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– फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम आदेश में राज्य सरकार से पूछा है कि सरकारी अस्पतालों में पहले के आदेश के तहत अग्निशमन के क्या उपाय किए गए हैं। वहीं, अफसरों से जवाब मांगा है कि अब तक सरकारी अस्पतालों में आग लगने की कितनी घटनाएं हुई हैं? जिनसे मरीजों व तीमारदारों की मौत हुई या घायल हुए।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने वी द पीपल संस्था की वर्ष 2016 में दाखिल जनहित याचिका में दिया। इसमें उस समय एक सरकारी अस्पताल में हुए अग्निकांड का हवाला देकर प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में अग्निशमन के इंतजाम करने का अनुरोध किया गया था। याची का कहना था कि ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में आग से बचाव की व्यवस्था नहीं है।
उधर सरकारी वकील ने बताया कि पहले ही इस मामले में सरकार का जवाब याची को दिया जा चुका है। इस पर कोर्ट ने पाया कि सरकार का जवाब रिकॉर्ड पर नहीं है। कोर्ट ने अपने दफ्तर को आदेश दिया कि कहे गए सरकार के जवाबी हलफनामे को तलाश कर रिकॉर्ड पर लाया जाए। मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
एक अन्य पीआईएल पर पूछा, कितने सरकारी अस्पतालों में हैं वेंटिलेटर
लखनऊ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक जनहित याचिका पर राज्य सरकार से पूछा है कि प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में कितने वेंटिलेटर हैं? कोर्ट ने हर जिले का ब्योरा पेश करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश वी द पीपल संस्था के महासचिव प्रिंस लेनिन की वर्ष 2016 में दाखिल याचिका पर दिया। इसमें स्थानीय पीजीआई समेत केजीएमयू में वेंटिलेटरों की उपलब्धता का मुद्दा उठाया गया था।
कोर्ट ने कहा कि ये दोनों अस्पताल लखनऊ में हैं। हम जानना चाहते हैं कि प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में कितने वेंटिलेटर हैं। इनमें से कितने चालू हैं और कितने बंद हैं। कोर्ट ने सरकारी वकील को चार हफ्ते में जिलावार इनका ब्योरा जवाबी हलफनामे पर दाखिल करने का आदेश दिया। इसके बाद मामले की अगली सुनवाई नियत की है। सुनवाई के समय केजीएमयू के वकील ने कोर्ट को बताया कि वहां 394 वेंटिलेटर हैं। इनमें एक खराब है, जिसकी रिपेयरिंग की जा रही है।
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