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दीपावली की देर रात मोरहाबादी मैदान में आतिशबाजी करते रहे लोग।
दीपावली की रात जमकर आतिशबाजी हुई, इससे राजधानी में हवा की सेहत बिगड़ गई। झारखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने दीपावली पर रात 8 से 10 बजे तक ही आतिशबाजी की छूट दी थी। इसके बावजूद शहरवासियों ने रात भर पटाखे छोड़े। नतीजा यह
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प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ओर से जारी आंकड़े के अनुसार, 31 अक्टूबर की रात में रांची का एक्यूआई-279 रहा। जबकि 30 अक्टूबर को एक्यूआई 149 था। यानी एक दिन में ही एक्यूआई में 87 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। एक नवंबर को ये आंकड़े जारी किए गए। वहीं, दीपावली की रात पीएम-10 का लेवल 404 पर पहुंच गया। जबकि, सामान्य स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहता है।
पीएम-10 का स्तर 100 से अधिक होना सेहत के लिए खराब होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, पीएम-10 का लेवल बढ़ने अस्थमा, दिल का दौरा, हाई ब्लड प्रेशर आदि की समस्याएं और बढ़ सकती हैं। बुजुर्गों, बच्चों और सांस संबंधी परेशानियों वाले मरीजों को गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
सामान्य से 25-30 डेसिबल अधिक हुआ ध्वनि प्रदूषण
रांची में अशोक नगर सहित अन्य आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर रात 9 से 12 बजे तक सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक रहा। दीपावली से एक दिन पहले अल्बर्ट एक्का चौक पर शाम 6 से 7 बजे के बीच ध्वनि प्रदूषण का स्तर 75.2 डेसिबल था। वहीं, 31 अक्टूबर को उसी अवधि में ध्वनि प्रदूषण का स्तर 75.2 पर पहुंच गया।
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञों के अनुसार, विभिन्न क्षेत्रों में ध्वनि की सीमा अलग-अलग होती है। आवासीय क्षेत्र में ध्वनि सीमा 55 डेसिबल, साइलेंट एरिया में 50 डेसिबल, व्यावसायिक क्षेत्रों में 65 डेसिबल और औद्योगिक क्षेत्र में ध्वनि सीमा 75 डेसिबल होती है।
3 दिनों में पटाखे से जलने के कारण अस्पतालों में पहुंचे 80 मरीज, रिम्स में 6 भर्ती
दीपावली के दौरान पिछले तीन दिनों में पटाखे से जलने के बाद करीब 80 रोगी अस्पताल पहुंचे हैं। इनमें 40 रोगी सिर्फ रिम्स में इलाज के लिए पहुंचे थे। सदर अस्पताल में 22 और शेष मरीज निजी अस्पतालों में आए थे। इसमें से अधिकतर हल्के और मध्यम तौर पर जले थे। जिन्हें अस्पतालों से प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया गया।
जबकि, रिम्स के बर्न वार्ड में वर्तमान में 6 मरीज इलाजरत हैं। सदर में एक और प्राइवेट अस्पताल में 4 मरीज भर्ती हैं। दो मरीज जिन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचा, वे रॉकेट से जख्मी हुए थे। डॉक्टरों के अनुसार, पटाखे से जलने के कारण अस्पताल पहुंचने वालों की उम्र 15 से 55 वर्ष के बीच थी। जितने रोगी इलाजरत हैं, उनमें सिर्फ दो मरीज ही 40 से 60 प्रतिशत तक बर्न हैं। बाकी की स्थिति बेहतर है। उससे कम के मामलों को प्राथमिक उपचार और दवा के बाद घर भेज दिया गया है।
एक्यूआई का पैमाना
- 0 से 50 अच्छा
- 51 से 100 संतोषप्रद
- 101 से 200 कम प्रदूषित
- 201 से 300 खराब
- 301 से 400 बहुत खराब
- 401 से 500 खतरनाक
198 रहा पीएम 2.5 का स्तर, इसी से फेफड़ों को होता है सबसे अधिक नुकसान
वायु प्रदूषण को पीएम-10 और पीएम-2.5 में भी मापा जाता है। इस वर्ष दिवाली पर रांची में पीएम 10 का लेवल 404.7 रहा, जबकि पीएम 2.5 का लेवल 198.3 रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, पीएम-10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं। इसका सामान्य स्तर 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए। वहीं, पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम होता है। ये काफी छोटे कण होते हैं जो फेफड़ों में आसानी से चले जाते हैं और अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। पीएम 2.5 प्रदूषण सेहत के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इससे सांस लेने में तकलीफ और घुटन होती है।
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