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रोहतक में मिट्टी के दीये बनाते हुए कुम्हार
दिवाली पर रोहतक में बने मिट्टी के दीये ना केवल जिला बल्कि प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा गुजरात व मुंबई को भी रोशन करेंगे। रोहतक व झज्जर में तैयार हुए दीयों की काफी डिमांड रहती है। जिसके चलते रोहतक के दीये जिले के अलावा भिवानी, रेवाड़ी, हिसार व कल
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इसके लिए कुम्हार दिवाली से करीब डेढ़-दो माह पहले ही दीये बनाने आरंभ कर देते हैं। ताकि दिवाली पर हर घर में मिट्टी के दीये उपलब्ध हो सके। हालांकि चाइनीज लड़ियों ने मिट्टी के दीयों की बिक्री पर प्रभाव जरूर डाला है। लेकिन अब फिर से लोगों का रूझान दीयों की तरफ बढ़ा है।
महिला मिट्टी से बने करवे तैयार करते हुए
चार तरह के बनाए दीये रोहतक के कुम्हार रमेश कुमार ने बताया कि वे करीब 15 साल से मिट्टी के दीये व अन्य मिट्टी के सामान बनाते हैं। इससे पहले उनके पिता दीये बनाते थे। यहां से दीये गुजरात व मुंबई में भी सप्लाई होते हैं। इसके अलाव भिवानी, रेवाड़ी, हिसार व कलानौर आदि शहरों में दीये जाते हैं। इस बार चार तरह के दीये बनाए हैं। जिनमें एक सबसे छोटा, दूसरा बीच के आकार का व तीसरा बड़े आकार का। वहीं चौथा दीया चार मुंह वाला बनाया है। दीये से अलग करवा, होई, कसोरे आदि बनाए जाते हैं।
रोहतक में मिट्टी के दीये बनाते हुए कुम्हार
4-5 दिन में तैयार होती है दीया बनाने के लिए मिट्टी मिट्टी के दीये बनाने के लिए करीब डेढ़-दो माह पहले लग जाते हैं। हालांकि काम लगभग सालभर चलता रहता है। वे दीये बनाने के लिए मिट्टी गांव पाहसौर से लेकर आते हैं। एक ट्राली मिट्टी के लिए करीब 10 हजार रुपए लगते हैं। दीये बनाने के लिए पहले मिट्टी को कुटते हैं। फिर छलनी से छाना जाता है। वहीं बाद में बिल्कुल बारिक करके भिगोया जाता है। बाद में फिर से छलनी में से घोल को निकाला जाता है। मिट्टी तैयार होने में 4-5 दिन लग जाते हैं। इसके बाद दीये बनते हैं।
भट्ठी में पकाए गए मिट्टी के दीये व अन्य मिट्टी के सामान
चाइनीज लड़ियों के आने से काम प्रभावित इस बार दिवाली पर दीयों की डिमांड की बात करें तो सामान्य है, जो हर साल होती है। चाइनीज लड़ियां बाजार में आने से काम में कमी आई है। हालांकि अभी काम कुछ बढ़ रहा है। रोहतक में हर साल कई लाख दीये बनते हैं। हांलांकि बाहर डिमांड अच्छी है। यहां से गुजरात व मुंबई जाने का कारण यह है कि वहां दीये बनाते नहीं। मिट्टी का दीया शुद्ध होता है। आजकल लोग मिट्टी के काम से बचते हैं। जहां दीये नहीं बनते, वहां लेकर जाते हैं।
बिकने के लिए दुकान पर रखे मिट्टी के दीये दिखाते हुए महिला
सरकार भी करे मदद कुम्हार रमेश कुमार ने बताया कि मिट्टी के काम से बस इतनी ही कमाई होती है कि वे परिवार का गुजार कर सके। लेकिन अच्छा मुनाफा नहीं होता। सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। सरकार प्रोत्साहन के लिए कदम उठाए और मिट्टी, भट्ठी, चाक व बिजली व्यवस्था के लिए कुछ करे। कई बार भट्ठी में नुकसान हो जाता है, बारिश में कच्चे दीय व सामान गल जाता है। उसकी भरपाई की व्यवस्था हो। उन्होंने कहा कि दिवाली पर ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के दीये प्रयोग करें। इससे एक तो पर्यावरण शुद्ध रहेगा, दूसरा घर में शुद्धता रहेगी। वहीं नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाती है।
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