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ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी से जूझ रही पत्नी को डॉक्टर ने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया। परिवार की मेडिक्लेम पॉलिसी थी तो बीमा कंपनी को क्लेम के लिए डॉक्यूमेंट दिए, लेकिन क्लेम निरस्त हो गया। कारण बताया कि जो इंजेक्शन लगा है। उसके लिए भर्ती करना प
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पढ़िए बीमा कंपनी ने क्लेम नहीं देने के क्या-क्या बहाने बनाए, लेकिन सभी एक-एक कर कैसे खारिज होते चले गए।
पहले जान लीजिए मामला क्या है डॉ.अजय कुमार जैन के द्वारा दि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड विजय नगर और विपुल मेडकार्प इंश्योरेंस टीपीए आरएनटी मार्ग के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में फरवरी 2021 में केस लगाया गया था। जिसमें 9 लाख 8 हजार 163 रुपए राशि पर 12 प्रतिशत ब्याज, मानसिक कष्ट के 3 लाख और अधिवक्ता शुल्क के 10 हजार सहित अन्य खर्च की मांग की गई थी। फरियादी डॉ.अजय कुमार जैन ने मेडिकल इलाज के लिए बीमा पॉलिसी 22 जून 2000 को ली थी। जिसमें वो खुद, पत्नी सुचित जैन और बेटा सुजय कवर थे। पॉलिसी को डॉ. जैन हर बार रिन्यू करवाते रहे। लेकिन उनके क्लेम को बीमा कंपनी ने नामंजूर कर दिया।
दवाई को बता दिया क्लेम नामंजूर होने का कारण डॉ.जैन की पत्नी साल 2018 में 24 से 28 सितंबर तक हॉस्पिटल में भर्ती रहीं। उनका ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी का इलाज चला। इसके बाद भी कई बार पत्नी को अस्पताल में भर्ती रख इलाज करवाया गया। हर बार अस्पताल के बिल का भुगतान कर चल रही बीमा पॉलिसी के तहत डॉ. जैन ने क्लेम प्रस्तुत किया गया। लेकिन बीमा कंपनी ने दवाई को कारण बताते हुए उसे निरस्त कर दिया। कहा कि दवाई का उपयोग संबंधित इलाज में नहीं किया जाता है।
क्लेम निरस्त करने की ये गिनाई वजह
पहली बार 5 फरवरी 2019 को कंपनी ने मेडिक्लेम निरस्त किया कारण – पॉलिसी के तहत 5 लाख का बीमा है। जिसका भुगतान किया जा चुका है। ये हुई चूक- डॉ. जैन ने मूल बीमा पॉलिसी के साथ 10 लाख रुपए की टापअप पॉलिसी भी करवाई थी। मूल बीमार पॉलिसी के 5 लाख रुपए खत्म होते ही टापअप के रुपए मेडिकल खर्च के लिए उपलब्ध रहते हैं। इस तरह आधारहीन कारण बता कर क्लेम निरस्त हुआ।
दूसरी बार 9 अप्रैल 2019 का क्लेम निरस्त किया कारण – कीमोपार्ट रिमूवल के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। बिना भर्ती हुए भी ये प्रक्रिया की जा सकती है। ये हुई चूक- बीमा कंपनी ने ये माना कि कीमोपार्ट रिमूवल की प्रक्रिया पॉलिसी के तहत मान्य प्रक्रिया है। इसके लिए मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है या नहीं ये डॉक्टर और पेशेंट की स्थिति पर निर्भर करता है। कंपनी ने रूटीन-मैकेनिकल आधार पर कह दिया कि इसके लिए भर्ती होना जरूरी नहीं है।
