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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी एफआईआर को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि जिस पुलिस स्टेशन में यह दर्ज की गई थी, उसके पास मामले की जांच करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की बेंच ने कहा कि अगर कोई संज्ञेय अपराध हुआ है तो शिकायतकर्ता किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा सकता है। यदि पुलिस स्टेशन यह निष्कर्ष निकालता है कि मामले की जांच करने के लिए उसके पास कोई क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार नहीं है, तो उसे इसकी जांच के लिए संबंधित अधिकार क्षेत्र वाले थाने में एफआईआर ट्रांसफर करनी होगी। हालांकि, केवल इस आधार पर किसी एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
द लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सिंगल जज बेंच ने यह बतें एक पति और उसके माता-पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहीं। पति ने अपनी याचिका में आईपीसी की धारा 498-ए के साथ धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत उसकी पत्नी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
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याचिका में आवेदकों ने तर्क दिया कि तलाक की मंजूरी के लिए पति द्वारा दायर याचिका के जवाब में एफआईआर दर्ज की गई थी। यह भी कहा गया कि पत्नी करेली शहर (जहां एफआईआर दर्ज की गई है) में नहीं रहती है, लेकिन इसके बावजूद एफआईआर वहां दर्ज की गई है क्योंकि उसके पिता वहां एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं। इस आधार पर भी एफआईआर रद्द करने की मांग की गई।
पत्नी ने वैवाहिक रिश्ते को बचाने का प्रयास किया
इस मामले की सुवाई करते हुए शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पत्नी अपने वैवाहिक रिश्ते को बचाने के इरादे से जल्द एफआईआर दर्ज नहीं करने का फैसला करती है, लेकिन यह जानने के बाद कि उसके पति ने तलाक की याचिका दायर की है। वह एफआईआर दर्ज करने का फैसला करती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त एफआईआर कोई जवाबी कार्रवाई है। अदालत ने कि पत्नी ने अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया और जब उसने सारी उम्मीद खो दी, तो उसने एफआईआर दर्ज करने का फैसला किया। जिसे अदालत द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता है।
अदालत शिकायतकर्ता के आरोपों पर विचार करती है, रिश्तेदारों की स्थिति पर नहीं
अदालत ने पति के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चूंकि पत्नी के पिता नरसिंहपुर जिला न्यायालय में एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं, इसलिए नरसिंहपुर के करेली शहर में एक झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता का रिश्तेदार एक प्रैक्टिसिंग वकील है, एफआईआर को कमजोर नहीं बनाया जाएगा। अदालत को एफआईआर में लगाए गए आरोपों पर विचार करना है न कि शिकायतकर्ता या उसके रिश्तेदारों की स्थिति पर। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि एक एफआईआर को इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि पुलिस के पास इसे दर्ज करने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।
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