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दीपावली के दूसरे दिन शुक्रवार को निवाड़ी जिले के ओरछा में राम राजा सरकार के दरबार में बुंदेलखंड से मौनिया की टोलियां पहुंचीं। यहां सबसे पहले बेतवा में स्नान किया। दरबार में हाजिरी दी। इसके बाद शुरू हुआ मंदिर के बाहर मौनिया नृत्य।
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कमर में घुंघरू बांध, हाथ में मोरपंख लेकर ढोल-नगड़िया की थाप, मजीरा की ताल पर मौनिया थिरक रहे हैं। सुबह 5 बजे से लोगों का आना शुरू हो गया। दिनभर यहां लोक कला और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। इस दिन यहां 15 से 20 हजार लोग आते हैं।
दैनिक भास्कर ने नृत्य करने वाले और गांव के लोगों से बात की। जाना कि मौनिया नृत्य का इतिहास, मान्यता और कैसे किया जाता है।
मौनिया नृत्य करने राम राजा के दरबार में कई टोलियां पहुंची हैं।
खरीफ की अच्छी फसल की खुशी, रबी के लिए कामना बुंदेलखंड के ग्रामीण खरीफ की अच्छी फसल होने की खुशी और रबी की अच्छी फसल की कामना करते हैं। इसके लिए दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद मौनिया बुंदेलखंड के 12 देव स्थानों के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। 12 धार्मिक स्थलों पर जाकर नृत्य करते हैं। इनमें ओरछा के रामराजा सबसे प्रमुख हैं। टोली के सभी ग्रामीण मौन व्रत रखते हैं। इसके बाद घर पहुंचकर मौन व्रत खोलते हैं। ओरछा के रामराजा दरबार में खुशहाली के लिए नृत्य की यह अनूठी परंपरा सैकड़ों वर्षों से जीवंत है।
गोवर्धन पूजा तक चलता है कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में झांसी जिले के चिरगांव के रहने वाले गोपाल बताते हैं कि बुंदेलखंड में दीपावली पर मौनिया नृत्य की प्रस्तुति के लिए एक महीने पहले से कलाकार तैयारी करते हैं। दीपावली की सुबह तीर्थ स्थानों पर पहुंचकर नृत्य करते हैं। लक्ष्मी पूजन के बाद घर से निकल जाते हैं। यह उत्सव गोवर्धन पूजा तक चलता है। यहां छतरपुर, पन्ना, दमोह, उत्तर प्रदेश के झांसी, महोबा, हमीरपुर, बांदा, दतिया से लोग आते हैं।
लाठी और डंडों से किया जाता है नृत्य ओरछा के रहने वाले अभिषेक दुबे ने बताया कि मौनिया नृत्य बुंदेलखंड में खासतौर से सागर, झांसी, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना जिले के लोगों द्वारा किया जाता है। इसका स्वरूप सांस्कृतिक के साथ युद्ध कौशल से भी जुड़ा है। इसमें मात्र पुरुष ही हिस्सा लेते हैं। इसका केंद्र वीर रस प्रधान होता है।
इसमें ग्रामीण रावला को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मौनिया नृत्य कहते हैं। इसमें 12 से ज्यादा कलाकार गोला बनाते हैं। बीच में एक नर्तक होता है। सभी के हाथ में लाठियां होती हैं। वे साथ गीत और ढोल नगड़िया की थाप पर लाठियों से वार करते हैं। कलाकार दो डंडे हाथ में लेकर नाच-नाचकर इन डंडों से खेलते हैं। इसमें ढोलक, मंजीरा, रमतूला, झीका, नगारा आदि प्रमुख वाद्य यंत्र हैं।
मान्यता- श्रीकृष्ण ने किया था मौनिया नृत्य मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ग्वालों के साथ सबसे पहले मौनिया नृत्य किया था। इसे मौनी पड़वा पर खुशहाली के लिए किया जाता है। बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धरोहर न केवल लोक संगीत और नृत्य को दर्शाती है, बल्कि इतिहास और परंपराओं से भी संबंध रखती है।
सैरा नृत्य के नाम से भी प्रसिद्ध यह नृत्य कृष्ण व उनके साथी ग्वालों का रूपक है। इसे मौनी पड़वा पर खुशहाली के लिए किया जाता है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं। सभी कलाकार मंडली के रूप में तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर नाच-गाने का प्रदर्शन करते हैं। कलाकार एक वेशभूषा में चुस्त परिधान जांघिया, कुर्ता, बनियान पहनते हैं। कमर में बजने वाली घुंघरूओं की माला पहनते हैं। कुछ मोरपंख हाथ में लेते हैं और कुछ सिर पर धारण करते हैं।
नर्तकों की कमर में घुंघरू बंधे होते हैं। गाने वाले को ‘बरेदी’ कहते हैं। बरेदी और मौनिया नृत्य में अंतर सिर्फ इतना है कि बरेदी में युद्धकला का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि लोकगीत और संगीत की प्रमुखता होती है।
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