को पैरों में सूजन आई। सांस लेने में भी दिक्कत हुई।
इंदौर के ही प्राइवेट अस्पताल में चेकअप कराया। सीटी स्कैन और अन्य जांचें हुई। डॉक्टर की सलाह के बाद मुंबई ले गए और वहां भी एक प्राइवेट अस्पताल में चेकअप कराया, जिसके बाद वहां भर्ती करना पड़ा। जांच में खुलासा हुआ कि उनके फेफड़ों में पानी भर गया है।
10 दिन मुंबई में ही भर्ती रहे, पानी निकाला गया
मुंबई के प्राइवेट अस्पताल में भाटिया को करीब 10 दिन भर्ती रखा। यहां शरीर से पानी निकाला गया तब राहत मिली। इलाज में 2.33 लाख रुपए खर्च आया।
बीमा कंपनी ने 9 अगस्त 2021 को यह कहकर क्लेम देने से मना कर दिया कि मोटापे की वजह से मेडिक्लेम देने के लिए बाध्य नहीं है।
हालांकि भाटिया ने जानकारी दी कि बीमा कंपनी ने 2000 में मेडिक्लेम पॉलिसी करते समय वजन संबंधी कोई जानकारी नहीं ली थी। जब 2020 से 2021 के लिए 5 लाख रु. की यह पॉलिसी रिन्यू कराई थी तब भी ऐसी कोई जानकारी नहीं ली गई।
इलाज के दस्तावेज और डिस्चार्ज के आधार पर किया खारिज
बीमा कंपनी पैनल ने इलाज के दस्तावेजों के आधार पर भाटिया को यह तर्क दिया कि हाइपोवेंटिलेशन के साथ ऑब्स्ट्रक्ट स्लीम एपनिया के साथ पिकविकियन सिंड्रोम से ग्रस्त थे। इसे ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम कहा जाता है जो मोटापे के कारण होता है। ऐसे में उन्हें मेडिक्लेम का लाभ नहीं दिया जा सकता। बीमा कंपनी द्वारा मेडिक्लेम खारिज करने के बाद भाटिया ने जिला उपभोक्ता फोरम की शरण ली। यहां करीब एक साल सुनवाई चली।
पॉलिसी ली तब ज्यादा था वजन, जब रिजेक्ट तो कम
भाटिया का कहना है कि बीमा कंपनी की बड़ी अजीबोगरीब स्थिति बताई है। 2000 में जब मेडिक्लेम पॉलिसी ली तब मेरा वजन करीब 100 किलो था। उस दौरान कंपनी ने वजन को लेकर कोई जानकारी नहीं ली, न ही आपत्ति ली गई। 2020 में जब बीमार हुआ और क्लेम रिजेक्ट हो गया तब मेरा वजन पहले से कम था। इसके बाद मोटापा कारण बताकर क्लेम खारिज कर दिया गया था।
फोरम ने यह पाए तथ्य
- एडवोकेट रविराज सिंह के मुताबिक बीमा कंपनी ने जो दस्तावेज पेश किए उसमें कोई भी ऐसा तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं पाया गया जिससे यह साबित हो कि फरियादी ने मोटापे का ट्रीटमेंट कराया है। बावजूद बिना ठोस कारण के क्लेम खारिज किया है। बीमा कंपनी को 2 लाख 33 हजार 550 रु. रुपए चुकाने होंगे। साथ में क्लेम पेश करने की तारीख 4 जनवरी 2023 से 9% ब्याज सहित राशि 45 दिन के अंदर देनी होगी। मानसिक परेशानी के लिए 10 हजार रुपए और परिवाद खर्च 5 हजार रुपए भी लगेगा।
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