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नई दिल्ली43 मिनट पहले
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लोकसभा की 542 सीटों के साथ चार राज्यों- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम विधानसभा के लिए वोटिंग खत्म हो चुकी है।
175 सीटों वाले आंध्र प्रदेश में 13 मई, 147 सीटों वाले ओडिशा में चार फेज- 13, 20, 25 और 1 जून को वोटिंग हुई थी। दोनों राज्यों में 4 जून को काउंटिंग होगी।
नॉर्थ-ईस्ट के दो राज्य- अरुणाचल प्रदेश की 60 में से 50 सीटों और सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को वोटिंग हुई थी। दोनों राज्य के नतीजे 2 जून को आएंगे।
आज शाम 7 बजे के बाद इन चारों राज्यों के एग्जिट पोल आएंगे। उससे पहले यहां के राजनीतिक हालात समझ लेते हैं।
1. आंध्र प्रदेश विधानसभा
आंध्र प्रदेश में विधानसभा की 175 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 88 विधायक चाहिए। राज्य में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) की सरकार है। 2019 में जगन मोहन रेड्डी पहली बार राज्य के CM बने थे।
CM जगन मोहन के खिलाफ उनकी बहन और नायडू
मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के खिलाफ एक तरफ तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जन सेना पार्टी (JSP) और भाजपा गठबंधन है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस है। जगन रेड्डी के लिए पहली चुनौती TDP अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू हैं, जो तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
इस चुनाव में TDP ने 175 सीटों में से 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जन सेना 21 और भाजपा को 10 सीट पर चुनाव लड़ रही है। पीथापुरम सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। यहां से साउथ एक्टर और JSP प्रमुख पवन कल्याण और फिल्म डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा आमने-सामने हैं।
जगन रेड्डी की दूसरी चुनौती उनकी बहन वाई एस शर्मिला हैं, जो राज्य में कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। आंध्र प्रदेश में दशकों तक कांग्रेस की सरकार रही है। 1956 से 1983, 1989 से 1994 और 2004 से 2014 तक पार्टी सत्ता में रही।
भाई-बहन में बंट सकते हैं कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स
जगन मोहन रेड्डी के पिता दिवंगत वाई एस राजशेखर रेड्डी आंध्र में कांग्रेस के बड़े नेता थे। 2004 और 2009 में वे लगातार दो बार राज्य के CM भी बने। जगन मोहन ने भी अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस से ही शुरू किया था। वे 2009 में कांग्रेस से पहली बार सांसद चुने गए।
हालांकि, 2009 में हेलिकॉप्टर हादसे में पिता की मौत के बाद जगन रेड्डी ने 2010 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने 2011 में अपनी अलग पार्टी YSRCP बनाई। 2014 में उनकी पार्टी ने 67 सीटें जीतीं। 2019 में YSRCP ने 151 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था।
हालांकि, इस बार उनकी बहन कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। ऐसे में कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स भाई-बहन की पार्टी में बंट सकते हैं। कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन, YSRCP के वोट कटे तो इसका सीधा फायदा TDP को होगा।
2. ओडिशा विधानसभा
BJD सत्ता में आई, तो नवीन पटनायक CM बनने का रिकॉर्ड तोड़ेंगे
ओडिशा में विधानसभा की 147 सीटें हैं। बहुमत के लिए 74 सीटें चाहिए। राज्य में बीजू जनता दल (BJD, भाजपा और कांग्रेस तीन मुख्य पार्टियां है।
BJD साल 2000 से लगातार सत्ता में है। BJD अध्यक्ष नवीन पटनायक 24 साल से मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने 5 मार्च 2000 को पहली बार शपथ ली थी। तब से 2019 तक वे 5 बार से ओडिशा के CM हैं।
सिक्किम के पूर्व CM पवन चामलिंग (24 साल और 165 दिन) के बाद नवीन पटनायक (24 साल और 83 दिन) सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले देश के दूसरे नेता हैं।
ओडिशा विधानसभा का कार्यकाल जून के पहले सप्ताह में खत्म हो रहा है। अगर BJD की सरकार बनती है और नवीन पटनायक CM बनते हैं, तो वे सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले नेता बन सकते हैं।
BJD-भाजपा ने दो बार गठबंधन में सरकार बनाई
भाजपा और BJD दो विधानसभा चुनाव- 2000 और 2004 में एक साथ उतरी थीं। उस समय BJD, NDA की सबसे भरोसेमंद पार्टी मानी जाती थी। साल 2000 में BJD ने 68 और भाजपा ने 38 सीटें जीती थीं।
147 में से 106 सीटों के साथ दोनों पार्टियों ने पहली बार गठबंधन की सरकार बनाई और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया। 2004 के चुनाव में भाजपा और BJD ने कुल 93 सीटें जीतीं। दोबारा सत्ता में आई।
BJD ने 2009 में 11 साल का गठबंधन तोड़ा
2009 विधानसभा चुनाव से पहले BJD ने भाजपा से 11 साल पुराना का गठबंधन तोड़ लिया। BJD चाहती थी कि भाजपा विधानसभा चुनाव में 163 सीटों में से 40 पर चुनाव लड़े, जबकि भाजपा 63 सीटों पर लड़ना चाहती थी।
