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करीब 10 साल पहले वसुंधरा सरकार के समय एकल पट्टा मामले में विधायक शांति धारीवाल सहित तीन अन्य अधिकारियों पर लगे आरोपों पर भजनलाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड बदल दिया हैं। करीब 6 महीने पहले सरकार ने सभी को क्लीन चिट दे दी थी।
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लेकिन अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में फ्रेश एफिडेविट पेश करते हुए कहा है कि सभी के खिलाफ मामला बनता हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एसीबी द्वारा केस वापस लेने के फैसले को हाई कोर्ट द्वारा सही ठहराने वाले आदेश और धारीवाल को राहत देने के हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करने के लिए कहा हैं।
दरअसल, 29 जून 2011 में जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग के नाम एकल पट्टा जारी किया था। इसकी शिकायत परिवादी रामशरण सिंह ने 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो( एसीबी) में की थी। एसीबी में शिकायत के बाद तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी। इनके खिलाफ एसीबी कोर्ट में चालान पेश किया था। मामला बढ़ने पर विभाग ने 25 मई 2013 को एकल पट्टा निरस्त कर दिया था।
वहीं, इस मामले में एसीबी ने शांति धारीवाल से भी पूछताछ की थी। लेकिन 22 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश करते हुए भजनलाल सरकार ने इस मामले में सभी को क्लीन चिट दे दी थी। वहीं कहा था कि एकल पट्टा प्रकरण में कोई मामला नहीं बनता है। लेकिन अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड बदल दिया हैं।
मामले को फिर से ट्रायल के लिए भेजा जाए सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट पेश करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) शिव मंगल शर्मा ने बताया कि जो एफिडेविट अप्रेल 2024 में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया था। उसमें वरिष्ठ अधिकारियों और उनसे सलाह नहीं ली गई थी। सरकार ने मामले से जुड़े केस अधिकारी (ओआईसी) को भी बदल दिया हैं।
उन्होने कहा कि एसीबी ने जो तीन क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी। वो धारीवाल सहित अन्य अधिकारियों से प्रभावित थी। उन तीनों क्लोजर रिपोर्ट में सभी तथ्यों को शामिल नहीं किया गया था। यहीं वज़ह थी कि एसीबी कोर्ट ने दो क्लोज़र रिपोर्ट खारिज़ कर दी थी। लेकिन तीसरी क्लोजर रिपोर्ट पर एसीबी कोर्ट ने कोई निर्णय नहीं लिया था।
इसी बीच आरोपी हाई कोर्ट चले गए। इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना लिया। ऐसे में मामले की समीक्षा के लिए इसे फिर से ट्रायल कोर्ट को भेज देना चाहिए।
गहलोत के बाद भजनलाल सरकार ने भी दी थी क्लीन चिट एकल पट्टा प्रकरण में तत्कालीन वसुंधरा सरकार के समय 3 दिसंबर 2014 को एसीबी ने मामला दर्ज किया गया था। आरोपियों को खिलाफ चालान भी पेश किया था। उस समय तत्कालीन यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल से भी पूछताछ की गई थी। लेकिन प्रदेश में सरकार बदलते ही गहलोत सरकार में एसीबी ने मामले में तीन क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी थी। तीनों क्लोजर रिपोर्ट में सरकार ने इस मामले में पूर्व आईएएस जीएस संधू, पूर्व आरएएस निष्काम दिवाकर और ओंकरामल सैनी को क्लीन चिट दी थी।
हाईकोर्ट ने केस वापस लेने की कार्रवाई को माना था सही एसीबी की दो क्लोजर रिपोर्ट को एसीबी कोर्ट ने खारिज करते हुए 18 अप्रैल 2022 को कुछ बिंदुओं पर डीआईजी स्तर के अधिकारी से जांच कराने के निर्देश दिए थे। उसके बाद एसीबी की ओर से 19 जुलाई 2022 को तीसरी क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई थी। इसमें भी एसीबी ने एकल पट्टा प्रकरण में किसी भी तरह अनियमित्ताएं नहीं पाई थीं।
इस पर एसीबी ने कोर्ट से इन आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट को वापस लेने की एप्लिकेशन लगाई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। लेकिन इनकी अपील पर 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने को सही माना था। इस दौरान मामले में परिवादी रामशरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने भी केस वापस लेने की सहमति दी थी।
धारीवाल को हाईकोर्ट से मिली थी राहत इस पूरे मामले में परिवादी की ओर से शांति धारीवाल को भी आरोपी बनाने का प्रार्थना-पत्र लगाया गया था। इसके खिलाफ धारीवाल ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने धारीवाल को राहत देते हुए 15 नवंबर 2022 को एसीबी कोर्ट में चल रही प्रोटेस्ट पिटीशन सहित अन्य आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया था। धारीवाल की ओर से कहा गया था कि उनका एफआईआर से लेकर चालान में कहीं भी नाम नहीं है। एसीबी की ओर से पेश क्लोजर रिपोर्ट में भी उनके खिलाफ कोई अपराध प्रमाणित नहीं माना गया। लेकिन उसके बाद भी एसीबी कोर्ट ने प्रकरण में अग्रिम जांच के आदेश दिए, जो कि गलत है।
हाईकोर्ट के फैसले को दी गई थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। एसएलपी में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ दर्ज केस की एफआईआर को केवल शिकायतकर्ता के राजीनामे के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।
यह राज्य सरकार का केस है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार केस को वापस लेना जनहित में नहीं है। इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। हाईकोर्ट ने मामले में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हुए भी राज्य सरकार की कार्रवाई को सही माना है, जो गलत है। इसलिए हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाए। इस एसएलपी में भी सुप्रीम कोर्ट धारीवाल को नोटिस जारी कर चुका है। इसी एसएलपी में भजनलाल सरकार ने फ्रेश एफिडेविट पेश किया हैं।
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