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काव्यपाठ करते डॉ कुमार विश्वास और मंचासिन अन्य कवि।
शहर का कुशलबाग मैदान शनिवार रात चारों तरफ से खचाखच भरा रहा। करीब 30 हजार लोगों से भरे इस मैदान में हर कोई वाह वाह कर दाद देता नजर आया तो कोई तालिया बजाता दिखाई दिया। मौका था अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का। जिसमें मुख्य आकर्षण डॉ कुमार विश्वास रहे। विश्वा
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उन्होंने कहा कि राजस्थान में कोटा का कवि सम्मेलन और वहां के श्रोताओं की भीड़ के रिकॉर्ड को भी आज बांसवाड़ा ने तोड़ दिया है।उन्होंने हंसते हुए कहा कि कांग्रेस भी बैठी है, बीजेपी भी बैठी है, इतना समझ लो ये राजनीतिक मंच नहीं, कवियों का मंच है, मुस्कराईए… हंसिए…।
इस मौके पर उन्होंने कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है, मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है, ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है…। चलो अब लौट चले रघुराय, तुमने सब को महल दिलाए, कहां किसी के भवन गिराए… कविता सुनाई तो श्रोताओं ने खूब तालियां बजाई।
कुमार विश्वास से पहले आए अन्य कवियों ने भी शृंगार, ओज रस और हास्य से दर्शकों को बांधे रखा। मुंबई से आए हास्य कवि दिनेश बावरा ने चुनावों पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस कहती थी कि हाथ का बटन दबाओ, केजरीवाल कहता था कि झाड़ू का बटन दबाओ। भाजपा कहती थी कि तुम कोई भी बटन बताओ, जीतेंगे तो हम ही, और जीत भी गए।
साक्षी तिवारी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के मामले को लेकर काव्य पाठ की शुरुआत की। वीररस का काव्यपाठ करते हुए कहा कि खड़े दुश्मन सीमा पर तो फिर श्रंगार लिखूं क्या, शहीदों की शहादत पर जो आंसू न बहाए तो उनको गद्दार ना लिखूं तो क्या लिखूं।
आगरा से आए रमेश मुस्कान, नोएडा से आए मुमताज नसीम, मुंबई से आए दिनेश बावरा, जबलपुर से सुदीप भोला, लखनऊ से साक्षी तिवारी, नोएडा से अमित शर्मा ने हास्य, वीररस सहित विभिन्न रसों के काव्यपाठों से देर रात तक श्रोताओं को गुदगुदाने के साथ ही देशभक्ति से ओतप्रोत करते हुए बांधे रखा।
मंच पर कवि सम्मेलन आयोजन मेला कमेटी सदस्य व अन्य अतिथियों ने सभापति जैनेंद्र त्रिवेदी का पुष्पहार से स्वागत किया गया। सभापति ने कहा कि मैं इधर या उधर का नहीं हूं, मैं तो जनता का हूं। काव्य पाठ करते डॉ. कुमार विश्वास। डॉ. विश्वास से पहले बांसवाड़ा के कवि बृजमोहन तूफान मंच संचालन कर रहे थे। डॉ. विश्वास ने अपने चिरपरिचित अंदाज में व्यंग्य कसते हुए कहा कि सन् 1991-92 में इसी कुशलबाग मैदान में जैन समाज की ओर से कवि सम्मेलन था। कवि एकेश ने मुझे बुला लिया था। बृजमोहन तूफान से एक हजार रुपए मांगे तो बोले-बजट नहीं है। मैं बोला-500 ही दे दो। मैंने 500 रुपए में काव्य पाठ किया था। मेरा 500 वाला काव्य समझ लिया होता तो इतना खर्च करके नहीं बुलाया होता।
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