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झारखंड में पार्टियां विधानसभा चुनाव की तैयारी में लग गई हैं। चुनावी अखाड़े में दो-दो हाथ करने के लिए जमीन तैयार की जा रही है। 2005 से 2019 तक चार विधानसभा चुनावों के परिणाम पर नजर डालें, तो कई सीटों पर काफी रोमांचक मुकाबले हुए हैं। जीत का मार्जिन काफी
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इसके बाद सबसे छोटी जीत एनसीपी के कमलेश सिंह के नाम है। 2005 के चुनाव में हुसैनाबाद से राजद प्रत्याशी संजय सिंह यादव उनसे मात्र 35 वोटों से हार गए थे। उस चुनाव में पांच सीटों पर जीत-हार का अंतर 1000 वोटों के बीच था। जबकि, 2009 में सात सीटों पर 1000 वोटों के अंदर जीत-हार का फैसला हुआ था। 2014 के विधानसभा चुनाव में सबसे छोटी जीत झामुमो के पौलुस सोरेन को मिली थी।
तोरपा सीट पर भाजपा के कोचे मुंडा उनसे मात्र 43 वोटों से हारे थे। इसी तरह 2019 में सबसे छोटी जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस के भूषण बारा के नाम है। वे सिमडेगा सीट से विजयी रहे थे। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी श्रद्धानंद बेसरा को 285 मतों से हराया था। इसी तरह बड़ी जीत हासिल करनेवालों में भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, बिरंची नारायण और कांग्रेस के आलमगीर आलम शामिल हैं।
बिरंची ने समरेश सिंह को 72 हजार वोट से हराया था
2014 के विधानसभा चुनाव में बोकारो सीट से भाजपा के बिरंची नारायण को 114,321 वोट मिले थे। उनका मुकाबला पूर्व मंत्री समरेश सिंह से था। बिरंची ने समरेश सिंह को 72 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इसी साल जमशेदपुर पूर्वी सीट से भाजपा प्रत्याशी रघुवर दास को 103,427 वोट मिले थे। रघुवर दास की टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी आनंद बिहारी दुबे से थी। आनंद बिहारी 33,270 वोट ही हासिल कर सके थे और 70 हजार से ज्यादा वोटों से हारे थे।
कांग्रेस के आलमगीर आलम को भी पाकुड़ से 2019 में बड़ी जीत मिली थी।
कांग्रेस के आलमगीर आलम को भी पाकुड़ से 2019 में बड़ी जीत मिली थी। उन्होंने भाजपा के वेणी प्रसाद गुप्ता को 65108 वोटों से हराया था। 2014 में भाजपा के रामकुमार पाहन ने खिजरी सीट से चुनाव जीता था। उनसे कांग्रेस की उम्मीदवार सुंदरी तिर्की करीब 65 हजार वोटों से हार गई थीं। इसी तरह, 2019 में बहरागोड़ा सीट से झामुमो के समीर मोहंती ने भाजपा उम्मीदवार कुणाल षाड़ंगी को 60 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।
5 प्रत्याशियों की हार-जीत का फैसला 875 वोटों के अंदर हुआ
2009 में हटिया विधानसभा सीट से भाजपा कांग्रेस से कम अंतर से हारी थी। कांग्रेस प्रत्याशी गोपाल एसएन शाहदेव को 39,921 वोट मिले थे। उनका मुकाबला भाजपा के रामजी लाल सारडा से था। वे 39,896 मत पाकर 25 वोट से हार गए थे। 100 से कम वोटों से हारने वालों में हुसैनाबाद से संजय सिंह यादव और तोरपा से कोचे मुंडा हैं। 2005 में कमलेश सिंह को 21,661 वोट मिले थे। उनसे राजद प्रत्याशी संजय का मुकाबला था। संजय उस चुनाव में 21,626 मत ही प्राप्त कर सके और 35 वोटों से हार गए थे।
इसी तरह 2014 में भाजपा के कोचे मुंडा ने 31,960 वोट पाया था। वहीं, झामुमो के पौलुस सुरीन 32,003 वोट ही पा सके। झामुमो को मात्र 43 वोटों से हार मिली थी। चुनावों में 10 सीट पर 600 वोटों से भी कम अंतर में फैसला हुआ था। पांच उम्मीदवारों की हार-जीत का फैसला 875 वोटों के अंदर हुआ है। ऐसी लोहरदगा-606 (2009), सिसई-643 (2005), राजमहल-702 (2014), बोरियो-712 (2014) और गुमला-869 (2005) शामिल है।
भाजपा के 3 और झामुमो-कांग्रेस के 1-1 प्रत्याशी जीते
2014 के विधानसभा चुनाव में बोकारो सीट से भाजपा के बिरंची नारायण को 114,321 वोट मिले थे। उनका मुकाबला पूर्व मंत्री समरेश सिंह से था। बिरंची ने समरेश सिंह को 72 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इसी साल जमशेदपुर पूर्वी सीट से भाजपा प्रत्याशी रघुवर दास को 103,427 वोट मिले थे। रघुवर दास की टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी आनंद बिहारी दुबे से थी।
2014 के विस चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट से भाजपा प्रत्याशी रघुवर दास को 103,427 वोट मिले थे।
आनंद बिहारी 33,270 वोट ही हासिल कर सके थे और 70 हजार से ज्यादा वोटों से हारे थे। कांग्रेस के आलमगीर आलम को भी पाकुड़ से 2019 में बड़ी जीत मिली थी। उन्होंने भाजपा के वेणी प्रसाद गुप्ता को 65108 वोटों से हराया था। 2014 में भाजपा के रामकुमार पाहन ने खिजरी सीट से चुनाव जीता था। उनसे कांग्रेस की उम्मीदवार सुंदरी तिर्की करीब 65 हजार वोटों से हार गई थीं। इसी तरह, 2019 में बहरागोड़ा सीट से झामुमो के समीर मोहंती ने भाजपा उम्मीदवार कुणाल षाड़ंगी को 60 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।
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