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तिर्वा मेडिकल कॉलेज के पास स्थित किसान बाजार
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
कहावत है देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर…तिर्वा विधानसभा क्षेत्र में सियासी चेहरों के साथ कुछ ऐसा ही होता रहा है। भौगोलिक और मतदाताओं की संख्या के नजरिये से जिले की तीन विधानसभा सीट में सबसे छोटी सीट है तिर्वा, लेकिन इससे इसका सियासी रुतबा कम नहीं है। इसे कम करके आकने की भूल अक्सर नेताओं को गहरी चोट पहुंचाती है। औरेया और कानपुर देहात की सीमा से लगे इस विधानसभा क्षेत्र में वह सब सुविधाएं मुहैया हैं, जो अमूमन एक बड़े शहर में होने की कल्पना की जाती है।
तिर्वा में राजकीय मेडिकल कॉलेज को बने हुए दो दशक होने को आए हैं। उस दौरान इस छोटे से इलाके में मेडिकल कॉलेज की बात करना अटपटा समझा जाता था। विकास का पहिया यहीं नहीं रुका। मेडिकल कॉलेज के बाद इसी से चंद किलोमीटर की दूरी पर राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई। बाद में मेडिकल कॉलेज में ही कैंसर अस्पताल की विशाल इमारत बनकर तैयार हुई। उसी के पास कार्डियोलॉजी की शानदार इमारत को बने हुए भी सात साल से ज्यादा हो गए। यह अलग बात है कि यह दोनों ही अस्पताल अब तक सिर्फ देखने भर के ही हैं। कॉर्डियोलॉजी का संचालन शुरू नहीं हो सका है।
कैंसर अस्पताल में कुछ महीने पहले सिर्फ ओपीडी शुरू की गई है। स्टाफ नहीं मिलने से मेडिकल कॉलेज की टीम ही काम कर रही है। ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को मेडिकल में कॅरियर बनाने के लिए यहां पैरा मेडिकल कॉलेज भी बना हुआ है। किसानों को तकनीक से जोड़ने के लिए इस्राइल के वैज्ञानिकों की मदद से एक्सीलेंस सेंटर बना है। गोपालकों की आर्थिक हालत को बेहतर बनाने के लिए काऊ मिल्क प्लांट बना है। बजट के अभाव में यह करीब दो साल से बंद पड़ा है। फकीरेपुरवा में सोलर प्लांट बना था। उसे भी बंद हुए चार साल होने को है। सौरिख में बना स्टेडियम बदहाल पड़ा है।
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