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Chabahar Port Deal : दस साल के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत को मिल गया, अब इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. आखिर इससे भारत को क्या फायदा होगा यह भी महत्वपूर्ण पॉइंट है. दरअसल, चाबहार बंदरगाह का लाभ उठाकर भारत पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और उससे आगे मध्य एशिया तक पहुंचना चाहता है. चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इससे भारत पाकिस्तान को बाईपास करने में भी सक्षम होगा. अभी तक भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान की जरूरत पड़ती थी. इस रणनीतिक बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन की मदद से विकसित ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है. चाबहार और ग्वादर के बीच समुद्र के रास्ते में सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी है. इसे आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर से जोड़ने की योजना है, जिससे ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारत की कनेक्टिविटी आसान हो जाएगी. 7200 किलोमीटर लंबा ये कॉरिडोर भारत को ईरान, अजरबैजान के रास्ते होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ेगा.
21 साल से लटका था समझौता
चाबहार बंदरगाह का मामला 21 साल से लटका हुआ था. इसको लेकर चर्चा 2003 से चली आ रही है. 2013 में भारत ने 100 मिलियन डॉलर के निवेश करने को कहा था. चाबहार बंदरगाह पर साझेदारी 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान हुई. 2018 में तत्कालीन ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बंदरगाह में भारत की भूमिका का विस्तार करने पर चर्चा की थी और तब से अब जाकर यह डील हुई. नया 10-वर्षीय समझौता मूल अनुबंध को खत्म करने के लिए डिज़ाइन हुआ है, जो चाबहार पोर्ट के संचालन में भारत की भागीदारी के लिए और अधिक मजबूत ढांचा प्रदान करेगा. मीडिल ईस्ट और पश्चिम एशिया में युद्ध की वजह से प्रमुख व्यापार मार्ग बाधित हो गए हैं, इसलिए डील के जरिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मजबूत करने पर जोर दिया गया है. बता दें कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अप्रैल में ही बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के सिटवे बंदरगाह का नियंत्रण संभालने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
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