2019 में BJD ने 112 सीटें जीतीं। भाजपा 23, कांग्रेस 9 और अन्य के खाते में दो सीटें आईं। 2024 के चुनाव में भी भाजपा और BJD के गठबंधन के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई।
हालांकि इस बार भाजपा की ओर से खुद प्रधानमंत्री मोदी 10 से ज्यादा सभाएं-रैलियां कर चुके हैं। वे हर रैली में कह चुके हैं कि 4 जून को नवीन बाबू रिटायर होंगे और 10 जून को BJP का CM शपथ लेगा।
3. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा
भाजपा चुनाव से पहले ही 10 सीटें जीत चुकी
अरुणाचल प्रदेश में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 31 सीटें चाहिए। राज्य में भाजपा, कांग्रेस, जनता दल-यूनाइटेड (JD-U), पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) प्रमुख पार्टियां है। PPA और भाजपा गठबंधन में हैं।
राज्य में इस बार 60 में से 50 सीटों पर ही चुनाव हुए हैं। 10 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार निर्विरोध चुने जा चुके हैं। इसलिए इन सीटों पर चुनाव नहीं हुए।
2019 में भाजपा ने 41 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री पेमा खांडू के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार बनाई थी। तब भाजपा राज्य में न सिर्फ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, बल्कि पहली बार बहुमत का आंकड़ा पार किया।
बाकी 19 सीटों में जनता दल-यूनाइटेड (JD-U) को 7, नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) को 5, कांग्रेस को 4 और अन्य को 3 सीटें मिली थी। 2024 विधानसभा चुनाव से पहले फरवरी में कांग्रेस और NPP के 2-2 विधायकों ने भाजपा जॉइन कर ली थी।
2014 चुनाव के बाद राज्य में सियासी संकट आया
2014 के चुनाव में कांग्रेस ने 42 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया था। भाजपा को 11, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) को 5 और दो सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलीं।
हालांकि, 2016 में अरुणाचल प्रदेश में लंबे समय के लिए सियासी संकट देखने को मिला। राज्य में एक साल के भीतर 4 बार मख्यमंत्री बदले गए।
सबसे पहले दिसंबर 2015 में कांग्रेस के 42 में से 21 विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ बगावत की। इसके आधार पर राज्यपाल ने CM तुकी को बर्खास्त कर दिया। जनवरी 2016 के दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा।
इसके एक महीने के अंदर फरवरी में भाजपा ने पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) को समर्थन देकर कांग्रेस के बागी विधायकों के साथ सरकार बना ली। कांग्रेस के बागी गुट के नेता कालिखो पुल CM बने।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को फिर से बहाल कर दिया। 13 जुलाई को कांग्रेस सरकार बहाल हुई, लेकिन 16 जुलाई को कांग्रेस विधायकों ने तुकी की जगह पेमा खांडू को विधायक दल का नेता चुन लिया।
पेमा खांडू को 44 विधायकों का समर्थन मिला। वे कांग्रेस की सरकार में राज्य के नए CM बने। हालांकि, 16 सितंबर 2016 को CM पेमा खांडू कांग्रेस के 42 विधायक के साथ भाजपा की सहयोगी पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) में शामिल हो गए।
21 दिसंबर को खांडू समेत 7 विधायकों को PPA अध्यक्ष ने निलंबित कर दिया। दिसंबर 2016 में खांडू ने PPA का साथ छोड़कर 43 विधायकों में से 33 के साथ भाजपा जॉइन की और बहुमत साबित किया।
भाजपा के पहले से ही 11 विधायक थे। उसने दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से आंकड़ा 46 कर लिया। पेमा खांडू अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री बने। उनसे पहले 2003 में 44 दिनों के लिए गेगोंग अपांग के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी।
4. सिक्किम विधानसभा
सिक्किम में 32 विधानसभा सीटें है। बहुमत का आंकड़ा 17 है। राज्य में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (SKM), सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF), कांग्रेस और भाजपा प्रमुख पार्टियां हैं। फिलहाल, यहां प्रेम सिंह तमांग उर्फ पीएस गोले के नेतृत्व में SKM की सरकार है।
2019 विधानसभा चुनाव में SKM को 17 सीटें मिली थीं। SDF के खाते में 15 सीटें आईं। भाजपा और कांग्रेस सिक्किम में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। हालांकि, 13 अगस्त 2019 को पूर्व CM पवन चामलिंग की पार्टी SDF के 15 में से 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।
पवन चामलिंग के पास सबसे लंबे समय तक CM रहने का रिकॉर्ड
सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF) 1994 से लेकर 2019 तक लगातार 5 बार सत्ता में रही। पार्टी चीफ पवन चामलिंग लगातार 24 साल 166 दिन तक सीएम पद पर रहे।
वे देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले नेता हैं। सिक्किम एकमात्र राज्य है, जिसने 1979 के बाद से सभी विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों को सत्ता सौंपी है।
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