[ad_1]
तेहरान/नई दिल्ली: ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में सोमवार को मौत हो गई. इब्राहिम रईसी की ऐसे वक्त में मौत हुई है, जब मिडिल ईस्ट क्षेत्र में शांति और स्थिरता में तेहरान की भूमिका पर जोर दिया जा रहा है. अब भारत समेत पूरी दुनिया की नजर इस बात पर होगी कि आखिर ईरान का अगला राष्ट्रपति कौन और कैसा होगा? इब्राहिम रईसी के उत्तराधिकारी को लेकर ईरान के मन में क्या चल रहा है, नया राष्ट्रपति रईसी की तरह ही कट्टर छवि वाला होगा या फिर हसन रूहानी जैसा उदार, इस पर भारत की पूरी नजर है और वह काफी करीब और सावधानी से देख रहा है.
दरअसल, सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ईरान की सत्ता में सबसे शक्तिशाली शख्स हैं और अब इब्राहिम रायसी के आकस्मिक निधन से पैदा हुए हालात को ठीक करने के लिए उन्हें कदम उठाना होगा. 63 वर्षीय इब्राहिम रईसी अगस्त 2021 से ही राष्ट्रपति थे. उन्हें कट्टरपंथी छवि का नेता माना जाता था. रईसी को ही ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई का उत्तराधिकारी माना जाता था. अब चूंकि उनकी मौत हो चुकी है, ऐसे में सभी की निगाहें फिर से सुप्रीम लीडर खामेनेई पर होंगी और राष्ट्रपति पद के लिए शीर्ष दावेदारों में से एक सुप्रीम लीडर के बेटे मोजतबा खुमैनी होंगे.
कौन होगा अगला राष्ट्रपति?
मोजतपा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी को काफी लो प्रोफाइल बना रखा है. इतना ही नहीं, उनके पास प्रशासनिक अनुभव की भी कमी है. मगर इब्राहिम रईसी की के चले जाने के बाद ईरान में राष्ट्रपति पद के लिए रेस में वह सबसे आगे रहेंगे. हाल के महीनों में ईरान पर सबका ध्यान 7 अक्टूबर के बाद से हुई घटनाओं के कारण रहा है. 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया था और इसके बाद इजरायल ने गाजा पलटवार कर कत्लेआम मचा दिया.
कट्टरपंथी छवि के रहे हैं रईसी
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, कई लोगों का मानना है कि हमास के हमलों में तेहरान की छाप थी. राष्ट्रपति बनने से पहले रईसी ईरान के पूर्व चीफ जस्टिस और टॉप प्रोसिक्यूटर रहे थे, जिनकी भूमिका 1988 में ईरानी राजनीतिक कैदियों की सामूहिक फांसी में थी. इसी वजह से रईसी की आलोचना की गई थी और उन्हें अमेरिका से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था. 2021 में रईसी के सत्ता में आने के बाद से ईरान ने निश्चित रूप से दक्षिणपंथ की ओर रुख कर लिया है और यूं कहें कि एक कट्टरपंथी रुख अपना लिया है.
ईरान संग क्यों जुड़ा रहा भारत
ईरान में भले ही रईसी के नेतृत्व में कट्टरपंथी सरकार थी, मगर भारत अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए उनके और उनके शासन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था. अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर जोहान्सबर्ग में राष्ट्रपति रईसी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में अन्य द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा दोनों नेताओं ने चाबहार पोर्ट पर लंबित दीर्घकालिक अनुबंध पर चर्चा की थी और चाबहार डील को अंतिम रूप देने और हस्ताक्षर करने के लिए एक स्पष्ट राजनीतिक दिशा दी थी. बता दें कि पिछले हफ्ते नई दिल्ली और तेहरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर 10 साल के लिए डील हो गई.
जब ईरान ने भारतीय नाविकों को रिहा किया
वहीं, जब एक पुर्तगाली जहाज पर सवार भारतीय नाविकों को ईरानी नौसेना ने कैद कर लिया था, तब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बैठकों और फोन कॉल के माध्यम से ईरानी विदेशी अमीर होसैन अमीराब्दुल्लाहियन के साथ भी बातचीत की थी और उनकी रिहाई सुनिश्चित करवाई थी. यह भारतीय हितों को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण था. भारत और ईरान के बीच परस्पर संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है और हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच समकालीन संबंध और बेहतर हुए हैं.
रईसी और पीएम मोदी की पहली मुलाकात
हाल के सालों में 2016 में प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय यात्रा और 2018 में ईरान के पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी की पारस्परिक यात्रा की वजह से दोनों देशों के संबंध और मजबूत हुए. पीएम मोदी और रईसी ने पहली बार सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ प्रमुखों के शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात की थी, जिसके दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग, विशेष रूप से व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई थी. मगर क्योंकि ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंध है, जिसकी वजह से भारत 2018 से ही ईरान से तेल खरीदने में सक्षम नहीं है.
Tags: Ebrahim Raisi, Iran, Iran news
FIRST PUBLISHED : May 21, 2024, 06:58 IST
[ad_2]
Source link