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जयपुर के जेके लोन अस्पताल के ब्लड बैंक से प्लाज्मा चोरी मामले में उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने अपनी 10 दिन लंबी जांच पूरी कर ली है। शनिवार को जांच रिपोर्ट चिकित्सा शिक्षा विभाग की एसीएस शुभ्रा सिंह को दी गई।
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रिपोर्ट में कई बड़े चेहरों की मिलिभगत और भूमिका संदिग्ध पाई गई है। कैंसर जैसे गंभीर रोग के मरीजों की जान बचाने वाले प्लाज्मा की चोरी कर करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया गया है। ब्लड बैंक से 76 नहीं, 2 हजार से ज्यादा बैग का रिकॉर्ड गायब मिला है।
पिछले कई सालों से इस चोरी को अंजाम दिया जा रहा था। संडे बिग स्टोरी में पढ़िए रिपोर्ट से जुड़ा खुलासा…
जेके लोन अस्पताल से प्लाज्मा चोरी का आरोपी किशन सहाय कटारिया।
वर्चस्व की लड़ाई बनी साजिश का कारण
सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि सीनियर लैब टेक्नीशियन किशन सहाय कटारिया और ब्लड बैंक के चिकित्सा अधिकारी (एपीओ) डॉ. सतेंद्र चौधरी अलग-अलग निजी ब्लड बैंक से जुड़े हुए थे और सहमति से अपने-अपने ब्लड बैंक को फायदा पहुंचाने के लिए प्लाज्मा खुर्द-बुर्द कर रहे थे।
2021 में एसएमएस ब्लड बैंक से ट्रांसफर होकर जेके लोन में आए किशन सहाय कटारिया ने कुछ समय बाद डॉ. सतेंद्र को कॉन्फिडेंस में लिए बिना अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी थी, जो इंचार्ज होने के नाते डॉ. सतेंद्र को नागवार गुजरी। इसी रंजिश के चलते कटारिया को रंगे हाथों पकड़वाने का सारा खेल रचा गया।
इसमें लैब के दो से तीन कर्मचारी भी शामिल हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि कटारिया की इस चोरी में भूमिका नहीं है। पूरे प्लाज्मा चोरी कांड में कमेटी ने तीन मुख्य किरदारों की भूमिका को संदिग्ध माना है।
कमेटी की जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि अस्पताल के ब्लड बैंक से 2000 से ज्यादा प्जाज्मा बैग गायब मिले हैं।
रटी-रटाई कहानी बताई तो जांच कमेटी को हुआ साजिश का शक
सूत्रों ने बताया कि कमेटी ने जांच के दौरान जब लैब के बाकी टेक्नीशियन से सवाल पूछे तो उनके जवाब और लॉजिक में विरोधाभास नजर आया। चोरी के बारे में सबसे पहले स्टोर इंचार्ज रतनलाल सैनी को सूचना देने वाले लैब टेक्नीशियन संजय सैनी से पूछताछ हुई।
उसने 4 मई की पूरी घटना बताई। सैनी ने बताया कि स्टोर में प्लाज्मा के 4 डीप फ्रीजर हैं। ऐसे ही फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा का भी अलग फ्रीजर है। 4 मई को वह एबी पॉजिटिव का सैंपल ढूंढ रहा था, जिसका मिलान करते समय उसे चोरी का अंदेशा हुआ।
जेके लोन अस्पताल के ब्लड बैंक का कंपोनेंट रूम जहां रक्तदान शिविर से एकत्रित यूनिट्स को लाया जाता है।
यहां से जांच कमेटी को शक हुआ कि अचानक से संजय को काउंटिंग करने की जरूरत कैसे पड़ी। कमेटी मेंबर्स ने उससे पूछा कि जब वह एफएफपी (फ्रेश फ्रॅोजन प्लाज्मा) का सैंपल ढूंढ रहा था तो उसे एफएफपी फ्रीजर में ढूंढना था, प्लाज्मा का फ्रीजर खोलने की क्या जरूरत थी? मरीजों को तो केवल फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा काम आता है, जबकि साधारण प्लाज्मा माइनस 80 डिग्री पर तब तक रखा जाता है, जब तक उसका बेचान न हो। इस सवाल का संजय गोलमोल जवाब देता रहा।
फिर संजय ने आगे की कहानी बताई कि उन्होंने जब कम बैग्स देखे तो अपने सीनियर रतनलाल सैनी को इसकी जानकारी दी। रतनलाल ने डॉ. सतेंद्र को इससे अवगत करवाया। डॉ. सतेंद्र ने ब्लड बैंक में बैग्स चेक करवाए जिसमें 76 प्लाज्मा बैग कम होने की पुष्टि हुई। तब कटारिया से इस बारे में पूछा गया तो वह जवाब नहीं दे पाया। फिर रतनलाल को लिखित में कटारिया के खिलाफ शिकायत देने को कहा गया। इस बीच रविवार को मामला खुल गया और सोमवार को एफआईआर दर्ज करवाई गई।
