[ad_1]
Rahul Gandhi Amethi to Raebareli: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली से नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद शुक्रवार को कहा कि उनकी मां सोनिया गांधी ने भरोसे से उन्हें अपनी कर्मभूमि सौंपी है। उन्होंने कहा कि वह उनके विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। नामांकन दाखिल करने के बाद राहुल ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “रायबरेली से नामांकन मेरे लिए भावुक पल था! मेरी मां ने मुझे बड़े भरोसे के साथ परिवार की कर्मभूमि सौंपी है और उसकी सेवा का मौका दिया है। अमेठी और रायबरेली मेरे लिए अलग-अलग नहीं हैं, दोनों ही मेरा परिवार हैं और मुझे खुशी है कि 40 वर्षों से क्षेत्र की सेवा कर रहे किशोरी लाल जी अमेठी से पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे।”
इसके आगे राहुल गांधी ने लिखा, “अन्याय के खिलाफ चल रही न्याय की जंग में, मैं मेरे अपनों की मोहब्बत और उनका आशीर्वाद मांगता हूं। मुझे विश्वास है कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने की इस लड़ाई में आप सभी मेरे साथ खड़े हैं।”
रायबरेली में नामांकन दाखिल करने के बाद राहुल गांधी पुणे चले गए, जहां उन्हें चुनावी सभा को संबोधित करना था। वहां उन्होंने फिर से अपने मंसूबों और चुनावी समीकरणों के लिए जरूरी सियासी समीकरणों और फॉर्मुले की बात की। पुणे में राहुल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की ‘न्याय’ गारंटी राजनीति के तौर तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। उन्होंने भाजपा पर संविधान बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर संविधान बदल दिया गया तो भारत की पहचान खत्म हो जाएगी।
पुणे में चुनावी रैली में राहुल गांधी ने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा खत्म कर सकते हैं? राहुल जाति जनगणना की भी बात कर रहे हैं। यानी राहुल मोहब्बत से अपनी बात शुरू कर न्याय, संविधान और आरक्षण को लेकर फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहे हैं। 2024 के चुनाव में यह राहुल का बदला-बदला अंदाज है।
2004 में जब उन्होंने राजनीति में पदार्पण किया था और पहला चुनाव लड़ा था, तब भी उन्हें उनकी मां सोनिया गांधी ने अपनी कर्मभूमि और अपने परिवार की परंपरागत सीट अमेठी सौंपी थी। तब राहुल ने कहा था कि उनकी राजनीति ‘दिल की राजनीति’ है और वह अमेठी के लोगों के साथ ‘वन-टू वन संबंध’ स्थापित करने के लिए आए हैं। उन्होंने तब कहा था, ‘‘मैं चुनाव नहीं, दिल जीतने आया हूं।’’
अमेठी छोड़ रायबरेली क्यों गए राहुल गांधी, मजबूरी या जरूरी? क्या है कांग्रेस की रणनीति
राहुल ने तब ये भी कहा था कि उनका दिल भारत के लिए धड़कता है और आगे भी देश के लिए धड़कता रहेगा। राहुल जब करीब तीन लाख वोटों से जीते तो उन्होंने कहा था कि यह काम की जीत है और उनके मां के कर्मों का फल है। उन्होंने भी अमेठी के सांसद के तौर पर खूब काम किया और 2009 का आम चुनाव 3.70 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीता। हालांकि, 2014 में जब भाजपा और मोदी की लहर आई तो उनकी जीत का मार्जिन 1.07 लाख तक सिमट गया और 2019 तक आते-आते वह 55 हजार वोटों के अंतर से भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए। राहुल को इसका अंदाजा था, इसलिए उन्होंने केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा और वहां से जीत दर्ज की। इस बार भी वह वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी पारिवारिक सीट रायबरेली को बचाने भी उतरे हैं, जहां वह न्याय की जंग में, अपनों की मोहब्बत और उनका आशीर्वाद मांग रहे हैं।
2019 के चुनावों में भी राहुल गांधी ने मोहब्बत और न्याय की बात कही थी लेकिन जब 2022 में उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की तो उनकी मोहब्बत रंग दिखाने लगी। दो चरणों में उन्होंने 10 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय की। इस दौरान उन्होंने किसानों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों, छात्रों समेत समाज के हर तबके संग संपर्क किया और देश में नफरत की जगह भाईचारा और मोहब्बत की बात की। उन्होंने न्याय की गारंटी की बात की।
2024 का आम चुनाव आते-आते राहुल ने बहुजन राजनीति को भी समेटने की कोशिश की और समाज के दलित और ओबीसी जैसे बड़े वर्ग को साधने के लिए जाति जनगणना कराने, आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा करने और संविधान बचाने का आह्वान कर दिया। कुल मिलाकर देखें तो दिल की बात करने वाले राहुल कांग्रेस की पुरानी परंपराओं और वर्जनाओं से निकलते हुए एक नई कहानी लिखने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें मोहब्बत,न्याय की गारंटी, आरक्षण की गारंटी, संविधान बचाने की गारंटी समेत सर्वसमावेशी सामाजिक समीकरण और चुनावी जीत के सूत्रवाक्य बड़े और लजीज चुनावी मसाले हैं।
[ad_2]
Source link