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भगवान का भोग प्रसाद भला किसे पसंद नहीं। कहते हैं भोग प्रसाद में एक अलग ही तरह का जायका छुपा होता है जो भक्तों के मन को तृप्त कर देता है। कई बार मंदिर में भीड़ और लंबी कतारों के कारण भक्तों को बिना प्रसाद के लौटना पड़ता है।
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ऐसे भक्तों के लिए जयपुर का रेस्टोरेंट लेकर आया है वृंदावन के बांके बिहारी जी की भोग महाप्रसाद थाली और 56 भोग का प्रसाद। खास बात यह है कि भोग का प्रसाद बांके बिहारी मंदिर के गर्भगृह में बनकर तैयार होता है।
बांके बिहारी को भोग लगने के बाद उस प्रसाद को लाने के लिए जयपुर से एक स्पेशल गाड़ी भेजी जाती है। इस भोग को पत्तल में परोसा जाता है, जिसे पहले गंगाजल छिड़ककर शुद्ध किया जाता है।
राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको जयपुर में चखाते हैं वृंदावन बांके बिहारी जी के भोग प्रसाद का स्वाद…
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भगवान को लगने वाले भोग महाप्रसाद।
बांके बिहारी में रमा मन, आईटी का काम छोड़ खोला रेस्तरां
जयपुर की टोंक रोड स्थित एओन डाइन रेस्टोरेंट की फाउंडर शालू सारस्वत ने बताया की बीटेक करने के बाद आईटी का काम शुरू किया था। पिता इवेंट प्लानर हैं। वे गोविंद देव मंदिर में फूलों के डेकोरेशन का कार्य संभालते हैं। मेरा परिवार मूलतः बृज का निवासी है, ऐसे में वृंदावन में बांके बिहारी की छत्र-छाया और उनकी आस्था के बीच मेरी परवरिश हुई।
जयपुर में गोविंद देव के प्रति लोगों की आस्था देखकर मुझे ख्याल आया क्यों न उन भक्तों तक बांके बिहारी जी की भोग का प्रसाद पहुंचाया जाए। मुझे अपना रेस्टोरेंट का बिजनेस करना था। अप्रैल में ए-वन फाइन डाइनिंग की शुरुआत की। जयपुर में पहली बार बांके बिहारी की महाप्रसाद को फूड मेन्यू में शामिल किया।
लेकिन बांके बिहारी की महाप्रसादी को एक रेस्तरां में लाना मेरे लिए इतना आसान नहीं था। लोगों ने कहा तुम ये नहीं कर पाओगी। ये संभव नहीं है। लेकिन बांके बिहारी के आशीर्वाद से सिर्फ 15 दिन में मैंने महाप्रसाद को फूड मेन्यू में शामिल कर लिया। कुछ ही दिन में भक्तों को प्रसाद सर्व करना भी शुरू कर दिया।
मंदिर के गर्भगृह में तैयार होता है महाप्रसाद, भोग के बाद पहुंचता है जयपुर
शालू सारस्वत ने बताया कि बांके बिहारी जी को प्रतिदिन छप्पन भोग की प्रसादी का भोग लगाया जाता है। उसमें 56 तरह के अलग-अलग व्यंजन शामिल होते हैं। इसके अलावा दोपहर की महाप्रसादी कच्ची और पक्की रसोई का खाना भोग में चढ़ाया जाता है।
ये सारे व्यंजन उनके गर्भ गृह में ही डेली तैयार होते हैं। एक भी आइटम बाहर से नहीं मंगवाया जाता। एक बार बांके बिहारी को भोग लगने के बाद उस महा प्रसाद को लेने के लिए हर रविवार सुबह 6 बजे जयपुर से हमारी गाड़ी रवाना होती है, जो 10 बजे वृंदावन पहुंचती है।
चूंकि भोग प्रसाद में लोगों की आस्था जुड़ी है। विश्वास कायम रहे इसलिए परिवार का ही एक सदस्य खुद उस गाड़ी में साथ बैठकर वृंदावन बांके बिहारी का भोग प्रसाद को लेने जाता है।
बांके बिहारी मंदिर से लाया गया भोग प्रसाद सबसे पहले रेस्टोरेंट में लगी उनकी तस्वीर के आगे रखा जाता है।
बांके बिहारी को दोपहर के समय कच्ची-पक्की रसोई का भोग लगने के बाद गाड़ी उस प्रसाद को लेकर जयपुर के लिए रवाना होती है। शाम पांच बजे के करीब प्रसाद हमारे रेस्टोरेंट पहुंच जाता है। उसके बाद भक्तों को सर्व कर दिया जाता है।
