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सियासत की दुनिया में नया दौर शुरू हो गया है। राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया मंच अपनी बातों को रखने का सबसे आसान और पसंदीदा जगह बन गया है। ऐसे में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ तेज हुई सियासी सरगर्मी चुनावी सभाओं से पहले सोशल मीडिया पर दिख रही है। वर्चुअल वॉर (आभासी जंग) तेज हो गया है।
पार्टियां अपने एजेंडों और मुद्दों को लेकर सोशल मीडिया मंच पर एक-दूसरे पर हमलावर हैं। आरोप-प्रत्यारोप, लगाकर एक-दूसरे की घेराबंदी कर रही हैं। एक ओर धर्म और भाषा की मान्यता के मुद्दे मुखर किए जा रहे हैं, वहीं स्थानीयता नीति के मसले पर भी एक-दूसरे को घेरने की जोर-आजमाइश चल रही है।
चुनावी रणक्षेत्र में उतरने से पहले राजनीतिक दल सोशल मीडिया में मुद्दों को लेकर हवा का रुख अपनी ओर मोड़ने की कवायद में हैं। इंडिया गठबंधन जहां सरना धर्म को मान्यता न देने का मुद्दा उछालकर एनडीए की केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताते नहीं थक रहा है, वहीं एनडीए मैथिली-भोजपुरी भाषा को बाहरी भाषा कहे जाने पर इंडिया गठबंधन को घेर रहा है। इंडिया का प्रमुख घटक दल झामुमो सरना धर्म कोड की मान्यता को लेकर आदिवासी वोट बैंक की साधने की कोशिश कर रहा है। अभी प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक की नजर इस मुद्दे पर टिकी है। झामुमो नेता सोशल मीडिया पर एनडीए से सवाल पूछ रहे हैं कि हमने तो राज्य से सरना धर्म को मान्यता देने की अनुशंसा केंद्र सरकार को भेज दी, फिर इसे मोदी सरकार मान्यता क्यों नहीं दे रही।ट
सोशल मीडिया में इन मुद्दों पर दलों की फील्डिंग
एनडीए गठबंधन
● झामुमोनीत सरकार पर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगा रहा।
● बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा राज्य की डेमोग्राफी बदलने के प्रयास पर हमलावर है।
● परिवारवाद का मुद्दा उठाते हुए इंडिया गठबंधन पर स्थानीय नेताओं की उपेक्षा का आरोप लगा रहा।
● विधि-व्यवस्था का सवाल उठाते हुए अपराध को संरक्षण देने के मुद्दे पर भी हमलावर है।
● राज्य के अफसरों पर दबाव बनाते हुए विपक्षी दलों के खिलाफ कार्रवाई का आरोप।
इंडिया गठबंधन
● मंईयां सम्मान योजना को राज्य की तमाम महिलाओं के लिए हितकारी और क्रांतिकारी बता रहा है।
● झारखंडी अस्मिता की रक्षा को लेकर भाजपा पर हमलावर है।
● केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है।
● भाजपा पर बाहरी नेताओं के जरिए राज्य का माहौल खराब करने का आरोप लगा रहा।
● भाजपा पर पार्टियों को तोड़ने की साजिश रचने का मुद्दा उठा रहा।
धर्म और भाषा की मान्यता को लेकर शुरू हुई लामबंदी
भाषाओं पर भी समाज को साधने की कोशिश हो रही है। हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर भी राजनीतिक हमले किए जा रहे हैं। भाजपा में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री ने इसे लेकर पिछले दिनों एक्स पर पोस्ट किया और कोल्हान के हो समाज को साधने की कोशिश की। आनन-फानन में झामुमो ने भी सोशल मीडिया मंच एक्स पर हेमंत सोरेन की वह चिट्ठी वायरल कर दी, जिसमें दो साल पहले हो भाषा को मान्यता देने को लेकर केंद्र को अनुशंसा भेजी गई थी। कोशिश हर दल की यही है कि किसी तरह धर्म और भाषा के मसले पर समाज का भावनात्मक रूप से ध्यान आकृष्ट किया जाए। इसी तरह स्थानीयता की परिभाषा को लेकर भी दल अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। खतियानी स्थानीयता और बाहरी-भीतरी का मुद्दा भी उठाया जा रहा है।
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