तीसरी बार 2 मई 2019 को अलग वजह बताकर क्लेम निरस्त कारण – डॉ.जैन ने इंजेक्शन लगाने के लिए पत्नी को अस्पताल में भर्ती किया था। बीमा कंपनी ने कहा कि इंजेक्शन लगाने के लिए भर्ती करना पॉलिसी में नहीं आता। इंजेक्शन लगाना कीमोथैरेपी के तहत नहीं है। ये हुई चूक- इलाज के लिए TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन दिया जाना बहुत जरूरी था। इंजेक्शन का इस्तेमाल कैंसर की बीमारी के इलाज के लिए किया गया था।
बीमा कंपनी ने क्लेम निरस्त कर सेवा में कमी की आयोग को डॉ.जैन ने बताया कि दवाई का उपयोग स्तन कैंसर के मरीज के लिए जरूरी है। TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन के उपयोग से मरीज में बीमारी पुन: आने की संभावना काफी कम हो जाती है। लेकिन बीमा कंपनी ने क्लेम को निरस्त कर सेवा में कमी की है।
कंपनी का जवाब – इंजेक्शन एंटी कैंसर नहीं इसलिए क्लेम निरस्त उपभोक्ता आयोग को कंपनी ने अपना जवाब सौंपा, जिसमें कहा कि डॉ. जैन ने पत्नी को TRASTUZUMEB इंजेक्शन देने के लिए अस्पताल में भर्ती किया। यह इंजेक्शन एंटी कैंसर इंजेक्शन नहीं है। यह स्टैंड अलोन बेसिस पर दिया गया है। लेकिन इस दवा के साथ कैंसर की कोई भी मूल दवा नहीं दी गई है। पॉलिसी के अनुसार ये इंजेक्शन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन में सूचिबद्ध नहीं किया गया है। इंजेक्शन डे केयर प्रोसीजर के तहत दिया जाता है। इसलिए पेशेंट को भर्ती करना जरूरी नहीं है।
इंदौर स्थित उपभोक्ता आयोग का दफ्तर।
6 पॉइंट में समझिए केस में उपभोक्ता आयोग ने कैसे सही और गलत में अंतर निकाला – कंपनी ने डॉ.सुधीर हकसर के हवाले से कहा है कि जो इंजेक्शन दिया गया है। वो बेसिक एंटी कैंसर ड्रग नहीं है। इस प्रकार के कैंसर में इंजेक्शन जरूरी नहीं है। लेकिन कंपनी ने ये नहीं बताया है कि क्या डॉ. हकसर ब्रेस्ट कैंसर विशेषज्ञ हैं। इसका जवाब कंपनी ने नहीं दिया है। यानी डॉ. हकसर कैंसर रोग विशेषज्ञ नहीं है। – जबकि डॉ. जैन की पत्नी का इलाज करने वाले डॉ. प्रकाश चेतलकर को ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का 25 साल का अनुभव है। उन्होंने इंजेक्शन को जरूरी बताया है। – इंजेक्शन कीमोथैरेपी के साथ सहायक करने वाली जरूरी दवाई है, जो कैंसर रोगियों को दी जाती है। – इंजेक्शन कैंसर को बढ़ने से रोकने और जोखिम कम करने के लिए दिया जाता है। ये कैंसर के मरीज को ही दिया जाता है। – समय के बदलाव के साथ इस प्रकार के इंजेक्शन ब्रेस्ट कैंसर मरीजों के लिए जीवन रक्षक दवाई है। – इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि इंजेक्शन इलाज के लिए उपयोगी नहीं था।
आयोग ने ये फैसला सुनाया मामले में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग अध्यक्ष बलराज कुमार पालोदा ने फैसला सुनाया है। जिसके तहत बीमा कंपनी को अब फरियादी डॉ. अजय जैन को क्लेम की राशि 9 लाख 8 हजार 163 रुपए 7 प्रतिशत ब्याज के साथ 15 फरवरी 2021 से देने होंगे। साथ ही मानसिक त्रास के 25 हजार रुपए और केस खर्च के 5 हजार रुपए भी बीमा कंपनी को देने पड़ेंगे।
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