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उत्तराखंड के जंगलों में आग बुझाने के लिए वन विभाग के पास न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही वाहन। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट के अनुसार, वनकर्मी पैदल पेट्रोलिंग के लिए मजबूर हैं। रिपोर्ट में आग…
– वनकर्मी वाहन के अभाव में पैदल पेट्रोलिंग के लिए मजबूर – नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर तैयार रिपोर्ट में खुलासा
प्रभात कुमार
नई दिल्ली। उत्तराखंड के जंगलों में आए दिन लगने वाली आग बुझाने के लिए वन विभाग के पास न तो पर्याप्त साधन है और न ही लोग। जंगलों में पेट्रोलिंग के लिए वाहन भी नहीं है, ऐसे में कर्मचारी पैदल ही पेट्रोलिंग करने के लिए मजबूर हैं। इसका खुलासा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पेश एक रिपोर्ट से हुआ है।
यह रिपोर्ट एनजीटी के न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ के समक्ष मामले में नियुक्त न्याय मित्र एवं अधिवक्ता गौरव बंसल ने पेश की है। एनजीटी के निर्देश पर तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 फीसदी वन क्षेत्र है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इतने बड़े वन क्षेत्र होने के बाद भी वन विभाग के पास जंगलों में आए दिन लगने वाले आग से निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। जंगलों में आग को लेकर दीपिका खारी की शिकायत से जुड़े मामले में यह रिपोर्ट पेश की गई है। दीपिका ने एनजीटी से शिकायत की थी कि ऋषिकेश जाने के दौरान उसने रास्ते में जंगल में लगी देखी। उन्होंने कई जगह इसकी शिकायत की लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।
10 फीसदी रेंज में अधिकारी के लिए एक वाहन
पीठ के समक्ष पेश अपनी रिपोर्ट में अधिवक्ता बंसल ने कहा है कि उत्तराखंड में वन विभाग 27 वन प्रभाग में बंटे हैं। इनमें लगभग 160 रेंज हैं और प्रत्येक रेंज में 6 से 7 सेक्शन हैं, जिसका नेतृत्व सेक्शन अधिकारी/वनपाल करते हैं)। प्रत्येक सेक्शन में 15 से 20 बीट हैं, जिसका नेतृत्व बीट अधिकारी/वनरक्षक करते हैं) हैं। लेकिन मुश्किल से 10 फीसदी रेंज में अधिकारी व रेंजर के लिए एक वाहन है। आग बुझाने के समय वनकर्मियों के काम आने वाले विशेष यूनिफार्म तक नहीं हैं।
क्रू स्टेशन की हालत जर्जर
एनजीटी को बताया गया है कि लगभग दो-तिहाई स्टाफ चौकियां, वन विभाग के कार्यालय, जिनका उपयोग अग्निशमन के लिए क्रू स्टेशन के रूप में भी किया जाता है, वे जर्जर हालत में हैं और अपनी उम्र को पूरी कर चुके हैं। वन रक्षक और वनपाल चौकियों पर महिला फ्रंटलाइन स्टाफ के लिए शौचालय और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। दूरदराज के क्षेत्रों व कठिन इलाकों में स्थित वनपाल चौकियों पर मोबाइल नेटवर्क और बिजली कनेक्टिविटी नहीं है।
प्रत्येक 2448 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लिए केवल एक वन रक्षक
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन है। इसकी देखरेख के लिए 1552 क्षेत्रीय बीट हैं। हर बीट पर 2448 हेक्टेयर क्षेत्र की देखरेख की जिम्मेदारी है। प्रत्येक बीट का नेतृत्व केवल वन रक्षक करता है, जिससे पता चलता है कि प्रत्येक 2448 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लिए केवल एक वन रक्षक है। इन पर कठिन पहाड़ी इलाकों सहित इस विशाल क्षेत्र में लगातार गश्त करने और अवैध कटाई, अवैध खनन, वन्यजीव शिकार और अन्य वन व वन्यजीव संबंधी अपराधों को काबू करने की जिम्मेदारी है। इसकी वजह से आग लगने की घटना का देरी से पता चलता है।
रिपोर्ट में इन बातों की सिफारिश की गई
इसकी दरकार
– जंगलों में आग बुझाने और उसकी निगरानी के लिए प्रत्येक रेंजर के लिए कम से कम एक चार पहिया वाहन और वनरक्षकों के लिए 5 से 10 दो पहिया वाहनों का प्रावधान हो। ईंधन और रखरखाव के लिए नियमित बजट भी हो।
– केंद्र सरकार पुलिस आधुनिकीकरण की तर्ज पर वन और वन्यजीव संबंधी मुद्दों के लिए भी पर्याप्त धनराशि आवंटित करे
– प्रभावी अग्नि प्रबंधन के लिए अग्नि रेखाओं का निर्माण और रखरखाव आवश्यक
– उत्तराखंड सरकार अपनी अग्नि रेखाओं की समीक्षा करे
– आग बुझाने के लिए पर्याप्त उपकरण मुहैया कराए
– उत्तराखंड सरकार पर्याप्त संख्या में वन रक्षकों, चौकीदारों तथा वनपालों की नियुक्ति करे
– वन विभाग के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों तथा अस्थायी कर्मचारियों के लिए बीमा योजना हो
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