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उज्जैन में दीपावली पर्व के साथ ही शुक्रवार को सुहाग पड़वा पर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा चिंतामन जवासिया में संचालित गौशाला में गोवर्धन पूजा की गई। गौशाला की करीब 200 गायों की आकर्षक साज-सज्जा की गई। गौशाला परिसर में ही गोवर्धन बनाकर प
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मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी रत्नाखेड़ी स्थित गौशाला में गोवर्धन पूजा की। वहीं इस्कॉन मंदिर में शनिवार को गोवर्धन पूजन का पर्व मनाया जाएगा।
चिंतामन जवासिया में गोवर्धन पूजन करते लोग।
31 अक्टूबर को दीपावली पर्व के साथ ही गोवर्धन पूजन का पर्व शुक्रवार को मनाया गया। इस दिन शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने घरों में गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजन किया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ग्राम रत्नाखेड़ी की गौशाला में गोवर्धन व गाय का पूजन किया। वहीं श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की गौशाला में भी दीपावली पर्व के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। शुक्रवार का मंदिर की चिंतामन जवासिया स्थित गौशाला में मंदिर समिति द्वारा गोवर्धन पूजन किया गया।
मंदिर समिति के भोग कक्ष की कामठिन यशोदा शर्मा ने गौशाला परिसर में विधि-विधान से गोबर से बने गोवर्धन का पूजन कर पकवानों का भोग लगाया। इसके बाद गौधन का पूजन भी किया गया। इस अवसर पर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल, श्री महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के प्रभारी डॉ. पीयूष त्रिपाठी, गौशाला प्रभारी गोपाल सिंह कुशवाह, अन्नक्षेत्र प्रभारी मिलिंद वेद्य ने गौशाला की गाय का पूजन किया। इस मौके पर गौशाला, लड्डू प्रसाद निर्माण इकाई के कर्मचारी उपस्थित थे।
गाय की पूजा करते मंदिर समिति के पदाधिकारी।
इसलिए होती है गोवर्धन पूजन
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है। इसलिए इंद्र की नही गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा कर डराने का प्रयास किया था। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को इंद्र के कोप से बचा लिया।
श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों को आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ। इसके बाद से ही इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।
मंदिर की गौशाला में गाय की सेवा करते लोग।
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