कई महीनों से चल रहा था खेल
जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि एफएफपी और प्लाज्मा चोरी का यह खेल लंबे समय से चल रहा था। घटना वाले दिन किशन अपनी कार से अस्पताल के इमरजेंसी वाले रास्ते से आया। सुबह 7.50 बजे एंट्री करने के बाद बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाकर सीधे ब्लड बैंक में गया। कमेटी ने एक सीसीटीवी फुटेज जुटाया है, जिसमें वह करीब 10 मिनट बाद ही हाथ में बायो मेडिकल वेस्ट की काले रंग की पन्नी लेकर ब्लड बैंक से बाहर जाता हुआ दिख रहा है।
कमेटी का मानना है कि लैब में पहले से ही बैग में प्लाज्मा भरकर तैयार था क्योंकि इतनी जल्दी प्लाज्मा चुराकर बाहर आना संभव नहीं है। कमेटी ने यह भी पाया है कि कटारिया ने एक बार में ही प्लाज्मा के 76 बैग्स नहीं चुराए। जांच के दौरान जब कमेटी ने उसी साइज का बायो वेस्ट बैग लेकर उसमें प्लाज्मा पैकेट्स डालकर चेक किया तो एक बैग में केवल 39 बैग्स ही आ सके। यानी कटारिया ने उस दिन दो बार में 76 से ज्यादा प्लाज्मा बैग्स लैब से बाहर निकाले थे।
ब्लड बैंक की लैब में लगे हुए 6 सीसीटीवी कैमरे बंद पड़े मिले हैं, वहीं स्टोरेज रूम में लगे सीसीटीवी के भी तार कटे हुए थे।
सीसीटीवी कंपनी पर भी शक
जिस ब्लड बैंक से प्लाज्मा चोरी किया जा रहा था, वहां के सीसीटीवी कैमरों के तार कमेटी को कटे हुए मिले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीसीटीवी कैमरा सर्विस प्रोवाइडर कंपनी टेक्नो सॉल्यूशन की भूमिका भी संदिग्ध है।
कंपनी ने पिछली बार 16 जनवरी को ब्लड बैंक के कैमरों की सर्विस की थी। इसके बाद से पांच महीनों तक ब्लड बैंक के कैमरों की सुध नहीं ली गई। जबकि कंपनी का प्रतिनिधि इस बीच एक बार फिर से आया और जेके लोन अस्पताल के अन्य कैमरों की सर्विस कर चला गया। दूसरी बार भी ब्लड बैंक के सीसीटीवी कैमरे नहीं जांचे गए।
ब्लड बैंक के कर्मचारियों को इस तरह की चोरी का अंदेशा पहले से था। इसी वजह से कई बार लिखित और मौखिक रूप से सीसीटीवी कैमरा की संख्या बढ़ाने, चौकीदार रखने, डीप फ्रीजर उपलब्ध करवाने और अन्य सुरक्षा सुविधाएं बढ़ाने के लिए कहा गया लेकिन फाइनेंस डिपार्टमेंट ने भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
भास्कर की पड़ताल पर कमेटी की मुहर
भास्कर ने इस मामले में जिन चार लोगों को जिम्मेदारों माना था कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में वही बताया है। अस्पताल सुपरिटेंडेंट डॉ. कैलाश मीणा, ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. सतेंद्र चौधरी और सीनियर लैब टेक्नीशियन किशन सहाय कटारिया कमेटी की रिपोर्ट में आरोपी पाए गए हैं। किशन सहाय कटारिया ने पुलिस के सामने खुद प्लाज्मा चोरी करना स्वीकार किया है। वहीं लैब के दो टेक्निशयन की भूमिका को भी संदिग्ध माना है।
पूरे मामले में चोरी करते पकड़ा गया किशन कटारिया, ब्लड बैंक के चिकित्सा अधिकारी डॉ. सतेंद्र चौधरी और जेकेलोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. कैलाश मीणा शक के घेरे में हैं। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद सीनियर लैब टेक्नीशियन किशन और डॉ. सतेंद्र पर सीसीए नियम 16 के तहत विभागीय कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं।
एसएमएस थाने के जांच अधिकारी एएसआई बीरेंद्र सिंह ने बताया कि किशन सहाय के मोबाइल से डिलीट डेटा रिकवर करने की कोशिश जारी है।
जेके लोन अस्पताल अधीक्षक की क्या भूमिका?
