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‘2013 में मैं नेता प्रतिपक्ष था, जब सरकार नहीं बनी तो मुझसे कहा कि गया कि आप फेल हो गए हैं। मुझे इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस आलाकमान को समीक्षा कर रणनीति बनानी होगी। हाईकमान को तय करना होगा कि प्रदेश में नेतृत्व कैसा हो।’ – अजय सिंह, पूर्व नेता प्रतिप
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एमपी में कांग्रेस लोकसभा की 29 सीटें हार गईं। इस हार के बाद पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने ये प्रतिक्रिया दी। अजय सिंह ने इशारों ही इशारों में प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को हार की जिम्मेदारी लेने की बात की है।
दरअसल, कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कमियों में सुधार की बात तो की है, मगर पद से इस्तीफा नहीं दिया। जानकार मानते हैं कि जीतू पटवारी भले ही पद से इस्तीफा नहीं दें, लेकिन हार की समीक्षा बैठक में उन पर इस्तीफे का दबाव रहेगा।
कांग्रेस में ही उनके इस्तीफे को लेकर उठ रही मांग को देखते हुए भास्कर ने पॉलिटिकल एक्सपटर्स से जाना कि जीतू इस्तीफा नहीं देते तो उनके लिए पद पर बने रहना कितना कठिन होगा और यदि वे प्रदेश अध्यक्ष बने रहते हैं, तो उन्हें संगठन को किस तरह से मजबूत करना होगा। पढ़िए रिपोर्ट…
सबसे पहले जानिए, हार के बाद जीतू ने क्या कहा था
4 जून को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तब जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर कहा था कि हम सभी ने एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा और अच्छे परिणाम के लिए प्रयास किए। विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद जिस तरह की घटनाएं एमपी में हुई हैं, तो मैं यह कह सकता हूं कि सरकार के धन और बल के प्रयास सफल हुए।
पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते में मैं लोकसभा चुनाव के नतीजों को सिर झुका कर स्वीकार करता हूं और इन परिणामों की जिम्मेदारी लेता हूं। ये भी कहा कि- पार्टी आत्ममंथन के साथ बदलावों के लिए तैयार है।
नई सोच, विचार और व्यवहार का समावेश किया जाए। इंदौर में जिस तरीके से नोटा के रूप में जनता ने भाजपा के मुंह पर जो करारा तमाचा मारा है, वह भाजपा हमेशा याद रखेगी। कांग्रेस पार्टी एक मजबूत विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका लगातार निभाएगी।
भास्कर को दिए इंटरव्यू में जीतू पटवारी ने पीएम मोदी पर भी निशाना साधा था।
जीतू के गृह बूथ पर नोटा से ज्यादा वोट भाजपा को मिले
जीतू पटवारी इंदौर की राऊ विधानसभा सीट में आने वाले बीजलपुर गांव के निवासी है। वे यहां के बूथ नंबर 88 के वोटर है। इस बूथ पर नोटा को महज 252 वोट मिले। जबकि, भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी को 624 और बसपा के प्रत्याशी संजय सोलंकी को महज 7 वोट मिले। जीतू पटवारी के वार्ड से बीजेपी प्रत्याशी ने 15 हजार तो विधानसभा सीट राऊ से 1 लाख 75 हजार से ज्यादा वोटों की लीड ली।
अब जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
दैनिक भास्कर ने वरिष्ठ पत्रकारों से जाना कि एमपी में लोकसभा चुनाव में हार के बाद अब कांग्रेस की क्या स्थिति होने वाली है। एक्सपर्ट से बात करने के बाद 4 बातें निकलकर सामने आई है।
- जीतू पटवारी प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रह सकते हैं, पार्टी उन्हें कार्यकाल पूरा करने का मौका देगी।
- कांग्रेस को संगठन को मजबूत करने और गुटबाजी दूर करने की जरूरत है।
- जमीनी स्तर के कार्यकर्ता को एक्टिव करना होगा।
- सिर्फ चुनाव में सक्रिय होने की बजाय सड़क से लेकर सदन तक सक्रियता की जरूरत है।
