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गर्मी का मौसम, तेज धूप और पसीने में यदि कुछ ठंडा मिल जाए तो समझो मुंह मांगी मुराद पूरी हो जाती है। ऐसे में ठंडक देने वाली कुल्फी का तो कहना ही क्या। इंदौर की बात करें तो शर्मा जी की फेमस मावा कुल्फी अपनी अलग ही पहचान बन चुकी है। ये मावा कुल्फी आम तौ
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इसके फेमस होने और एक छोटी कड़ाई से बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए कुल्फी बनाने के सफर की कहानी भी कम रोचक नहीं है। खास बात यह कि शर्मा जी की कुल्फी गर्मी ही नहीं सर्दी-बारिश में भी डिमांड में रहती है। यहां मावा कुल्फी, पान कुल्फी, मैंगो कुल्फी, केसर-पिस्ता और सीताफल कुल्फी की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है।
MP की जायका सीरीज में इस बार पढ़िए इंदौर की प्रसिद्ध शर्मा जी की कुल्फी की कहानी…
1983 में रामसहाय शर्मा का परिवार राजस्थान के बढ़नाला से इंदौर आया। बढ़नाला में रामसहाय के पिता मावा और मिठाई का काम किया करते थे। लेकिन रामसहाय परिवार के पालन-पोषण के लिए इंदौर आने के बाद पंडिताई करने लगे। इनको दो बेटे गोपाल शर्मा और पद्म शर्मा इंदौर के पालदा में नौकरी करने लगे। लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा और उन्होंने दूध और मावा का पुश्तैनी कारोबार शुरू कर दिया।
इस बीच गोपाल शर्मा के चाचा और परिवार के दूसरे लोग जयपुर में कुल्फी बनाने का काम शुरू कर चुके थे। साल 2010 में गोपाल भी जयपुर से यह काम सीख आए। गोपाल बताते हैं कि 2017-18 के आस पास मैंने घर से ही छोटी कड़ाही से शुरुआत की। तब 9 लीटर दूध से रबड़ी फिर कुल्फी बनाना शुरू किया। घर में ही टेबल पर दुकान खोल के बेचना शुरू कर दिया। शुरुआत में लोगों का रिस्पॉन्स नहीं मिला तो निराश भी हुए। लेकिन पत्नी रचना शर्मा भी गोपाल के काम में हाथ बंटाने लगी।
धीरे-धीरे कुल्फी का टेस्ट लोगों को पसंद आने लगा तो व्यापार ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी। थोड़े पैसे जुड़े जो बिजनेस को और बढ़ाने के लिए हमने काउंटर खरीदा। और ग्राहकों की डिमांड के हिसाब से वैराइटी तैयार करने लगे। शुरुआत में तो दिनभर में करीब हजार-पांच सौ की कमाई हो जाया करती थी। लेकिन धीरे-धीरे कुल्फी का टेस्ट लोगों की ज़ुबान पर चढ़ने लगा था। और आज 9 लीटर से 300 लीटर दूध की कुल्फी रोजाना तैयार कर रहे हैं।
परिवार के लोग ही बनाते हैं
रचना शर्मा बताती है कि हम पिछले 7-8 सालों से यह कुल्फी का व्यापार कर रहे हैं। लेकिन आज तक किसी भी बाहरी व्यक्ति की मदद नहीं ली है। दिन भर में करीब 3 हजार कुल्फी तैयार की जाती है। कुल्फी बनाने से लेकर पैकिंग तक का पूरा काम घर के सदस्य ही करते हैं। रोजाना सुबह 6 बजे से कुल्फी बनाने का काम शुरू होता है। गोपाल शर्मा बताते हैं कि दूध लाने से लेकर कुल्फी तैयार करने का काम मैं और मेरी पत्नी करते हैं। बड़े भाई, बच्चे और मां घर में ही कुल्फी की पैकिंग और रखरखाव का काम संभाल लेती है।
शुगर फ्री कुल्फी की अपनी डिमांड
शर्मा बताते हैं कि शुगर फ्री कुल्फी की खास डिमांड रहती है। हमारे कई ऐसे ग्राहक हैं जो सालों से कुल्फी का स्वाद ले रहे हैं। वो खास तौर पर शुगर फ्री कुल्फी तैयार करवाते हैं। शुगर फ्री कुल्फी में दूध, पिस्ता और शुगर फ्री गोलियों का इस्तेमाल किया जाता है।
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