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एक्टर विक्रांत मैसी अपनी फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ के प्रमोशन के लिए जयपुर आए। इस दौरान उन्होंने फिल्म से जुड़े अनुभवों से लेकर अपने फिल्मी करियर पर बात की। उन्होंने कहा- जब यह फिल्म उन्हें ऑफर हुई थी, घरवालों और दोस्तों ने इसे करने से मना कर दिया था।
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जब रिसर्च किया तो लगा कि करना चाहिए। फिल्म बनकर तैयार हो गई। अब खूब धमकियां मिल रही हैं। इसको लेकर मैंने पुलिस में रिपोर्ट भी करवाई है। साबरमती अग्निकांड को लेकर जो थ्योरी उस समय फैलाई गई। वह आज भी जिंदा है। उन थ्योरी को लोगों से दूर करने के लिए हम फिल्म बना रहे हैं। अपनी आइडियोलॉजी के बदलाव पर उन्होंने कहा- समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। मैं भी इवॉल्व हुआ हूं। इस फिल्म की वजह से मेरी आइडियोलॉजी में बदलाव नहीं आया है। आगे पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
विक्रांत मैसी ने जयपुर में दाल-बाटी का स्वाद लिया।
भास्कर: ट्रेलर में एक डायलॉग है कि केंद्र की ट्रेन यूपी की जगह गुजरात होते हुए जानी चाहिए। इसमें साफ तौर पर पॉलिटिकल सिनेरियो को समझाया गया है, इस पर आपका क्या कहना है?
विक्रांत मैसी: इसमें हमने ऐसी कोई चीज नहीं कही है, जो आपको पता नहीं है। हम 2002 की घटना का जिक्र कर रहे हैं। हमारी फिल्म 2002 से 2010 तक की जर्नी को बयां करती है। हमारा मानना है कि उन करीब 10 साल में बहुत सारे मेजर चेंज आए। पॉलिटिक्स के नजरिए से, पब्लिक परसेप्शन के नजरिए से, खास तौर पर साबरमती अग्निकांड के मामले पर। फिल्म का डायलॉग कहीं न कहीं सच्चाई है। आप भी शायद मानते होंगे। अब दिक्कत यह है कि बिना कहे वह नाम भी आपके सामने आ गए।
आजकल फिल्म इंडस्ट्री में लेखक से ज्यादा वकील घूमते हैं। हम पर हर दूसरे दिन नोटिस आता है। अभी मैंने एक फिल्म सेक्टर 36 की है, जो थोड़े दिन पहले ही आई है। इसको लेकर 50 केस हम पर आ चुके हैं। मुझ पर ही नहीं, पूरी टीम पर अलग-अलग केस आए हैं। दिल्ली या नोएडा के जो सेक्टर 36 हैं। उन्होंने हम पर केस ठोक दिया है कि आप हमारे सेक्टर का नाम खराब कर रहे हैं। ऐसी चीजों से हमें भी जूझना पड़ता है। नाम बदलने पड़ते हैं। बहुत सारी ऐसी चीज करनी पड़ती है, जो नहीं करनी होती है। इसलिए हम प्रयास कर रहे हैं कि एक महत्वपूर्ण कहानी आप तक लेकर आएं।
भास्कर: इस कहानी को सामने लाने में 22 साल कैसे लग गए?
विक्रांत मैसी: यह एक ऐसी घटना थी, जिससे हमारा सोशल पॉलिटिकल फैब्रिक, कल्चरल फैब्रिक रातों-रात बादल गया। यह हमारा 9/11 वाली घटना के बराबर है। मेरे दोस्त जो इस समय मीडिया में हैं, उनका भी यही मानना है। इस घटना को 22 साल हो गए हैं। आज भी उन 59 लोगों को एक आंकड़े के तौर पर देखा जाता है। आधे लोग तो उस पर बात भी नहीं करते। मैं आश्वासन के साथ यह कह सकता हूं कि यह फिल्म देखेंगे तो आपको एक अलग नजरिया मिलेगा।
फिल्म प्रमोशन के तहत विक्रांत मैसी शहर के एक मॉल में मीडया से रूबरू हुए।
मैं एक अलग चीज आपको बताना चाहता हूं कि दूसरे विश्व युद्ध में क्या हुआ। जर्मनी, रूस, अमेरिका में क्या हुआ। उसके आंकड़े हमारे पास मौजूद हैं। कौन सी तारीख को क्या हुआ। वह सब हमें हमारी किताबों में पढ़ाया गया। उस पर फिल्में भी बनी है। बहुत फिल्में बनी हैं, जिन्हें ऑस्कर भी मिला है। हमारे देश में इतनी बड़ी दुर्घटना घटी। उसके बारे में हमें पता नहीं चला। दुख की बात यह है कि आज भी उस समय की थ्योरी जिंदा है, जो उस समय ग्राउंड पर बनाई गई थी। इसका अफसोस होता है। अब इस कहानी को सामने लाने में 22 साल क्यों लगे, इसका तो मैं कुछ कह नहीं सकता। मेरा उद्देश्य इस कहानी को सामने लाना था।
भास्कर: फिल्म की कहानी आने से पहले आपको इस घटना की कितनी जानकारी थी। इस फिल्म को करने के बाद खुद की आइडियोलॉजी में किसी प्रकार का बदलाव आया?
