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जयपुर18 मिनट पहलेलेखक: समीर शर्मा
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राजस्थान में दूसरे चरण की 13 सीटों पर मतदान पूरा हो गया है। राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर 19 अप्रेल को वोटिंग हुई थी, तब 57.87 फीसदी मतदान हुआ था। दूसरे चरण की 13 सीटों पर 64.60 प्रतिशत मतदान हुआ है, जो पहले चरण की तुलना में 6.73 फीसदी अधिक है।
पहले चरण में कम वोटिंग के बाद राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग ने वोटिंग बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, उसमें वे काफी हद तक कामयाब भी हुए हैं। सभी 25 सीटों की बात करें तो कुल मतदान करीब 61.23 प्रतिशत हुआ, जो पिछले लोकसभा चुनाव (67.75) से करीब 5.11 फीसदी कम रहा।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, दूसरे चरण में अच्छी वोटिंग ने खास तौर पर भाजपा को काफी राहत दी है। वहीं, कांग्रेस खेमे में कुछ तनाव है। माना जा रहा है कि भाजपा का प्रदर्शन पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण वाली सीटों पर ज्यादा बेहतर हो सकता है। पहले चरण की कम वोटिंग से आलाकमान ने प्रदेश संगठन को दूसरे चरण की वोटिंग बढ़ाने को कहा था। हालांकि इस वोटिंग पैटर्न के संकेतों को दोनों ही पार्टियां डीकोड करने में जुट गई हैं।
खास बात यह रही कि यदि दूसरे चरण की 13 सीटों की ही आपस में तुलना करें तो वहां वोटिंग प्रतिशत अधिक रहा, जहां कांटे या मजबूत त्रिकोणीय मुकाबला था। इसी नजरिए से देखें तो जिन सीटों पर जातिगत समीकरण हावी रहे, वहां भी वोटिंग प्रतिशत अच्छा रहा।
पढ़िए, हर सीट पर पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले कितना कम-ज्यादा रहा वोटिंग प्रतिशत…
मतदान की पिछले लोकसभा चुनाव से तुलना
इन 13 सीटों पर 2014 में औसतन 64.36 प्रतिशत और 2019 में औसतन 67.75 प्रतिशत मतदान हुआ था। लेकिन, इस चुनाव में इन 13 सीटों पर औसतन 64.60 वोटिंग हुई, जो इन्हीं 13 सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 3.15 प्रतिशत कम है।
इन 13 सीटों के वोटिंग ट्रेंड को देखें तो इस चुनाव में बाड़मेर और कोटा 2 सीटें ऐसी हैं, जिन पर 2019 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा वोटिंग हुई।
ताजा वोटिंग पैटर्न के कारण, कहते हैं एक्सपर्ट
इन 13 सीटों की बात करें तो पिछले चुनाव के मुकाबले जिन सीटों पर वोटिंग ट्रेंड बढ़ा है, उन पर स्थानीय समीकरण का आधार देखने को मिला है। जैसे कांटे का मुकाबला, जातिगत समीकरण या त्रिकोणीय मुकाबला आदि। लेकिन, एक सप्ताह पहले हुए पहले चरण की 12 सीटों का वोटिंग ट्रेंड भी इस तरह का रहा था।
आमतौर पर देखा जाए, तो पिछले दो लोकसभा चुनावों में राजस्थान की सभी सीटों पर वोटिंग पर्सेंटेज ने अच्छा खासा उछाल लिया था। लेकिन, इस बार चुनावी मुद्दे, लहर या नाराजगी जैसे कारण नजर नहीं आए, जो वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं।
भास्कर एक्सपर्ट : महेश शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार) और नारायण बारेठ (वरिष्ठ पत्रकार)
पिछले चुनावों के रिकॉर्ड देंखें, तो कहा जा सकता है कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के मोटे तौर पर 3 कारण होते हैं। पहला बड़ा मुद्दा, दूसरा कोई लहर और तीसरा सरकार से नाराजगी।
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में ये तीनों ही कारण वोटिंग ट्रेंड में नजर आए। 2009 में किसान बड़ा मुद्दा बना। यूपीए सरकार ने किसानों के कर्ज माफ किए और राजस्थान में कांग्रेस ने 20 सीटें जीतीं। तब वोटिंग प्रतिशत 48.41 रहा।
ऐसे ही 2014 में मोदी लहर को सभी ने महसूस किया था और केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार, आतंकवाद के खिलाफ ढिलाई वाले रवैये से नाराजगी ने और ‘तड़का’ लगा दिया था। वोटिंग प्रतिशत राजस्थान में 2009 की तुलना में 15 फीसदी बढ़कर 63.11 प्रतिशत हुआ।
