[ad_1]
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को उस शख्स को दो हफ्ते की ट्रांजिट जमानत दे दी है, जिस पर नागालैंड के लोगों के प्रति नस्लीय घृणा और वैमनस्य भड़काने वाली नफरती पोस्ट करने का आरोप है। कोर्ट ने शख्स को राहत देते हुए कहा कि, वीडियो की ट्रांसस्क्रिप्ट देखने से प्रथम दृष्टया ऐसा नहीं लगता कि आवेदक ने यह टिप्पणी केवल इसलिए की है क्योंकि शिकायतकर्ता या नागालैंड के लोग अनुसूचित जाति से हैं।
जस्टिस अमित महाजन ने जमानत पर फैसला सुनाते हुए कहा, ‘यद्यपि आवेदक के कृत्य को देखकर ऐसा लगता है कि इससे नागालैंड में रहने वाले लोगों की छवि खराब हो सकती है, लेकिन प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत नहीं होता कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति से है।’
दरअसल दिल्ली निवासी आवेदक आकाश तंवर के खिलाफ इस मामले में साल 2023 में नागालैंड में भारतीय दंड संहिता और SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज की गई थी। जिसके बाद नागालैंड पुलिस ने पिछले साल नवंबर में उसे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले में निचली अदालत ने आकाश को ट्रांजिट रिमांड पर देने से इनकार कर दिया था, लेकिन आगे की कार्यवाही तक उसे 10 दिन की अंतरिम जमानत दे दी थी।
इसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए ट्रांजिट जमानत की मांग की, ताकि वो नागालैंड में सक्षम न्यायालय में अपील कर सके। तंवर ने हाईकोर्ट से उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग भी की। अदालत ने उसे जमानत देते हुए कहा कि इस मामले में आवेदक को उचित क्षेत्रीय और विषय-वस्तु क्षेत्राधिकार रखने वाली अदालत के सामने उपाय तलाशने का अवसर दिया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘यह देखते हुए कि FIR नागालैंड में दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आवेदक ने सांप्रदायिक घृणा, दुश्मनी और वैमनस्य को भड़काने के इरादे से नागालैंड के लोगों से संबंधित एक वीडियो बनाया और इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। इसलिए, कानून द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुसार जमानत की मांग करने वाला एक आवेदन नागालैंड में संबंधित अदालत के समक्ष दायर किया जाना चाहिए।’
अदालत ने कहा, ‘यह ना केवल उचित है बल्कि न्याय के हित में भी है कि आवेदक को उस मंच पर उपलब्ध कानूनी उपाय अपनाने की अनुमति दी जाए।’ इसके बाद हाई कोर्ट ने आकाश तंवर को नागालैंड में उचित कानूनी उपचार प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करने के लिए सीमित अवधि के लिए ट्रांजिट जमानत दे दी।
आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि नागालैंड में एफआईआर दर्ज करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और उत्पीड़न करने के मकसद से किया गया है, क्योंकि आकाश तंवर का उस राज्य से कोई संबंध नहीं है। जवाब में दूसरे पक्ष की तरफ से यह तर्क दिया गया कि एफआईआर केवल इसलिए दर्ज की गई क्योंकि शिकायतकर्ता, जो कि नागालैंड का निवासी है, उसे पोस्ट की गई सामग्री से नाराजगी थी, भले ही पोस्ट करने का काम दिल्ली में हुआ हो।
नागालैंड राज्य के वकील ने दलील दी कि तंवर द्वारा बनाए गए वीडियो में सीधे तौर पर नागालैंड के लोगों को निशाना बनाया गया है तथा नागा लोगों की खान-पान की आदतों पर अत्यधिक आपत्तिजनक और भेदभावपूर्ण तरीके से टिप्पणी करके समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने का काम किया गया है।
अदालत ने व्यक्ति को ट्रांजिट जमानत देते हुए कहा कि सोशल मीडिया पोस्ट कुछ समुदायों के लिए आपत्तिजनक है, लेकिन यह किसी व्यक्ति को उसकी जाति या जनजातीय पहचान के आधार पर निशाना नहीं बनाती है। अदालत ने कहा, ‘इसके अलावा, ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता का इरादा जाति के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह को अपमानित करने या नीचा दिखाने का था।’
हालांकि अदालत ने तंवर की उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया, साथ ही उन्हें नागालैंड में संबंधित अदालत के समक्ष इसी तरह की याचिका दायर करने की छूट दी।
[ad_2]
Source link