अरुण दीक्षित बोले- आलाकमान पटवारी से इतनी जल्दी इस्तीफा नहीं मांगेगा
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद आलाकमान ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। ऐसे में तत्काल उन पर हार की जिम्मेदारी का प्रेशर तो नहीं है न ही पद छोड़ने जैसी स्थिति बनेगी।
दीक्षित का कहना है कि ऐसे में पटवारी के सामने चुनौती तो बनी रहेगी। उन्हें वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलना होगा, तभी वे गुटबाजी खत्म कर सकेंगे। उन्हें एमपी का दौरा कर पंचायत स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना होगा।
तिवारी ने कहा- कांग्रेस के नेताओं का पलायन रोकना चुनौती
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी कहते हैं, पटवारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी भाजपा में जाने से नहीं रोक पाए। मालवा-निमाड़ में भी उनका प्रभाव काम नहीं कर पाया। अब हार के बाद बड़े नेताओं के जाने का सिलसिला और ज्यादा तेज होगा और इसे रोकना बड़ी चुनौती होगी।
तिवारी के मुताबिक जब जीतू को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था तभी उनका विरोध था, ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें जिम्मेदारी दी गई तो कांग्रेस बिखर गई। वे चुनावी मैनेजमेंट को उस तरह नहीं कर पाए, जिस तरह से कमलनाथ-दिग्विजय सिंह जैसे नेता कर पाते थे। कमलनाथ और दिग्विजय दोनों ही अपने क्षेत्र तक ही सीमित रहे।
गिरिजाशंकर बोले-जमीनी स्तर के कार्यकर्ता को एक्टिव करना होगा
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर कहते हैं, कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है, ऐसे में जीतू पर बहुत ज्यादा प्रेशर नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि उन्हें चुनाव से ठीक पहले ही जिम्मेदारी दी गई थी। नई पीढ़ी के नेतृत्व से ही कांग्रेस, कई राज्यों में भाजपा को मात दे पाई है। आलाकमान ने उन्हें जिम्मेदारी तो दी, मगर भाजपा अध्यक्ष की तरह अधिकार नहीं दिए।
जीतू पटवारी को अधिकार नहीं मिलेंगे तो वे भी कांग्रेस में जान नहीं फूंक पाएंगे। यदि वे अपनी कार्यकारिणी का गठन कर भी लेते हैं तो उन्हें हर गुट को साधने की चुनौती है। गिरिजाशंकर कहते हैं कि कांग्रेस को यूपी, बिहार और राजस्थान की तरह रोल मॉडल सेट करना होगा।
युवाओं से जुड़े संगठन एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस को मजबूत करने की जरूरत है। कांग्रेस सिर्फ चुनाव से पहले सक्रिय होती है। ऐसे करने के बजाय उसे विपक्ष के तौर पर साल भर सक्रियता बढ़ाना होगी।
रशीद किदवई ने कहा- मप्र में राजस्थान जैसी एकजुटता नहीं दिखी पार्टी में
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि चुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य शीर्ष नेता हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश करते हैं। ये आलाकमान पर निर्भर करता है कि वे उनका इस्तीफा मंजूर करें या न करें। यदि पटवारी के साथ भी ऐसा होता है तो कार्यकर्ताओं में उनका सम्मान ही बढ़ेगा।
वे कहते हैं कि इन नतीजों के बाद अब कांग्रेस को दोगुनी मेहनत करना पड़ेगी। घर बैठे कार्यकर्ताओं को फिर से मुहिम चलाकर जोड़ना होगा। सिर्फ चुनाव से पहले जनता के बीच जाने की बजाय लगातार जनता से जुड़े रहना होगा। जनता के मुद्दे उठाकर सरकार को विधानसभा से लेकर सड़क तक घेरना होगा।
वे कहते हैं कि संगठन को मजबूत करने के लिए पंचायत स्तर तक ब्लॉक स्तर तक कांग्रेस को सक्रिय करने की जरूरत है। 2028 विधानसभा चुनाव के लिए अभी से टारगेट सेट कर होगा, तभी जनाधार बढ़ेगा।
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