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Muslim Population In India : मुस्लिमों की बढ़ती आबादी का मुद्दा हमेशा चर्चा का विषय रहा है. इसे देश के बड़े-बड़े नेता भी उठाते रहे हैं. इस बार भी लोकसभा चुनाव में इसको लेकर कई बार टिप्पणी की जा चुकी है. साल 1900 में मुस्लिमों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 12% थी लेकिन अब ये आबादी तेजी से बढ़ी. इसको लेकर एक रिपोर्ट भी सामने आई है. प्यू रिसर्च सेंटर दावा कर रहा है कि साल 2050 तक ये धार्मिक पॉपुलेशन 30 फीसदी हो जाएगी. साल 2010 में ही इस्लाम 1.6 बिलियन की आबादी के साथ दुनिया का दूसरा बड़ा धार्मिक मजहब बन गया था. अब रिपोर्ट में बताया गया कि इनकी धार्मिक आबादी तेजी से बढ़ रही है, जो 2050 तक क्रिश्चियैनिटी को हटाकर दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक आबादी होगी.
मुस्लिम महिलाओं में जन्मदर रहती है ज्यादा
शोध में बताया गया कि किसी धार्मिक आबादी का बढ़ना-घटना उसकी महिलाओं पर निर्भर करता है, महिलाएं कितनी संतानों को जन्म दे रही हैं, उनकी फर्टिलिटी रेट क्या. मौजूदा फर्टिलिटी रेट की बात करें तो मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर सबसे ज्यादा मानी जा रही है.ये बात ग्लोबल और लोकल दोनों ही मामलों में स्पष्ट दिखती है. साल 2019 से 2021 के बीच इस्लाम को मानने वाले परिवारों की जन्म दर 2.3 थी, ये बाकी समुदायों की तुलना में काफी ज्यादा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा कहता है कि इससे पहले ये दर और ज्यादा थी. साल 2015 में फर्टिलिटी रेट 2.6 प्रतिशत रिकॉर्ड किया गया था. नब्बे के दशक में तो ये 4.4 प्रतिशत रहा.
हिंदुओं का फर्टिलिटी रेट हुआ कम
अगर हिंदुओं की बात करें तो फर्टिलिटी रेट घटकर 1.94 प्रतिशत रह गया है. 1.88 प्रतिशत के साथ ईसाई धर्म को मानने वाले आते हैं. फिलहाल, धार्मिक समूहों के बारे में विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. साल 2011 में आखिरी सेंसस हुआ था, तब भारत में 17.22 करोड़ मुस्लिम थे, जो देश की कुल आबादी का 14.2 फीसदी था. भारत के अलावा दुनिया में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी. टॉप 10 में जितने भी देश हैं, उनमें फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है. इनमें कांगो, माली, चड, युगांडा, सोमालिया, साउथ सूडान, बुरुंडी और गिनी हैं. ये अधिकतर अफ्रीकी देश हैं, जहां इस्लाम फैल चुका. अरब देशों में फर्टिलिटी रेट 3.1 है.
कम उम्र में शादी होना भी बड़ा कारण
ज्यादा बच्चे पैदा करने के पीछे के भी रिपोर्ट में कई बड़े कारण बताए गए हैं, इनमें महिलाओं की कम उम्र में शादी. विकसित देशों में जहां ये औसत 26.2 साल है, वहीं मुस्लिम-बहुल देशों में ये एवरेज घटकर 20 साल है. ये सिर्फ एक डेटा है. ज्यादातर इस्लामिक देशों में कम उम्र शादी हो जाती है. कम पढ़ाई लिखाई होने की वजह से फैमिली प्लानिंग की उन्हें खास जानकारी नहीं होती. बाकी धर्मों में देर से शादियों के चलते बच्चों को जन्म देने के साल अपने-आप घट जाते हैं. इसका भी असर पड़ता है.
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