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17 मई शुक्रवार। सुबह करीब साढ़े नौ बजे खरगोन से गुजरने वाले भुसावल चित्तौड़गढ़ हाईवे पर किसानों ने चक्काजाम कर दिया। कुछ ही देर में हाईवे पर वाहनों की कतारें लग गईं। किसानों का आरोप था कि कपास के एक विशेष किस्म के बीज की कालाबाजारी की जा रही है। उन्ह
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खरगोन में हर साल कपास के बीज के लिए ऐसी ही मारामारी होती है। दरअसल, बाजार में कपास के बीज की 100 से ज्यादा किस्म हैं, लेकिन किसान केवल दो किस्म रासी 659 और नुजीवुडू के आशा-1 के बीज की ही डिमांड करते हैं। इसके लिए किसान 40 डिग्री तापमान में भी लंबी लाइन लगाने के लिए तैयार हैं। आखिर निमाड़ में इस विशेष किस्म की डिमांड क्यों है, बीज की इतनी किल्लत क्यों है। दैनिक भास्कर ने खरगोन, बड़वानी के बाजार में जाकर इसकी पड़ताल की। पढ़िए रिपोर्ट…
खरगोन मंडी में कपास के बीज के लिए सुबह 4 बजे से लाइन लगाकर खड़े किसान। इसमें महिलाएं भी शामिल हैं।
बीज के एक पैकेट के लिए दो किमी लंबी लाइन
भास्कर की टीम जब खरगोन मंडी में पहुंची तो यहां बीज का पैकेट लेने के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। व्यवस्था बनी रहे इसलिए पुलिस भी तैनात थी। यहीं मुलाकात हुई टांडा-बरूड़ गांव के निमेश से।
निमेश ने बताया कि वह रात में ही खरगोन आ गया था। सुबह चार बजे मंडी पहुंचा तो यहां उससे पहले भी कई लोग पहुंचकर लाइन लगा चुके थे। निमेश के पास 10 एकड़ खेत है। इसमें खरीफ का कपास लगाने के लिए उसे कम से 10 पैकेट बीज की जरूरत है। वह जिस ब्रांड का बीज चाहता है वह बाजार में नहीं है।
निमेश इस बात से नाराज दिखा कि प्रशासन एक किसान अधिकार पत्र पर दो पैकेट बीज उपलब्ध करा रहा है। निमेश का कहना है कि उसके परिवार का भविष्य अच्छी फसल पर निर्भर है। अगर उसका मनचाहा बीज नहीं मिला तो पर्याप्त उत्पादन नहीं होगा, इससे उसकी आय प्रभावित होगी। निमेश जैसे कई किसान इस समय इसी परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं।
अब जानिए वो कौन सा बीज है जिसके लिए मची है मारामारी
किसान नेता गोपाल पाटीदार बताते हैं कि वैसे तो बाजार में 100 से ज्यादा किस्म के कपास के बीज मौजूद हैं, लेकिन किसानों के बीच रासी सीड्स के रासी 659 और नुजीवुडू के आशा-1 की ही मांग है। इसके पीछे किसानों का अपना गणित है।
दरअसल, इस किस्म के बीज से एक एकड़ क्षेत्र में करीब 12 क्विंटल कपास का उत्पादन होता है। यह पूरा उत्पादन दो बार की तुड़ाई में निकल आता है। इनमें कपास का बीज भी अधिक निकलता है। कपास चुनने वाले मजदूर 6 से 10 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मजदूरी लेते हैं।
इन किस्मों का वजन अधिक है, इसलिए मजदूर आसानी से मिलते हैं। वहीं, अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक खेत खाली हो जाता है। इससे किसान गेहूं-चने की अगली फसल लगाकर दोहरा फायदा ले पाता है। जो दूसरी किस्म के बीज हैं उनका उत्पादन 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ ही है।
वहीं उनकी चुनाई पांच से छह बार करनी पड़ती है। ऐसे में मजदूरों को कम भाव मिलता है और मेहनत अधिक करनी पड़ती है। इसका खेत भी दिसंबर तक खाली होता है, ऐसे में गेहूं की बुवाई भी देर से होती है।
9 लाख पैकेट बीज की जरूरत, उपलब्ध केवल 37 हजार पैकेट
खरगोन के कृषि विभाग के उप संचालक एमएल चौहान का कहना है कि जिले में खरीफ का एरिया 4 लाख 16 हजार हेक्टेयर है। उसमें से दो लाख 25 हजार हेक्टेयर में कपास की फसल लगेगी। इतने खेतों के लिए 9 लाख 78 हजार 891 पैकेट बीज की जरूरत होगी। अभी तक चार लाख 68 हजार पैकेट आ भी चुके हैं।
उन्होंने बताया कि जिस विशेष किस्म के बीज की मांग किसान कर रहे हैं, उसकी उपलब्धता 37 हजार पैकेट ही है। संबंधित कंपनी के अधिकारियों से प्रशासन संपर्क में है। उनसे और माल मंगाया जा रहा है। उसकी दूसरी खेप भी जल्दी पहुंच जाएगी, लेकिन कितनी भी मशक्कत की जाए, ये कंपनियां लाख-डेढ़ लाख पैकेट से अधिक की सप्लाई नहीं कर पाएंगी।