इसके बाद लोकसभा चुनाव-2019 में पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रीयता की लहर पूरे देश में चल रही थी और बदले की भावना सभी के दिलों में थी। भारत ने एलओसी के पार जाकर एयरस्ट्राइक के जरिए आतंकियों से बदला भी लिया। तब राजस्थान में वोटिंग पर्सेंटेज 2014 की तुलना में तीन फीसदी और बढ़ गया और 66.34 प्रतिशत जा पहुंचा था।
अब सीट वार पढ़िए, वोटिंग प्रतिशत घटने-बढ़ने से किस सीट पर क्या बन रहे हैं समीकरण…
बाड़मेर : त्रिकोणीय टक्कर, जातिगत ध्रुवीकरण और वोटिंग ट्रेड पर असर
सबसे पहले बात बाड़मेर की करते हैं। राजस्थान में सबसे रोचक मुकाबले वाली सीट कोई मानी गई, तो वह है बाड़मेर। राजस्थान की 13 सीटों पर हुए मतदान को देखें, तो बाड़मेर में सबसे अधिक वोटिंग (74.25) हुई। यहां पिछले लोकसभा चुनाव में 73.30 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस बार वोटिंग में मामूली बढ़त देखने को मिली।
यहां केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के सामने आरएलपी से कांग्रेस में शामिल हुए उम्मेदाराम बेनीवाल के बीच निर्दलीय रवींद्र भाटी ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में शिव सीट से भाजपा से टिकट नहीं मिलने से भाटी बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे थे और विधायक बने। भाटी की रैलियों में आई भीड़ ने सभी को चौंकाए रखा था।
यहां भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी एक ही समाज के होने के कारण और निर्दलीय उम्मीदवार के राजपूत समाज के होने के कारण, यहां जातिगत ध्रुवीकरण भी हावी है।
जोधपुर : 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी, एक पर कांग्रेस
जोधपुर सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 5 फीसदी कम मतदान हुआ है। ये लोकसभा क्षेत्र भाजपा के गढ़ में से एक माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव को देखें तो इस लोकसभा में आने वाले में 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 7 भाजपा के खाते में चले गए थे। केवल पूर्व सीएम अशोक गहलोत अपनी सीट बचा सके थे।
कांग्रेस की एक मात्र पूर्व सीएम अशोक गहलोत की सीट सरदारपुरा में विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा में 1.65 फीसदी कम वोटिंग हुई। इस लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से नाराजगी जताने वाले विधायक बाबू सिंह राठौड़ की सीट शेरगढ़ में विधानसभा चुनाव के मुकाबले 15.12 फीसदी कम या ज्यादा वोटिंग हुई।
जालोर : इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के कारण ये सीट हॉट सीट मानी जा रही है। गहलोत और उनके पूरे परिवार वैभव के प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। वैभव ने पिछला चुनाव जोधपुर सीट से लड़ा था।
इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 3.18 फीसदी कम मतदान हुआ है।
बांसवाड़ा : विधानसभा सीटें – बीजेपी – 3, कांग्रेस – 4, बीएपी – 1
राजस्थान में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सबसे अधिक उठापटक वाली सीट रही। यहां पिछली गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने भाजपा का दामन थाम लिया। यहां कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतारा और बाद में बीएपी से गठबंधन किया। लेकिन रोचक यह भी है कि कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना पर्चा वापस भी नहीं लिया।
बांसवाड़ा सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले मामूली सा कम 0.13 फीसदी मतदान देखने को मिला। मालवीय के कई बार विधायक रहने के कारण बागीदौरा सीट पर सभी की नजरें थीं। यहां वोटिंग विधानसभा चुनाव के मुकाबले 10.64 फीसदी कम हुई है।
कोटा लोकसभा सीट
कोटा में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सामने कांग्रेस की टिकट पर खड़े हुए भाजपा के बागी नेता प्रहलाद गुंजल हैं। पहले दोनों के बीच दोस्ती चर्चित थी और अब चुनावी अदावत।
