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महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र
– फोटो : अमर उजाला
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संकटमोचन संगीत समारोह के मंच पर देश और दुनिया के दिग्गज कलाकार हाजिरी लगा चुके हैं। 101वें साल में यह पहला मौका है जब महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने गुंदेचा बंधुओं के साथ साथ मंच साझा किया। इसके साथ ही वह अपने दादा पं. अमरनाथ मिश्र के बाद दूसरे महंत बन गए जिन्होंने संगीत समारोह की व्यवस्था संभालने के साथ मृदंगम पर अपनी कला का प्रदर्शन भी किया है।
आईआईटी के प्रोफेसर होने के बाद भी संगीत से महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र का ऐसा लगाव है कि वह समय निकालकर अभ्यास करते हैं। प्रो. मिश्र ने बताया कि महज 10 साल की अवस्था से उन्होंने पखावज वादन का प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। उनके दादा और गुरु पं. अमरनाथ मिश्र, पिता प्रो. वीरभद्र मिश्र भी पखावज वादन में सिद्धहस्त थे।
दादा पं. अमरनाथ मिश्र का 1980 में निधन होने के बाद अभ्यास छूट गया था लेकिन 2016 में उन्होंने फिर से पखावज पर थाप देनी शुरू की और अभ्यास निरंतर बना रहा। प्रो. मिश्र ने बताया कि दैनिक जीवनचर्या अधिक व्यस्त होने के कारण रोज अभ्यास करने का समय नहीं मिल पाता। इसके बावजूद कभी-कभी समय निकालकर अभ्यास जरूर करते हैं। संगीत परमात्मा से सीधे जुड़ने का सबसे सरल माध्यम है।
प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने कहा कि कभी नहीं सोचा था कि संकटमोचन मंदिर के संगीत समारोह में मंच साझा करूंगा। हनुमान जी की प्रेरणा और इच्छा से ही यह संभव हुआ है। संगीत सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। जब भी आपके मन में सीखने का विचार आए आप शुरुआत कर सकते हैं। मंच पर आज जब बेहतर करते हैं तो जनता स्वागत करती है और आप बेहतर नहीं करते हैं तो फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। संगीतज्ञों की परीक्षा तो ज्यादा कठिन होती है।
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