विक्रांत मैसी: जब यह घटना घटी, तब मैं 15-16 साल का था। आप लोग सभी समझ सकते हैं। बचपन में आपके मां-बाप आपको प्रोटेक्ट करना चाहते हैं। जब उस घटना की न्यूज हमारे घर पर चलती थी। चैनल बदल दिया जाता था। उस समय न्यूज में दंगों की बात होती थी। हिंसा की बात होती थी। साबरमती अग्निकांड के बारे में बहुत सालों तक आपको न्यूज में सही तरीके से जानकारी तक नहीं दी गई थी। न्यूज में सिर्फ दंगों के बारे में था। अंतरराष्ट्रीय प्रेस ने भी यही छापा। दूर-दूर से लोग आए। बताया दंगे हुए हैं।
मैं यहां पर डिस्क्लेमर दे रहा हूं कि कई बार कई बातों का गलत मतलब निकाला जाता है। उस दूसरे पहलू पर इतनी बातें हुईं कि पहले पहलू को हम भूल गए। मुझे भी जो जानकारी बाहर थी, यानी आग लगा दी गई या खाना बना रहे थे, कोई सिगरेट पी रहा था या कोई शॉर्ट सर्किट हुआ, इस तरह की थ्योरी हम तक पहुंची। जब यह कहानी मेरे पास आई, उस वक्त हमें बहुत सारा रिसर्च मटेरियल भी प्रोवाइड कराया गया।
सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला है हमने उसी के आधार पर कहानी तैयार की। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है वही हमने कहानी के रूप में दिखाया है। कोर्ट का फैसला आने के बाद भी आज भी पुरानी थ्योरी बनी हुई है। हम कहते हैं लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, लेकिन हम भी कहीं न कहीं कलेक्टिविज्म का शिकार हैं। जो हम विश्वास करना चाहते हैं, हम उसी का विश्वास करते हैं। चाहे कितने भी तथ्य या सत्य हमारे सामने ला दिए जाएं।
विक्रांत की फिल्म द साबरमती रिपोर्ट को जयपुर के धीरज सरना ने डायरेक्ट किया है।
इस फिल्म की वजह से मेरी आइडियोलॉजी नहीं बदली है। इंसान समय के साथ बदलता है। आप भी 10 साल पहले जो होंगे, वह आज नहीं होंगे। बदलाव आया होगा। एक इंग्लिश की कहावत है कि द चेंज इस द ओनली काॅन्स्टेंट। मैं देश-दुनिया घूमता हूं। चीजें अपनी आंखों से देखी है। अच्छी या गलत और मुझे पता है।
इस सवाल का बैकग्राउंड क्या है, मैं जानता हूं। मैं अपना जवाब दे चुका हूं। मैं नहीं चाहता कि इस फिल्म के साथ भी ऐसा हो कि हमारी बातचीत कहीं पॉलिटिकल विषय में न घुस जाए। इतना जरूर कहूंगा कि मैं भी इवॉल्व हुआ हूं। वहीं स्थिर पानी की तरह मैं रहता तो पता नहीं क्या होता। मुझ पर कीड़े-मकोड़े जम जाते। मैं बहता हुआ पानी हूं। बदलाव आता रहना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आज मैं जो हूं, 10 साल बाद नहीं रहूंगा। बदलते रहना चाहिए।
भास्कर: आप सच्चाई से जुड़ी कहानियों पर ज्यादा काम करते हैं, इसका क्या कारण है?
विक्रांत मैसी: आज भी मुझे विश्वास है कि कहानियों और फिल्मों में पूरा पोटेंशियल है। यह चीज लोगों को इंस्पायर करती है। एंटरटेनमेंट तो करती ही है। क्योंकि परिवार से लोग सिनेमाघर में हंस-खेल कर जाना चाहते हैं। हम भी चाहते हैं। कई बार क्या होता है कि वह कहानी को कहना बहुत जरूरी हो जाता है। इसे लोगों तक पहुंचना जरूरी होता है। आज मेरा यह प्रिविलेज है, मैं आज यहां पर सिनेमा हॉल में खड़ा हूं। यह मेरा सपना हुआ करता था। यह मेरी हकीकत है। मेरा यह जरूरी कदम है कि मैं अपने समाज, आप सभी लोगों को कुछ दूं, क्योंकि मैं आप लोगों की वजह से ही हूं। इसलिए मैं ऐसी कहानी लाता हूं, जो आपकी कहानी है।
भास्कर: क्या इस फिल्म के बाद आपके परिवार को धमकियां मिल रही हैं? इस फिल्म को करने से पहले आपने उनसे राय ली थी?
