[ad_1]
खेल के मैदान से राजनीति में आने का सिलसिला देश में नया नहीं है। आजादी के बाद से ही ऐसा होने लगा था। इसी तरह के एक शख्सियत रहे हैं दो बार के विधायक सुखेदव मांझी। हॉकी खिलाड़ी रहे सुखदेव मांझी को जयापल सिंह मुंडा ने खेल के मैदान से राजनीति में लाया, जो लगातार दस सालों तक बिहार विधानसभा के विधायक रहे। सुखदेव मांझी वर्ष 1952 में झारखंड पार्टी के टिकट पर चक्रधरपुर और 1957 में चाईबासा से इसी पार्टी के टिकट पर विधायक बने। दूसरी बार जब सुखदेव मांझी पर्चा भरने जा रहे थे तब बीच रास्ते में अचानक उनके सामने एक बाघ आकर खड़ा हो गया था।
सामने आकर खड़ा हो गया था बाघ
सुखदेव मांझी के पुत्र पीसी मुर्मू ने बताया कि उस जमाने में चुनाव लड़ना और प्रचार करना आसान नहीं था। सवारी के नाम पर सिर्फ साइकिल होती थी। 1957 में सुखदेव मांझी चुनाव के लिए नामांकन करने साइकिल से अकेले ही चक्रधरपुर से चाईबासा चले गए थे। बीच जंगल में एक बाघ सामने आकर सड़क पर खड़ा हो गया। काफी देर तक सुखदेव मांझी वहीं खड़े रहे। इस बीच चाईबासा से आ रही हनीब बस भी वहां आ गयी। बस में सवार यात्री सुखदेव को भागने की सलाह देने लगे, लेकिन सुखदेव अपनी साइकिल के साथ खड़े रहे। बाद में बाघ ने रास्ता छोड़ दिया और जंगल की ओर चला गया।
पहली बार 500 रुपए में लड़ा था चुनाव
प्रेमचंद मुर्मू बताते हैं कि पहली बार उनके प्रतिद्वंदी के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी श्यामचरण तुबिद खड़े थे। इस चुनाव में 21 हजार वोट लाकर सुखदेव मांझी चक्रधपुर से विधायक बने। पहली बार उन्होंने मात्र 500 रुपए में चुनाव लड़ा था। वे 1962 तक झापा के विधायक रहे और अलग झारखंड राज्य के लिए बनी कमेटी में सदस्य भी रहे। लगातार दस साल तक विधायक रहने के बाद भी वह अपने कच्चे मकान में रहे। आज भी वह मकान कच्चा ही है।
[ad_2]
Source link