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Attacks on Hindus in Bangladesh : बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर अब सीधे तौर पर हमले भले ही कम हो गए हैं, लेकिन उनके हालातों में कोई कमी नहीं आई है. बांग्लादेश में बिगड़ते राजनीतिक माहौल में हिंदुओं को भेदभाव और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में हिंदुओं को न सिर्फ भेदभाव, बल्कि शारीरिक हिंसा से लेकर सामाजिक बहिष्कार तक की धमकियां मिल रही हैं. इसके साथ ही उनको बदनाम करने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं.
तख्तापलट के बाद बढ़ी कट्टरपंथी समूहों की ताकत
5 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने देश में सत्ता संभाली. इसके बाद से देश में कट्टरपंथी समूहों को ताकत मिल गई और देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं को बढ़ावा मिल गया.
मौत की धमकी देकर लिया जा रहा इस्तीफा
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चटगांव विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर रोंटू दास को कथित तौर पर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया. इसके अलावा उन्हें मौत की धमकियां भी दी गई. अपने साथ हुए भेदभाव का जिक्र करते हुए असिस्टेंट प्रोफेसर रोंटू दास ने अपना त्यागपत्र दे दिया. जिसके बाद से वह सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो गया है.
हिंदू पुलिस कर्मियों को भी किया गया बर्खास्त
बांग्लादेश में यह भेदभाव शिक्षण संस्थानों के साथ पुलिस व्यवस्था में शामिल हिंदू कैडेटों तक भी देखा गया है. हाल ही में, शारदा पुलिस अकादमी में अपना प्रशिक्षण पूरा कर चुके 252 पुलिस सब-इंस्पेक्टरों को अनुशासनहीनता और अनियमितताओं का आरोप लगाकर बर्खास्त कर दिया गया है. 252 सब-इंस्पेक्टरों में 91 हिंदू कर्मी शामिल थे. बता दें कि इन सभी की नियुक्ति पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान हुई थी.
इसके साथ ही शारदा पुलिस अकादमी में 60 से अधिक एएसपी रैंक के अधिकारियों के लिए 20 अक्टूबर को होने वाली पासआउट परेड को भी रद्द कर दिया गया. जिससे इन अधिकारियों की सरकारी भूमिकाओं में नियुक्ति में देरी हुई.
हिंदू समुदाय का दावा, दुश्मनी का बन रहा है माहौल
इस दौरान हिंदू समुदाय दावा कर रहा है कि बांग्लादेश में हिंदूओं के खिलाफ दुश्मनी का माहौल बन रहा है. जिसके कारण हिंदूओं को अपनी नौकरी और अन्य मौके खोने पड़ रहे हैं. इस पर कट्टरपंथी समूहों ने विरोध में आरोप लगाया है कि शेख हसीना की पिछली सरकार ने अपनी पार्टी के करीबी लोगों को नियुक्त किया था.
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