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केंद्र सरकार प्रदेश में अरावली की पहाड़ियों के पास 1400 किमी लंबी और 5 किमी चाैड़ी ग्रीन वाॅल तैयार कर रही है, लेकिन दूसरी ओर इन पहाड़ियों के इर्द-गिर्द के जंगल को लोगों में बांटने का सिलसिला 17 साल से जारी है।
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खास बात यह है कि आदिवासियाें काे अपने घर, खेत-खलिहान की पहचान दिलाने के लिए बनाए गए वन अधिकार पट्टा एक्ट में अब प्रदेश के अन्य इलाकों सहित मप्र-गुजरात के बाहरी आदिवासी भी सेंध लगा रहे हैं। उदयपुर में भी एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसपैठ की जा रही है।
प्रदेश के कुल 3 लाख 42 हजार 239 वर्ग किमी एरिया में से 25378.96 वर्ग किमी यानी 7.42% एरिया में जंगल है। इसमें से 1414 वर्ग किमी जंगल बांटा जा चुका है। यह कुल क्षेत्रफल का 5.5% है। उदयपुर जिला 11724 वर्ग किमी में फैला है। इसमें प्रदेश का सबसे ज्यादा 2753 वर्ग किमी यानी 23% जंगल है। यहां 1057 वर्ग किमी में पट्टे दिए। यह कुल क्षेत्रफल का 9% रहा।
एक वन अधिकारी ने बताया कि वनाधिकार पट्टे यूं ही बांटे जाते रहे तो भविष्य में लेपर्ड, टाइगर रिजर्व-सेंचुरी या अन्य प्राेजेक्ट के लिए लाेगाें काे जंगल से हटाना मुश्किल हाेगा। वन्यजीवाें का इंसानाें से टकराव बढ़ा है। विभाग को प्लांटेशन सहित अन्य कामों में मुश्किलें आ रही हैं। सभी काे एक तय जगह में पट्टे देकर अन्य एरिया बचाना चाहिए।
18 जिलों में 1.21 लाख लोगों ने मांगे पट्टे, 51843 को दिए गए, अभी 3301 कतार में
केस-1 – फुलवारी की नाल सेंचुरी के डैया-अंबासा ब्लाॅक में 85 फर्जी पट्टे देने का मामला आया। आरोप है कि जिनको पट्टे दिए गए, वे खेरवाड़ा के हैं। पटवारी व सचिव ने मिलकर अध्यक्ष का फर्जी अंगूठा लगाकर इन लाेगाें काे भूमिहीन बताया। इन्हें 600 हेक्टेयर जमीन देने की शिकायत प्रशासन से लेकर वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक तक पहुंची है।
केस-2 – काेटड़ा के नयावास गांव में में पक्का मकान हाेते हुए भी दो लोगों ने वन भूमि पर झाेपड़ी तैयार कर ली। वन विभाग ने इसे ध्वस्त कराया। अधिकारियाें के अनुसार समय रहते इन्हें नहीं हटाते ताे दाे साल बाद यही व्यक्ति पट्टे के लिए आवेदन कर देते। यहां पास के तीन गांवों में पट्टे मिले हुए हैं। इसकी आड़ में नए कब्जा करने की काेशिश होती रहती है।
गड़बड़ यूं…बिना सत्यापन रिपाेर्ट, आवेदन रद्द तो फिर मौका
पट्टे के लिए गांव का मुखिया रिपोर्ट बनाता है। पटवारी सहित अन्य कर्मी मिलकर दस्तावेजाें में छेड़छाड़ कर पट्टे के लिए पात्र घाेषित करते हैं। तीन कमेटियां हैं। पहली में पंचायत प्रतिनिधि, ग्रामीण व वनपाल या गार्ड शामिल हाेते हैं। ये पात्र चुनते हैं।
उपखंड स्तर पर एसडीएम, रेंजर व जनजाति विभाग के अफसरों की कमेटी पट्टा देना, न देना तय करती है। जिला स्तरीय कमेटी में कलेक्टर, डीएफओ और जनजाति विभाग के डिप्टी कमिश्नर होते हैं। ये आखिरी फैसला करते हैं। पट्टा आवेदन रद्द हो भी जाए तो फिर से आवेदन कर सकते हैं।
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