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आंवला नवमीं और अक्षय नवमीं के अवसर पर रविवार को महिलाओं ने जिले सहित ग्रामीण इलाकों में आंवला वृक्ष की पूजा अर्चना कर शुद्ध जल अर्पित किया।
आंवला नवमीं और अक्षय नवमीं के अवसर पर रविवार को महिलाओं ने जिले सहित ग्रामीण इलाकों में आंवला वृक्ष की पूजा अर्चना कर शुद्ध जल अर्पित किया। इसके बाद सुख, सम्रद्धि और सफलता सहित उत्तम सेहत का वरदान मांगा। इस दौरान जगह-जगह आंवले के वृक्ष के पास महिलाओं
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पंडित रमेश शर्मा ने बताया की हिन्दू संस्कृति में त्योहारों और पूजन का विशेष महत्व होता है। भारतीय संस्कृति और परंपरानुसार विभिन्न तिथियों में पूजन का विधान है। इसी के तहत कार्तिक शुक्ल मास की नवमीं को अक्षय या आंवला नवमीं भी कहा जाता है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
उन्होंने बताया कि प्राचीन कथा के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए आईं तो उनकी इच्छा हुई कि भगवान शंकर व भगवान विष्णु की पूजा एक साथ की जाए। विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय हैं और शंकर जी को बेल पत्र। इन दोनों वृक्षों के सभी गुण आंवले के वृक्ष में मौजूद हैं। इस पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की, ताकि दोनों भगवान प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन यह पूजा की गई, वह दिन कार्तिक की नवमीं तिथि थी। तभी से यह पर्व मनाया जाता है।
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