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चुनावी समर के बीच केंद्रीय गृह मंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले अमित शाह ने कहा था, “पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा है, जिस वापस पाना हर भारतीय का लक्ष्य है.”
न्यूज एजेंसी ‘पीटीआई’ को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी बोले थे- भारत पीओके पर दावा कभी नहीं छोड़ेगा पर उसे बलपूर्वक भी कब्जा नहीं करना पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि कश्मीर में विकास को देखने के बाद वहां के लोग खुद ही भारत का हिस्सा बनना चाहेंगे.
ओडिशा के कटक में पांच मई, 2024 को केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ.एस जयशंकर ने बताया था, “पीओके कभी देश से बाहर नहीं था. यह हमेशा से देश का हिस्सा रहा. देश की संसद में संकल्प पारित हुआ कि पीओके भारत का हिस्सा है. फिर दूसरे लोगों का इस पर नियंत्रण कैसे हो गया? अब हो जाता है…, जब घर का मुखिया जिम्मेदार नहीं होता है तो बाहर वाले आकर चीजें चुरा ले जाते हैं.आपने दूसरे देश को घुसने दिया…क्योंकि हमने आजादी के बाद शुरुआती दिनों में पाकिस्तान से उन इलाकों को खाली कराने का प्रयास नहीं किया और यह दुःखद स्थित जारी रही. हालांकि, मैं हमेशा कहता हूं कि आज पीओके लोगों की चेतना में लौट आया है.”
दरअसल, पीओके दो हिस्सों में विभाजित है, जिसका एक हिस्सा गिलगिट बाल्टिस्तान के तौर पर जाना जाता है. यह 64,817 किमी स्क्वायर क्षेत्र में फैला, जबकि दूसरा हिस्सा पीओके है और वह 13,297 किमी स्क्वायर में फैला है.
देश की आजादी से पहले जम्मू कश्मीर के हिंदू राजा हरि सिंह के लगाए अधिक टैक्स के चलते मुस्लिम जनता उनका विरोध करने लगी थी. राजा और प्रजा के अलग-अलग धर्म तब दोनों पक्षों में अंतर्विरोध का बड़ा आधार बने थे.
1947 में भारत जब आजाद हुआ तब पाकिस्तान को लग रहा था कि कश्मीर उनका है. यही वजह है कि तब पाक के पश्तून लोग कश्मीर में घुस आए थे. राजा हरि सिंह इस बात से घबरा गए थे. उन्होंने सरदार वल्लभ पटेल का रुख किया. पटेल साहब ने तब कहा था, “हमारे साथ मिल जाएं. हम सेना भेजेंगे जो पाकिस्तान से आए लोगों को बाहर करेगी.”
सरदार वल्लभ भाई पटेल के इस प्रस्ताव के बाद राजा हरि सिंह ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ (एग्रीमेंट) पर साइन किया. हालांकि, इसके बाद भी भारत की सेना तब पाक के लोगों को पीओके के साथ सटी जम्मू और कश्मीर सीमा तक ही निकाल पाई थी.
आगे 1948 में पंडित जवाहर लाल नेहरू इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) पहुंच गए. वहां एक प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि जो जहां है, वह वहीं रुक जाए. यूएन ने इसके साथ ही जनमत संग्रह की बात कही थी. पाकिस्तान तो फौरन राजी हो गया पर भारत ने शर्त रखी कि जब तक पाकिस्तानी इंडिया की सरजमीं नहीं छोडेंगे, तब तक लोगों से राय नहीं ली जाएगी. पाक के पश्तून लोगों के भारत से जाने के बाद ही जनमत संग्रह होगा.
एक्सपर्ट्स के हिसाब से पीओके को हासिल करने के जो संभावित तरीके और रणनीतियां हैं, उनमें पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था (खासकर बलूचिस्तान में) को तोड़ना, वहां बिजली और इंटरनेट जैसे जरूरी बुनियादी फैक्टर्स को बाधित करना, अफगानिस्तान को सॉफ्ट पावर के रूप में इस्तेमाल करना और चीन के साथ शांति वार्ता (ड्रैगन, चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर के बजाय सी रूट अपनाए- इस पर राजी करने के संदर्भ में) करना आदि शामिल हैं.
पीओके भारत के लिए कई मायनों में बेहद अहम है. यह विभिन्न देशों (पाकिस्तानस अफगानिस्तान, वखान कॉरिडोर और चीन) के साथ सीमा साझा करता है. पीओके इसके अलावा ताजे पानी का भी बड़ा स्रोत है, जबकि वहां के मीरपुर और मुज्जफराबाद में सोना, कोयला, चॉक, ग्रेफाइट और बॉक्साइट जैसे प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं.
चीन ने मोटी रकम खर्च करके जो चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर तैयार किया है, वह भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से पास होता है. ऐसे में यह भारत की संप्रभुता के लिए बड़ा संकट साबित हो सकता है.
Published at : 08 May 2024 01:55 PM (IST)
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