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बढ़ते ट्रैफिक से बिगड़ रही है कोटा शहर की आबोहवा
कोटा में प्रदूषण को लेकर आईआईटी जोधपुर की ओर से रिसर्च स्टडी की गई। इस स्टडी के मुताबिक स्टोन डस्ट यानी पत्थर का चूरा और बढ़ता ट्रैफिक शहर की आबोहवा को बिगाड़ रहा है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर कोटा शहर के लिए आईआईटी जोधपुर की ओर से की गई रिसर्च स्टडी की
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जिसमें क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण मंडल अमित सोनी भी मौजूद रहे। समीक्षा के दौरान कोटा शहर के वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्लान एवं विभिन्न विभागों, इंडस्ट्री आदि की भूमिका पर चर्चा की गई। आईआईटी जोधपुर की रिसर्चर एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपिका भट्टू ने बताया कि कोटा शहर में बढ़ते ट्रैफिक, कंस्ट्रक्शान गतिविधियों से स्टोन डस्ट एवं उद्योगों से होने वाला वायु प्रदूषण किस तरह से शहर के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2025 और वर्ष 2030 तक प्रदूषण का कितना भार सहने की क्षमता कोटा शहर में है। इस रिसर्च स्टडी में ट्रैफिक से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए परिवहन विभाग व यातायात पुलिस विभाग की ओर से सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी), सीएनजी, बायोफ्यूल आदि को बढ़ावा देने, पुराने वाहनों का चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंधित करने, पीयूसी के लिए सख्त नियम बनाकर एवं वाहनों की ओवर लोडिंग के लिए सख्त कार्यवाही के सुझाव दिए गए है। रिपोर्ट के मुताबिक स्टेान डस्ट 65 फीसदी जिम्मेदार है शहर में प्रदुषण के लिए, इसके अलावा बढ़ता ट्रैफिक और धूल बडे़ कारण है। रिपोर्ट में उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए कोयले-लकड़ी के उपयोग में कमी लाने व स्वच्छ ईधन के उपयोग को बढ़ावा देने, नगर विकास न्यास व नगर निगम की ओर से निर्माण कार्यों के दौरान उड़ने वाली डस्ट को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव, पर्दा लगाकर निर्माण एवं उचित वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर वायु प्रदूषण नियंत्रित करने जैसे सुझाव इस रिपोर्ट में दिये गए हैं।
साथ ही नगर निगम की तरफ से रोड़ डस्ट को नियंत्रित किए जाने के लिए मैकेनिकल स्वीपिंग, एंटी स्मॉग गन का उपयोग करने, होटल, रेस्टोरेंट व मैसों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ईंधन, डीजल से होने वाले अनिंयत्रित प्रदूषण को रोकने के लिए स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया है। रिसर्च को तैयार करने में ढाई साल का समय लगा है।
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