विक्रांत मैसी: परिवार वालों को धमकी मिलने को लेकर मिस कम्युनिकेशन हुआ है। मुंबई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुझे सवाल पूछा गया था, जिसका जवाब मैंने दिया था। जो सोशल मीडिया पर गलत तरीके से पेश किया गया। मेरे घरवालों को धमकियां नहीं मिल रही हैं। मुझे धमकियां मिल रही हैं। यह एक तरीके से चाइनीज गेम की तरह है। मुझे टारगेट किया जा रहा है। मुझे बहुत कुछ कहा जा रहा है, लेकिन मैंने कुछ फैसले लिए हैं। अब डर नहीं लग रहा है। कहीं न कहीं एक हल्कापन लग रहा है। डर पहले था, जब कहानी कर रहे थे। जब 27 फरवरी को रीक्रिएट किया गया। शूटिंग करने में भी काफी दिक्कतें आईं। हम बहुत आसानी से पढ़ लेते हैं, लेकिन जब उसे करने जाते हैं। बड़ी समस्या सामने आती है। मेरी सुरक्षा करने के लिए जो जरूरी कदम हैं, परिवार की सुरक्षा करने के लिए जो कदम उठा रहे हैं, वह उठा रहा हूं। हम सब यह मिलकर कर रहे हैं।
प्रोड्यूसर एकता कपूर के साथ मेरा गहरा रिश्ता है। वह एक निर्माता नहीं हैं। मेरी मेंटर भी हैं। साइबर पुलिस में हमने कंप्लेंट भी की है। सच कहूं तो अब डर कम होता जा रहा है। बहुत हिम्मत लगी थी, जब यह कहानी बोलने की कोशिश की थी। अब जब यह फाइनल कहानी आ रही है। अब तो बन गई है। सब कुछ हो गया है। अब कोई दिक्कत नहीं है। हमारी पहले दिन से ही यह सोच थी कि उन 59 लोगों को याद किया जाए, उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी जाए। मीडिया का जो रोल था, वह लोगों के सामने लाया जाए।
मैं हर चीज अपने परिवार से पूछता हूं। हालांकि डिसीजन मेरा ही होता है। मेरे माता-पिता बिल्कुल साधारण से लोग हैं। उनको इस तरह की कोई जानकारी नहीं होती है। उनका ऐसे सब्जेक्ट पर लेना-देना तो बहुत दूर की बात है। उनको यह भी जानकारी नहीं है फिल्म क्या होती है। स्क्रिप्ट क्या होती है। इसकी मेकिंग कैसे होती है। मार्केटिंग क्या होती है। उनको कुछ नहीं पता, हर मां-बाप की तरह उनको सिर्फ अपने बेटे पर गर्व है।
मेरी पत्नी शीतल से बात करता हूं। जब घर पर चर्चा हुई थी तो आमतौर पर मैं ब्रीफ में बात करता हूं। जब उनको बताया कि इस सब्जेक्ट पर फिल्म बना रहे हैं। मैं सच कहूं पत्नी ने कहा था कि तुम पागल हो। तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। मेरे कुछ दोस्त हैं, जो इसी इंडस्ट्री से हैं। उनसे पूछा तो वह कहते थे कि भाई क्यों पंगे ले रहा है। जब बाद में मुझे रिसर्च मटेरियल मिला। कहानी सुनी तो लगा कि यह कहानी कहनी चाहिए। जो एकता कपूर कहना चाहती है, उसे कहना चाहिए।
जब इस फिल्म की स्क्रिप्ट मेरे पास आई थी, उस समय मैंने फिल्म के लिए मना नहीं किया था, लेकिन परिवार से और दोस्तों से इस बारे में डिस्कस किया। उन्होंने कहा- आप पहले ही सोशल मीडिया पर इतनी गालियां खाते हो। इसके करने के बाद गालियां और बढ़ जाएंगी। मिस अंडरस्टैंड करेंगे। क्योंकि इस सब्जेक्ट को बहुत ज्यादा मिस अंडरस्टैंड किया गया है। लोग कहेंगे कि यह किसी एक का पक्ष ले रहा है। फिर यह एक कम्युनिटी के विरुद्ध बोल रहा है। जैसे मैंने पहले कहा कि मेरा विश्वास आज भी यह है कि इतनी भी बुरी दुनिया नहीं है। आज भी कहीं न कहीं इंसानियत हमारे भीतर है। आखिर में यही कहूंगा कि उस ढाई साल के बच्चे को किसी पॉलिटिकल या रिलीजियस आंखों से नहीं देख सकता, जिसे जिंदा जला दिया गया था।
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