जांच में कमेटी ने पाया कि यह प्लाज्मा चोरी एक डेढ़ साल से चल रही थी। अस्पताल सुपरिटेंडेंट होने के नाते अधीक्षक कैलाश मीणा ने अपने स्तर पर कभी ब्लड बैंक का औचक निरीक्षण करना जरूरी नहीं समझा। रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2018 से मई 2024 के बीच करीब 16,000 यूनिट प्लाज्मा बनाया गया। इसमें से अस्पताल प्रशासन ने केवल 14,000 यूनिट प्लाज्मा ही टेंडर के जरिए कंपनियों को बेचा था। बाकी बचे हुए 2000 प्लाज्मा बैग्स का हिसाब अस्पताल प्रशासन और ब्लड बैंक के पास नहीं है।
तो क्या 6 साल से चल रही थी चोरी?
मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ब्लड बैंक में यह चोरी साल 2018 में जेके लोन में अलग से ब्लड बैंक स्थापित होने के बाद से ही चलता आ रहा है। कमेटी ने 2018 से 2024 तक के रिकॉर्ड खंगालने के बाद पाया कि बीते छह साल में 14 से 15 लाख (सरकारी रेट 400 रुपए प्रति बैग के हिसाब से) का प्लाज्मा चोरी छिपे बेचा गया है। वहीं 2000 से ज्यादा प्लाज्मा बैग्स का रिकॉर्ड नहीं मिला है। जांच रिपोर्ट में एसके सोनी हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में भी जेके लोन ब्लड बैंक के एक्स्ट्रा बैग्स मिले हैं, जिनकी जांच की जाएगी।
जांच कमेटी ने 10 दिन में तैयार की रिपोर्ट
प्लाज्मा चोरी मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद कमेटी का गठन 8 मई को किया गया था। इस कमेटी में चिकित्सा शिक्षा मुख्यालय से अतिरिक्त निदेशक अस्पताल प्रशासन डॉ. सुशील परमार, अप वित्तीय सलाहकार सुरेश चंद जैन, अतिरिक्त निदेशक एड्स डॉ. केसरी सिंह, औषधि नियंत्रक प्रथम डॉ. अजय पाठक शामिल थे। कमेटी ने ब्लड बैंक के स्टाफ का सत्यापन, ऑडिट और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर अपनी रिपोर्ट 10 दिन में तैयार कर सौंप दी है।
इन सवालों के जवाब अब भी मिलना बाकी
- किशन कटारिया ने प्लाज्मा क्यों चुराया, इसे वह कहां और कितनी कीमत में बेचता था?
- डॉ. सतेंद्र और सस्पेंड चल रहे सीनियर लैब टेक्निशियन किशन सहाय कटारिया, दोनों के ही निजी ब्लड बैंक के साथ क्या कनेक्शन है।
- सीसीटीवी फुटेज किसने डिलीट किए और तार किसने व किसके कहने पर काटे?
- सबूतों की फॉरेंसिक जांच क्यों नहीं की गई?
- आरोपी को जमानत मिल गई, पुलिस की जांच इतनी सीमित और सुस्त होने का क्या कारण है?
ब्लड बैंक में चोरी रोकने का भी इंतजाम होगा
अब प्रदेश के सभी ब्लड बैंक को स्पेशल ऑपरेशन प्रोटोकॉल के तहत खास सॉफ्टवेयर से जोड़ा जाएगा। इस सॉफ्टवेयर के जरिए प्रदेश के सभी सरकारी ब्लड बैंक का प्रतिदिन का डाटा अपडेट कर सहेजा जाएगा। इसकी ऑडिट आसानी से की जा सकेगी। साथ ही ब्लड बैंकों को स्पेशल ट्रेनिंग भी दी जाएगी ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही को रोका जा सके।
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