वहीं, कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कपास की बुवाई का सही समय 25 मई के बाद है, लेकिन ग्रामीण परंपरा में अक्षय तृतीया से खेती का काम शुरू हो जाता है। इस बार 10 मई को अक्षय तृतीया थी। किसानों ने बुवाई का मुहूर्त तय कर उसी दिन बीज मांगना शुरू कर दिया। तब पता चला कि बाजार में इतना बीज तो है ही नहीं।
बीज कंपनी के अधिकारी ने कहा- नहीं हुआ पर्याप्त उत्पादन
बीज की कमी को लेकर भास्कर ने जब कंपनी के प्रतिनिधि से बात की तो उसने बताया कि वह मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत नहीं है। ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में उसने कहा कि बीज का उत्पादन आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में होता है।
पिछले सीजन में तूफानी बरसात की वजह से फसलों को नुकसान हुआ था। जो उत्पादन हुआ उसका बड़ा हिस्सा टेस्टिंग में फेल हो गया। इसकी वजह से बीज कम मात्रा में आए। कृषि विभाग के उप संचालक एमएल चौहान ने भी कंपनी के इस दावे की पुष्टि की।
खरगोन के बीज विक्रेताओं ने विशेष किस्म के बीज न होने के बोर्ड लगा दिए हैं।
किसान नेता बोले- कंपनियों ने खुद किया है किल्लत का प्रचार
भारतीय किसान संघ के कमलेश पाटीदार का कहना है कि कंपनियों ने ही बीज की किल्लत को प्रचारित किया है। कंपनियां अपनी मोनोपोली स्थापित करना चाहती है। पाटीदार कहते हैं कि जब किसान मंडी आता है तो इन कंपनियों के प्रतिनिधि किसानों के साथ फोटो सेशन करवाते हैं।
कंपनियां किसानों से कहती है कि उनके बीज की वजह से इतनी अच्छी फसल हुई है। सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ है। इस तरह किसान उनके झांसे में आते हैं। अभी कुछ दिन पहले तक वे गांव-गांव में जाकर किसानों से कहते हुए देखे गए कि इस बार उनका बीज कम आ रहा है। इस तरह से उन्होंने किसानों को बीज की कमी बताकर उन्हें चिंता में डाल दिया।
किसानों, अधिकारियों और बीज कंपनियों से बातचीत के बाद एक तस्वीर यह भी निकलकर आई कि निमाड़ क्षेत्र के किसान ज्यादा उत्पादन चाहते हैं। पिछले कुछ सालों में इन बीजों की किल्लत नहीं देखी गई। इसके पीछे गुजरात से अवैध बीटी कॉटन के बीज की सप्लाई रही है।
गुजरात के कुछ किसानों ने निजी स्तर पर प्रयोग कर कपास के बीज की नई किस्में विकसित की हैं। स्थानीय स्तर पर इसे 4जी कहा जाता है। यह बीज गुजरात से चोरी-छिपे बड़वानी, खरगोन, खंडवा के ग्रामीण बाजारों तक पहुंच जाता है।
जानकार बोले- एक ही किस्म के बीज पर निर्भरता यानी जोखिम
कृषि विभाग के अधिकारी एक-दो किस्मों पर निर्भरता को खतरनाक बता रहे हैं। किसान नेता कमलेश पाटीदार कहते हैं कि इन बीजों में सबसे अधिक पीलेपन और कम जर्मिनेशन की समस्या आती है, लेकिन किसानों के मन में ज्यादा उत्पादन की बात बैठ गई है तो उन्हें किसी भी कीमत पर वही बीज चाहिए।
कृषि विभाग के उप संचालक एमएल चौहान बताते हैं कि एक ही किस्म के बीजों पर निर्भरता के अपने जोखिम हैं। 2019 में हमने यहीं देखा था कि भारी बरसात की वजह से इन विशेष किस्मों वाली फसल बुरी तरह खराब हो गई थी। वहीं दूसरी किस्मों से किसानों को अच्छा फायदा मिला था।
किसानों को बीज देना प्रशासन के लिए बना चुनौती
निजी कंपनियों के बीच और किसानों के बीच का मसला अब प्रशासन के लिए चुनौती बन चुका है। टोकन सिस्टम से बीज वितरण से अव्यवस्था को देखते हुए खरगोन में जिला प्रशासन नई व्यवस्था बना रहा है। कलेक्टर ने जिले में मौजूद विशेष बीज कंपनियों के सात डीलरों और उनके 15 फुटकर विक्रेताओं को बड़ी जगह पर काउंटर लगाने को कहा है।
इन लोगों ने शहर की बड़ी धर्मशालाओं, मंदिरों और सामुदायिक भवनों में अपने काउंटर लगाने की व्यवस्था की है। इन 22 वितरण केंद्रों पर व्यवस्था संभालने के लिए एक-एक पटवारी, कृषि विस्तार अधिकारी और पुलिस के जवान को तैनात करने की योजना है।
सरकारी कर्मचारी किसानों की पावती पर अपनी देखरेख में दो पैकेट प्रति पावती की दर से वितरण कराएंगे, ताकि सभी किसानों को कम से कम दो एकड़ खेत लायक बीज मिल जाए। किसानों को शेष रकबे में दूसरी किस्मों की बुवाई के लिए कहा जा रहा है।
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