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युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं सैमुएल ढोडराय
पश्चिमी सिंहभूम जिले के सुदूर प्रखंड बंदगांव के मेरोमगुटू गांव में रहते हैं सैमुएल ढोडराय। वे स्थानीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। सैमुएल पिछले 40 सालों से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। यही उनकी आय का साधन भी है।
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शहर से दूर सुदूर इलाके में रहने वाले सैमुएल के मधुमक्खी पालन की चर्चा इलाके में होती रहती है। आलम यह है कि उनके मधु की डिमांड न केवल झारखंड बल्कि ओडिशा और बंगाल में भी होती है। लोग यहां तक इनका मधु लेकर जाते हैं।
पत्नी करती हैं पूरा सहयोग
सैमुएल के इस काम में उनकी पत्नी फुलमनी भी उनका क़दम से क़दम मिलाकर साथ देती है।सैमुएल ढोडराय अपनी छोटी सी जमीन पर मधुमक्खी पालन कर शहद निकालने का काम लगातार कर रहे हैं।इसके लिए उन्होंने ने करीब 38 लकड़ी के बाक्स बनाए हैं। जिसमें मधुमक्खी शहद बनाने का कार्य करती है।
प्रक्रिया के शुरू होने से लेकर मधु निकलने तक का पूरा प्रोसेस 15 दिन का होता है। इस काम से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि मार्च से लेकर जून महीने का जो समय होता है वह मधुमक्खी पालन के लिए सही होता है। इस दौरान अच्छी मात्रा में शहद निकाला जा सकता है।
अलग-अलग फ्लेवर के मिलते हैं मधु
सैमुएल ने बताया की मौसम के अनुसार मधुमक्खी अलग-अलग जगह से फूलों का रस लाकर शहद बनाती हैं। वर्तमान समय में कुसुम और करंज फ्लेवर का शहद निकाला जा रहा है। बरसात में जामुन का भी शहद निकाला जाता है। इसके अलावा इमली,लीची,पलाश,बेर के समय पर इन सभी चीजों से शहद का निर्माण किया जाता है। सैमुएल का परिवार साल भर में शहद बेचकर लाखों की आमदनी कर रहे हैं।
दूसरे राज्यों के भी लोग ले जाते हैं मधु
सैमुएल के निकाले मधु की मांग इतनी है कि बंदगांव का मधु पश्चिमी सिंहभूम जिले भर ही राज्य के अन्य जिले, रांची, खूंटी, जमशेदपुर,के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लोग शहद खरीद कर लें जाते हैं।
वह कहते हैं कि उन्होंने कई संस्थानों से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण ले रखा है। अब सैमुएल की इच्छा है कि सरकार अगर आर्थिक रूप से मदद करें तो व्यापार को बड़े पैमाने पर शुरू कर स्थानीय बेरोजगार युवाओं को मधुमक्खी पालन से जोड़कर रोजगार मुहैया कराने में मदद करेगा
रिपोर्ट: हरि शर्मा, पश्चिमी सिंहभूम
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