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नगर निगम आगरा
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आगरा नगर निगम को यमुना नदी को प्रदूषित करने के मामले में 58.39 करोड़ रुपये पर्यावरणीय मुआवजा देने का आदेश दिया। एनजीटी ने आगरा निवासी चिकित्सक डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ की याचिका पर यह जुर्माना लगाया था, जिसके खिलाफ नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम अदालत ने पीएमएलए कानून के आदेश को हटाकर याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने यमुना में प्रदूषण को लेकर नाराजगी भी जताई।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आगरा नगर निगम की याचिका पर कड़ी असहमति व्यक्त की। निगम ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पीएमएलए कानून हटाने और जुर्माना हटाने की मांग की थी। इस पर पीठ ने कहा कि नगर निगम अथॉरिटी ने अनुपचारित अपशिष्टों को यमुना को प्रदूषित करने की अनुमति देकर नरक बना दिया है।
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जबावदेही से बच नहीं सकते
पीठ ने कहा, निष्कर्ष बहुत परेशान करने वाले हैं। इन लोगों ने नरक बना दिया है। आपने कुछ नहीं किया है। अनुपचारित सीवेज जाने के कारण सभी नदियां प्रदूषित हो रही हैं। अप्रैल में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के निष्कर्षों का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने बताया कि पर्यावरण मानकों का पालन करने में विफल रहने के लिए नगर निगम के लोग जवाबदेही से बच नहीं सकते। पीठ ने दुख जताते हुए कहा, नए एसटीपी के बारे में भूल जाइए, आपके मौजूदा एसटीपी न्यूनतम मानकों को भी पूरा नहीं कर रहे हैं। अनुपचारित अपशिष्टों को नदियों में बहा दिया जा रहा है।
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अनुमति न मिलने से अटके रहे एसटीपी
आगरा नगर निगम के वकील मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि नए एसटीपी की स्थापना में देरी का कारण न्यायालय और एनजीटी के समक्ष चार वर्षों से लंबित पेड़ काटने के आवेदन हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण को कम करने के प्रयास चल रहे हैं। इस पर पीठ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और कहा कि हमें कोई कदम उठते हुए नहीं दिख रहा है। यह सब बहुत गंभीर है। देश भर में नदियां और जल निकाय इस तरह से गंभीर रूप से प्रदूषित हो रहे हैं। हमें चिंता है कि यह पूरे देश में हो रहा है। पीठ ने एनजीटी के पर्यावरण क्षतिपूर्ति निर्देश के खिलाफ आगरा नगर निगम की अपील को खारिज कर दिया।
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तर्क को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया कि कथित पर्यावरण उल्लंघन को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराध माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र धन शोधन निवारण कानून के तहत अपराधों के पंजीकरण का आदेश देने तक विस्तारित नहीं है। एनजीटी ने 24 अप्रैल को आगरा के चिकित्सक डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ की याचिका पर तीन माह के अंदर 58.39 करोड़ रुपये की पर्यावरण क्षतिपूर्ति देने के आदेश दिए थे।
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