[ad_1]
गुमला में तीन विधानसभा सीटें हैं। गुमला, बिशुनपुर और सिसई। तीनों सीटें लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में आती हैं। ये एसटी के लिए आरक्षित हैं। फिलहाल यहां झामुमो का कब्जा है। आदिवासी समुदाय का वोट यहां अहम रहता है।
.
इसी वजह से जमीन, वन अधिकार और सांस्कृतिक संरक्षण के इर्द-गिर्द दलीय राजनीतिक घूमती है। इस बार यहां दोनों गठबंधन के लिए रूठे हुए अपनों को मनाना बड़ी चुनौती है। भीतरघात की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
सिसई : आमने-सामने की टक्कर
सिसई से अभी झामुमो के जिगा सुसारन होरो विधायक हैं। झामुमो ने फिर उनपर भरोसा जताया है। भाजपा ने पिछले प्रत्याशी दिनेश उरांव की जगह डॉ. अरुण उरांव को मैदान में उतारा है। 2019 के चुनाव में जिगा सुसारन होरो ने भाजपा के दिनेश उरांव को 38,418 मतों से हराया था। जिगा मतदाताओं को क्षेत्र में हुए विकास कार्य की याद दिला रहे हैं। 2019 के चुनाव में जिगा के लिए जेंगा उरांव ने बढ़-चढ़कर काम किया था।
इस बार जिगा निर्दलीय मैदान में हैं। प्रदेश कांग्रेस सचिव रोशन बरवा भी निर्दलीय लड़ रहे हैं। यदि दोनों मैदान में डटे रहे तो इसका नुकसान इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को उठाना पड़ सकता है। साथ ही, एंटी इनकंबेंसी की बातें भी हो रही है। वहीं, भाजपा ने इसबार डॉ. अरुण उरांव काे मौका दिया है।
डॉ. उरांव पूर्व आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं। वे आदिवासियों के बड़े नेता कार्तिक उरांव के दामाद और बंदी उरांव के बेटे हैं। इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और भाजपा का मजबूत कैडर समर्थन का बड़ा आधार है। पूर्व स्पीकर दिनेश उरांव का समर्थन इनके लिए जरूरी है। लेकिन, उनकी सक्रियता अब तक सामने नहीं आई है। यदि वे इस चुनाव में मौन रह गए तो खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
गुमला : भाजपा ने बदला उम्मीदवार
गुमला में झामुमो के भूषण तिर्की विधायक हैं। झामुमो ने पुन: उनपर भरोसा जताया है। भाजपा ने पिछले प्रत्याशी मिशिर कुजूर की जगह पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री सुदर्शन भगत को टिकट दिया है। 2019 के चुनाव में भूषण तिर्की ने भाजपा के मिशिर कुजूर को 7667 मतों से हराया था। इस सीट पर आदिवासी समुदाय की जनसंख्या अधिक होने के कारण चुनाव में जनजातीय मुद्दों की अहम भूमिका रहती है। झामुमो की पकड़ आदिवासी वोटरों पर मजबूत मानी जाती है।
वहीं, भाजपा विकास और केंद्र की योजनाओं का प्रचार करती है। यहां धार्मिक और सामाजिक विभाजन भी देखने को मिलता है। मिशिर कुजूर के निर्दलीय प्रत्याशी बन जाने से भाजपा उम्मीदवार सुदर्शन भगत की परेशानी बढ़ी हुई है। मिशिर को मनाने की कोशिश हो रही है। फिलहाल, बात नहीं बनी है।
ऐसी ही स्थिति झामुमो और उसके प्रत्याशी के लिए भी बनी हुई है। झामुमो के बागी अमित एक्का ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है। उनको मनाने का प्रयास हो रहा है। लेकिन स्थिति में परिवर्तन नहीं हुआ है। झामुमो प्रत्याशी की आदिवासी सरना, ईसाई व मुस्लिम समाज के बीच मजबूत पकड़ है। दो बार विधायक रहने से एंटी इनकंबेंसी की बात से भी जूझना पड़ रहा है।
बिशुनपुर : झामुमो का मजबूत गढ़
बिशुनपुर विधानसभा सीट से झामुमो के चमरा लिंडा विधायक हैं। झामुमो ने फिर से उन्हें टिकट दिया है। पर, भाजपा ने प्रत्याशी बदल दिया है। 2019 में चुनाव लड़े अशोक उरांव की जगह पूर्व सांसद समीर उरांव को मैदान में उतारा है। 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा को 17382 मतों से मात मिली थी।
लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार को 14819 वोट की लीड मिली थी। चमरा लिंडा विधायक रहते अपने काम को प्रचारित करने में लगे हैं। लेकिन मुसीबत है कि झामुमो के स्थानीय नेता जगरनाथ उरांव और महात्मा उरांव निर्दलीय प्रत्याशी बन गए हैं। यदि वे नामांकन वापस नहीं लेते हैं तो चमरा की परेशानी बढ़ सकती है।
वहीं, भाजपा उम्मीदवार समीर उरांव राज्यसभा सांसद रहते किए गए काम के बूते नैया पार कराने की कोशिश में लगे हैं। भाजपा के जनाधार का भी उन्हें भरोसा है। लेकिन भाजपा के बागी राम प्रसाद बड़ाइक निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए हैं। यदि वे हटते हैं तो इसका खामियाजा समीर उरांव को उठाना पड़ सकता है। दूसरी बड़ी परेशानी समीर उरांव के लिए यह है कि पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे अशोक उरांव झामुमो में शामिल होकर क्षेत्र में काम करने लगे हैं।
[ad_2]
Source link