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मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के तत्वावधान में चित्रकूट के राघव प्रयाग घाट पर चल रहे अंतर्राष्ट्रीय रामलीला उत्सव के छठवें दिन लीला मंडल रंगरेज कला संस्थान, उज्जैन के कलाकारों ने श्रीराम-हनुमान मिलन, श्रीराम सुग्रीव मैत्री, बालि वध, हनुमान-रावण संवा
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श्रीराम से मिले हनुमान
श्रीरामलीला उत्सव के पहले प्रसंग में दिखाया गया कि माता सीता को खोजते हुए प्रभु श्रीराम का मिलन हनुमानजी से होता है। हनुमानजी उन्हें पहचान नहीं पाते। हनुमान जी कहते है, आप सुंदर मुख वाले क्यों इस वन में कड़ी धूप सह रहे हैं। कहीं आप नारायण तो नहीं है, आपने भू का भार कम करने के लिए कहीं अवतार तो नहीं लिया है।
प्रभु श्रीराम कहते हैं, हे पवनपुत्र आप भेष बदलकर अपना परिचय छिपा रहे हैं तो मैं अपना परिचय क्यों दूं। हनुमानजी प्रभु को पहचानने के बाद उनके चरण में अपना शीश नवाते हैं। श्रीराम अपना परिचय देते हुए बताते हैं कि हम सीताजी को खोज रहे हैं। हनुमानजी उन्हें सुग्रीव से मिलने का सुझाव देते हुए कहते हैं कि आप उन्हें मित्र बना लीजिए तो दास की कमी भी पूरी हो जाएगी। श्रीराम कहते हैं, दास से मित्रता कैसे होगी।
हनुमानजी मुस्कुराते हुए कहते हैं, प्रभु जब आपकी सुग्रीवजी से मित्रता हो जाएगी तो दास का जो स्थान खाली होगा, वो स्थान आप मुझे दे दीजिएगा। आपको ये दास मिल जाएगा और भक्ति के पांचों भाव पूरे हो जाएंगे। श्रीरामजी उन्हें अपने गले से लगा लेते हैं।
सुग्रीव से भेंट के बाद बालि वध-
श्रीराम की भेंट सुग्रीव से होती है। सुग्रीव जी से भेंट होने पर श्रीराम उनसे वन में रहने का कारण पूछते हैं तो सुग्रीव जी कहते हैं, आपने अपने दुःख को भूलाकर मेरे दुःख का कारण पूछा। इसके बाद वे बड़े भाई बालि के राज्य से निकालने की कहानी सुनाते हैं। प्रभु श्रीराम बालि का वध कर राज्य सुग्रीव को सौंप देते हैं।
हनुमान ने किया लंका दहन सुग्रीव अपनी सेना को माता सीजा की खोज के लिए भेजते हैं। हनुमानजी लंका में जाकर माता सीता के पास अशोक वाटिका में जाते हैं। वे रावण से माता सीता को छोड़ने को कहते हैं। अहंकार से भरा रावण उनकी पूंछ में आग लगवा देता है, हनुमानजी पूरी लंका का दहन कर देते हैं।
रामेश्वरम स्थापना, राम राज्याभिषेक आज उत्सव के समापन दिवस 26 अक्टूबर को सेतुबंध, रामेश्वरम स्थापना, रावण-अंगद संवाद, कुंभकरण, मेघनाथ एवं रावण मरण, श्री राम राज्याभिषेक प्रसंगों को मंचित किए जायेंगे।
आयुर्वेद के ज्ञाता थे जटायु इस मौके पर श्रीरामकथा के चरितों पर आधारित व्याख्यानमाला में नर्मदापुरम के डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र ने जटायु चरित्र पर अपना उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि बचपन में जटायु और सम्पाती ने सूर्य मंडल को स्पर्श करने के लिए आकाश में उड़ान भरी। सूर्य के तेज से व्याकुल होकर जटायु असहनीय ताप से खुद के पंखों को बचाने वापस लौट आए, किंतु सम्पाती उड़ते रहे। सूर्य के निकट पहुंचने पर सम्पाती सूर्य के ताप से उनके पंख जल गए और समुद्र में गिरकर चेतना शून्य हो गए। ये प्रसंग जटायु की बुद्धिमता को प्रदर्शित करता है। उन्होंने विवेकशीलता का परिचय देते हुए सूर्य के ताप से खुद के पंखों की रक्षा की। डॉ. मिश्र कहते हैं, चंद्रमा नामक ऋषि ने उनके दुःख को देखते हुए उनका उपचार किया और त्रेता युग में माता सीजा की खोज में आने वाले वानरों के दर्शन होने पर पुनः पंख प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया।
डॉ. मिश्र कहते हैं, जटायु और सम्पाती अपना रूप बदल सकते थे, वे मनुष्य का रूप भी ले सकते थे। उनमें मैत्री का भी भाव था। जटायु का शरीर पर्वत के समान था। वे आयुर्वेद के ज्ञाता थे, जब उनकी प्रभु श्रीराम से भेंट हुई तो उन्होंने पंचवटी के वन में पाए जाने वाली दिव्य औषधि के बारे में बताया था। एक अन्य कथा के अनुसार सावल और महाबल को एक ऋषि ने श्राप दिया था, दोनों के ऋषि से निवेदन करने पर श्रीराम की सेवा कर मुक्ति पाने का मार्ग बताया। अगले जन्म में जटायु और सम्पाती बनकर वे ऋषियों की शरण में रहकर उन्हें राक्षसों से बचाने लगे। एक कथा के अनुसार रावण के ऋषियों पर आक्रमण करने पर जटायु ने उन्हें निगल लिया था। ब्रह्मजी के कहने पर नारद मुनि जटायु के पास आकर कहते हैं, रावण आपके द्वारा नहीं मारा जा सकता। अभी इसकी बहुत आयु शेष है, रावण का वध विष्णु के अवतार श्रीराम के हाथों होगा। तब जटायु रावण को उगल कर जीवनदान देते हैं।
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