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02:57 AM6 जून 2024
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सामना की संपादकीय- मोदी की तीसरी कसम… चौथा अंक ही सत्य है!
शिवसेना (UBT) के मुख पत्र सामना ने अपनी संपादकीय में पीएम मोदी और भाजपा पर निशाना साधा है। सामाना ने लिखा- लोकसभा चुनाव के नतीजों में नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी की फजीहत हुई है। जनता ने उन्हें लगभग सत्ता से बाहर कर दिया है। यह खींचतान करते समय लोगों ने सभ्यता और संस्कृति का परिचय दिया है। इसका अनैतिक लाभ मोदी उठा रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत भी नहीं मिला। उनकी भटकती आत्मा 240 पर ही लटकती हुई दिख रही है। फिर भी मोदी ने बहुमत देने के लिए जनता को धन्यवाद दिया है। लोकसभा नतीजों ने मोदी को जमीन पर ला दिया और उन्होंने कहा, ‘मेरी मां की मृत्यु के बाद यह मेरा पहला चुनाव है।’ चलिए, आखिरकार मोदी ने स्वीकार कर लिया कि वे आसमान से नहीं गिरे हैं, बल्कि किसी भी अन्य नश्वर इंसान की तरह अपनी मां के गर्भ से पैदा हुए हैं।
मोदी के पास ये कहने के अलावा कोई चारा नहीं है। क्योंकि उनके देवत्व, अवतार और बाबागीरी का मुखौटा काशी नगरी में ही लोगों ने नोचकर उतार दिया है। मोदी ने यह घोषणा कर अपनी हार स्वीकार कर ली कि वह अब अपने ‘ब्रांड’ की यानी मोदी सरकार नहीं, बल्कि ‘रालोआ’ की सरकार बना रहे हैं। ‘मोदी सरकार’, ‘मोदी गारंटी’, ‘मोदी है तो मुमकिन है’, ‘मोदी तो भगवान है’ जैसी फेंकू कल्पनाओं को इस नतीजे ने कूड़े दान का रास्ता दिखाया।
अगर मोदी सरकार बनाते भी हैं तो उनकी तस्वीर एक व्यंग्यचित्र होगी। पूरे शरीर में फ्रैक्चर और प्लास्टर लपेटे हुए मोदी नीतीश कुमार और चंद्राबाबू नायडू की बैसाखी लिए चल रहे हैं। उन बैसाखियों के सहारे ही उन्हें सरकार चलानी होगी। ये बैसाखी भी क्या अंत तक साथ देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
कहा जा रहा है कि मोदी की भाजपा ने 240 सीटें जीती हैं। इस आंकड़े में भी हेराफेरी है। एनडीए का दिखाया जा रहा 291 का आंकड़ा छलावा है। ऐसे में तीसरी बार शपथ लेने के लिए मोदी ने भले ही राष्ट्रपति भवन में बहुमत का कागज पेश किया हो, लेकिन वह कागज और उस पर बहुमत का आंकड़ा उनकी ‘एम.ए.’ इन एंटायर पॉलिटिक्स डिग्री की तरह रहस्यमयी होगा।
मोदी के पास अपना बहुमत नहीं है और बैसाखी का बहुमत मोदी की अभिमानी प्रकृति के अनुकूल नहीं है। इसीलिए भारत की जनता ने बहुत विनम्रता से मोदी को सत्ता से हटने का संदेश दिया है। आपका काम हो चुका है। बेवजह देर न करें और खुद की ज्यादा बेइज्जती न करवाएं, पर मोदी और शाह महाशय का ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ इन दो महान हिंदू शब्दों से कोई संबंध न पड़ा हो, इसलिए अब मोदी की सरकार नहीं है, तो एनडीए की सरकार बनाए जाने की घोषणा उन्होंने की है।
अगर ऐसा हुआ तो मोदी को कई बैसाखियों के नियमों-शर्तों पर काम करना होगा। मोदी अब तक एनडीए आदि को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन काशी के भगवान ने प्रभु श्रीराम को उनके अहंकार को खत्म करने के लिए एनडीए के चरणों में ला दिया। इस बार मोदी को राम नहीं मिले। क्योंकि श्रीराम अहंकार के शत्रु हैं और उन्होंने अहंकार को हराकर अयोध्या में रामराज्य की स्थापना की।
वाराणसी में प्रचार खत्म होते ही मोदी ने 10 कैमरों के साथ साधना शुरू कर दी, लेकिन वाराणसी में उनका मताधार तेजी से गिर गया। इसे भगवान का प्रसाद ही कहना होगा। भारतीय जनता पार्टी को मिली २४० सीटें ‘मोदी’ ब्रांड का चमत्कार नहीं है। भाजपा ने यह आंकड़ा राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की मदद से हासिल किया है।
मोदी ने महाराष्ट्र में 18 सभाएं और कई रोड शो किए। 18 में से 14 सीटों पर भाजपा हार गई। मोदी नागपुर में नहीं गए, वहां भाजपा के नितिन गडकरी जीते। भारतीय जनता पार्टी का ‘आरोप’ था कि महाराष्ट्र में शिवसेना सांसद मोदी की फोटो लगाकर जीते। जनता ने इस बार भाजपा का यह भ्रम तोड़ दिया।
शिवसेना के नौ सांसद उद्धव ठाकरे के चेहरे पर और राष्ट्रवादी कांग्रेस के आठ सांसद शरद पवार के चेहरे पर जीते। इसके उलट महाराष्ट्र में ‘मोदी-मोदी’ करने वालों की संख्या 23 से 9 हो गई। मोदी के बगैर महाविकास आघाड़ी ने 30 सीटें जीतीं।
मोदी जैसे लोगों से दोस्ती करने की बजाय उनसे दुश्मनी करना ज्यादा फायदेमंद है। यह अनुभव है कि मोदी और उनकी मतलबी पार्टी संकट में साथ देने वाले मित्रों को ही नष्ट कर देती है। इसलिए चंद्राबाबू नायडू को बहुत सावधान रहना चाहिए। बाबू की उंगली पकड़कर भाजपा आंध्र में घुस चुकी है। बाबू को खत्म करने की योजना उनके दिमाग में होगी।
नवीन पटनायक की बीजू जनता दल ने दिल्ली में दस साल तक मोदी सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया। दस साल बाद भाजपा ने ओडिशा से नवीन पटनायक और बीजू जनता दल का सफाया कर दिया। पटनायक अब निर्वासन में चले गए हैं। पूरे देश में भाजपा ने यही और यही किया। भाजपा नमक और शब्दों पर तटस्थ रहनेवाली पार्टी नहीं है और मोदी इसके लिए प्रसिद्ध हैं।
चंद्राबाबू और अन्य लोग जानते हैं कि मोदी का भारतीय सभ्यता और संस्कृति से कोई संबंध नहीं है, लेकिन बाबू ने भी राजनीति में कई गर्मी और बरसात देखे हैं। इसलिए वे ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे भारतीय सभ्यता और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचे। मोदी तीसरी बार शपथ लेना चाहते हैं, इसलिए वे नीतीश कुमार और चंद्राबाबू का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन यह तीसरी ‘कसम’ यानी मोदी-भाजपा के नाटक का चौथा अंक होगा। पर्दे के पीछे की नई पटकथा को रचते हुए देश देख रहा है।
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