कच्ची-पक्की रसोई का भोग प्रसाद सप्ताह में केवल रविवार के दिन ही उपलब्ध रहता है। अगर किसी अन्य दिन मंगवाना हो तो इसके लिए पहले से ऑर्डर देना पड़ता है। हां, बांके बिहारी जी का 56 भोग सप्ताह भर उपलब्ध रहता है। 56 भोग को लाने के लिए सप्ताह में 3 से 4 बार गाड़ी भेजते हैं।
56 भोग में बालूशाही-समोसा सोन पापड़ी जैसे व्यंजन
56 भोग में मुख्य रूप से बालू शाही, सोन पापड़ी, समोसा, मठरी, बर्फी, लड्डू, मूंग पाग, मोतीचूर के लड्डू शामिल रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि बांके बिहारी को समोसा और सोन पापड़ी काफी पसंद है, इसलिए भोग प्रसादी में ये दो चीजें जरूर रखी जाती हैं।
ये सभी व्यंजन जयपुर पहुंचने के बाद हम उनके बॉक्स तैयार करते हैं। हर बॉक्स में दस से बारह प्रकार की मिठाइयां आ पाती हैं। 56 भोग प्रसादी में हर दिन कुछ न कुछ अलग मिठाई बॉक्स में मिलती है। रेस्तरां में 56 भोग प्रसादी की थाली 1100 रुपए की कीमत में भक्त जनों को दी जाती है।
वृंदावन में बांके बिहारी जी को प्रतिदिन 56 भोग लगाया जाता है। इसमें कई व्यंजन शामिल होते हैंै।
कच्ची और पक्की थाली में बांके बिहारी के प्रिय व्यंजन
कच्ची रसोई में रोटी होती है जबकि पक्की रसोई थाली में सब्जी पुरी होती है। बांके बिहारी के महाप्रसाद वाली थाली में कढ़ी-चावल, गट की सब्जी (बहुत सारी सब्जियों का मिश्रण), पूरी, आलू कचौरी, आलू की सब्जी, चने की दाल, चपाती, जलेबी, सलाद, पापड़ और खीर लोगों को सर्व की जाती है। थाली में दूध भात जरूर शामिल रहता है। कच्ची और पक्की रसोई के महाप्रसाद का आनंद 510 रुपए में ले सकते हैं।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब
गंगाजल से पवित्र कर चंदन तिलक लगाकर करते हैं सर्व
रेस्टोरेंट में आने वाले भक्तों का पारंपरिक तरीके से हाथ जोड़कर स्वागत किया जाता है। उन्हें गंगा जल, चन्दन का तिलक लगाकर बांके बिहारी के दरबार से आई हुई चुन्नी/दुपट्टा पहनाया जाता है। जिससे कि प्रसादी ग्रहण करते वक्त वृंदावन में बांके बिहारी के समक्ष होने का पूरा एहसास मिल सके। पत्तल में जायकेदार भोग प्रसादी डिनर के रूप में सर्व की जाती है।
परोसने से पहले थाली पत्तल को गंगाजल से पवित्र किया जाता है।
भोग प्रसाद को दोबारा गर्म नहीं करते
शालू ने बताया कि भोग प्रसाद को वृन्दावन से लाने के बाद सबसे पहले उसे बांके बिहारी के तस्वीर के सामने रखा जाता है। दरबार से प्रसाद लाने के बाद उसे दोबारा गर्म नहीं किया जाता। ऐसी मान्यता है कि यदि प्रसाद को दोबारा अग्नि दिखाई जाए तो वो अग्नि बांके बिहारी को लगती है।
चपाती हम रेस्तरां से गर्म बनाकर सर्व करते हैं। बाकि प्रसाद भोग ठंडा ही सर्व होता है। फिर भी किसी को गर्म प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा होती है तो मिट्टी को गर्म कर उस पर प्रसादी के बर्तन को रखते हैं।
पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर
ये हैं जयपुर के बलवान लड्डू। सैकड़ों वर्ष पुरानी रेसिपी से तैयार होने वाले इन लड्डुओं को बनाने में जड़ी बूटियों को इस्तेमाल होता है। कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां तो ईरान से मंगवाई जाती हैं। जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी के मंदिर के पास स्थि गोविंदम के ओनर राजेंद्र सिंह तंवर यह दावा करते हैं कि मिठाइयों के खजाने में बलवान और वरदान लड्डू उनका खुद का पेटेंट है…(CLICK कर पूरा जायका पढ़ें)
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