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नई दिल्ली. ‘जिंदगी एक नाटक ही तो है, लेकिन जिंदगी और नाटक में फर्क है, नाटक को जहां चाहो, जब चाहो बदल दो, लेकिन जिदंगी के नाटक की डोर तो ऊपर वाले के हाथ होती है’. राज कुमार के इस फेमस डायलॉग को लोग आज भी अक्सर उसी अंदाज में बोल बैठते हैं. ये तो सच है कि जिंदगी और नाटक में फर्क है. अक्खड़ स्वभाव वाले राज कुमार की जिंदगी पर भी ये डायलॉग फिट बैठता है. लोगों के मुंह पर साफ-साफ बोलने वाले राज कुमार अपनी सीधी बात से लोगों को मूड को खराब कर देते थे. लेकिन, हठी और अकड़ू की इमेज से इतर उनके दिल में प्यार भी बहुत था. उन्हें एक बार नहीं 3-3 बार टूटकर प्यार हुआ, बस फर्क इतना रहा, दो बार ये प्यार एकतरफा था.
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