कड़ी टक्कर के कारण राजस्थान की हॉट मानी जाने वाली इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 1.20 फीसदी ज्यादा मतदान देखने को मिला।
चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीट
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी इस सीट से दूसरी बार इस सीट से ताल ठोक रहे हैं। इस कारण ये सीट चर्चा में है। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 4.08 फीसदी कम मतदान देखने को मिला। वोटिंग ट्रेंड बढ़ने का कारण दो क्षेत्रीय बड़े नेताओं के बीच के कड़े मुकाबले को माना जा रहा है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने से चित्तौड़गढ़ सीट से निर्दलीय जीते भाजपा के बागी चंद्रभान सिंह आक्या की सीट पर विधानसभा चुनाव के मुकाबले 14.21 फीसदी कम वोटिंग हुई।
ये लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली सीटों में से एक है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 7 सीटें जीती थीं।
झालावाड़-बारां लोकसभा सीट
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गढ़ इस सीट को माना जाता है। यहां से राजे के बेटे दुष्यंत सिंह 5वीं बार सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वे लगातार 4 बार इसी सीट से जीते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा।
इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2.93 फीसदी कम मतदान देखने को मिला।
टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट
इस लोकसभा क्षेत्र को कांग्रेस के नजरिए से सचिन पायलट के प्रभाव वाला और भाजपा के नजरिए से कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के प्रभाव वाला माना जाता है। इस सीट पर गुर्जर और मीणा वोट बैंक अधिक है। भाजपा ने गुर्जर समाज के सुखबीर सिंह जोनापुरिया को फिर मौका दिया है और कांग्रेस ने मीणा समाज से विधायक हरीश चंद्र मीणा को उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है।
इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 6.89 फीसदी कम मतदान देखने को मिला। इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में पिछले विधानसभा चुनाव में अच्छी टक्कर देखने को मिली थी।
राजसमंद लोकसभा सीट
कांग्रेस के प्रत्याशी की टिकट बदलने के कारण ये सीट चर्चा में रही। विधानसभा चुनाव में दीया कुमारी को टिकट देने के कारण ये सीट खाली हो गई थी। इस सीट से भाजपा ने उदयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य महिमा सिंह को उतारा है। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 6.41 फीसदी कम मतदान देखने को मिला।
भाजपा इस सीट को सुरक्षित सीटों में से एक मान रही है। लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों पर विधानसभा चुनाव में एक तरफा प्रदर्शन रहा। सभी 8 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की।
पाली लोकसभा सीट
पाली सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 5.62 फीसदी कम मतदान हुआ है। यहां भी भाजपा की विधानसभा सीटें अधिक हैं। भाजपा से पीपी चौधरी और कांग्रेस से संगीता बेनीवाल हैं और ये सीट उन सीटों में शामिल हैं जो इस लोकसभा चुनाव में कम चर्चा में रही है।
अजमेर लोकसभा सीट
इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 7.59 फीसदी कम मतदान देखने को मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था। इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा जीती थी।
भीलवाड़ा लोकसभा सीट
इस लोकसभा चुनाव में ये सीट भी टिकट बदलने के कारण चर्चा में रही। यहां से पहले भी सांसद रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 5.17 फीसदी कम मतदान देखने को मिला।
कांग्रेस से दिग्गज नेता डॉ. जोशी के खड़े होने के बावजूद भाजपा इस लोकसभा सीट को सुरक्षित मान रही है। विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा क्षेत्र की 8 सीटों में से भाजपा ने 6 अपने कब्जे में की थीं।
उदयपुर लोकसभा सीट
इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 5.79 फीसदी कम मतदान देखने को मिला। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने टेलर कन्हैया लाल हत्या कांड को मुद्दा बनाया था। इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल 8 में से 5 बीजेपी के खाते में हैं। बीएपी के यहां से दो विधायक हैं।
अब विधानसभा चुनावों का ट्रेंड भी समझिए
राजस्थान में अब हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन का लगभग ट्रेंड बन गया है। वहीं, वोटिंग का प्रतिशत भी यह बताने में कामयाब रहता है कि कौन-सी पार्टी सत्ता में होगी। पिछले चार चुनावों से ऐसा ही देखने को मिल रहा है।
वोट प्रतिशत यदि 3 से 6 फीसदी तक बढ़ता है तो फायदा भाजपा को मिलता है। वहीं, वोट प्रतिशत एक प्रतिशत तक कम हुआ तो कांग्रेस की वापसी होती है।
यह एक पैटर्न है, जो 1998 के इलेक्शन से देखने को मिल रहा है। राजस्थान में वोटिंग का घटना या बढ़ना काफी हद तक रिजल्ट की दिशा तय कर देता है।
2003 : 3.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा की वापसी
साल 1998 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में 63.39 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस इलेक्शन में 200 में से 153 सीटें कांग्रेस और 33 सीटें भाजपा ने जीती थीं।
वहीं, 2003 में 67.18 प्रतिशत वोटिंग हुई। यह आंकड़ा 1998 के मुकाबले 3.79 फीसदी था। भाजपा ने इस चुनाव में 120 सीटें जीतकर सरकार बनाईं। कांग्रेस 56 सीटें ही जीत पाईं। इन चुनावों में भाजपा को 39.85 फीसदी और कांग्रेस को 35.65 प्रतिशत वोट मिले।
2008 : 0.93 प्रतिशत कम वोटिंग, कांग्रेस को सत्ता
साल 2003 की तुलना में 2008 के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 0.93 प्रतिशत कम(66.25%) रहा। वोटिंग प्रतिशत गिरने के साथ भाजपा की सीटें भी 120 से घटकर 78 रह गई।
वहीं कांग्रेस 56 सीटों से बढ़कर 96 सीटों पर पहुंच गई। कांग्रेस को भाजपा से 1.32 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले थे। हालांकि स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन फिर भी कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही।
2013 : 8.79 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग, भाजपा लौटी
साल 2013 में 75.04 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो 2008 के मुकाबले 8.79 फीसदी ज्यादा थी। इस चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिलीं। वहीं कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई।
भाजपा का वोट शेयर 45.50 प्रतिशत व कांग्रेस का 33.31 फीसदी रहा। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर केवल 2.29 प्रतिशत गिरा, लेकिन सीटें 75 कम हो गईं। वहीं, भाजपा की 85 सीटें और 8.58 फीसदी वोट शेयर बढ़ गया।
2018 : वोटिंग प्रतिशत गिरा, कांग्रेस जीती
वोटिंग ट्रेंड से सत्ता बदलने के संकेत इस बार भी सही साबित हुए और कांग्रेस की वापसी हुई। साल 2013 (75.04%) की तुलना में 2018 (74.06%) में वोटिंग प्रतिशत 0.98 फीसदी कम रहा।
इस साल कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर वापसी की, तो भाजपा को 73 सीटें मिलीं। भाजपा को इस चुनाव में 39.08 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.64 फीसदी वोट मिले।
2023 : वोटिंग बढ़ी तो लौट आई भाजपा
पिछले वर्ष दिसंबर में हुई विधानसभा चुनाव की वोटिंग और सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड जारी रहा। वोटिंग पर्सेंट ने मामूली उछाल लिया तो कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
विधानसभा चुनाव, 2023 में करीब 74.96 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो विधानसभा चुनाव 2018 से मात्र 0.9 प्रतिशत ज्यादा रही थी। 2018 के चुनाव में 74.06 प्रतिशत मतदान हुआ था। राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज बना रहा और भाजपा ने सरकार बना ली।
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