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नोट- दो बयान जोड़े गए हैं — सुप्रीम कोर्ट में एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल
सुप्रीम कोर्ट में एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल कर लगाया था दो बेटियों को बंधक बनाने का आरोप कोयंबटूर पुलिस ने रिपोर्ट में कहा- महिलाएं अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं, दोनों बालिग हैं
नयी दिल्ली, एजेंसी। उच्चतम न्यायालय ने ईशा फाउंडेशन के परिसर से दो लड़कियों को मुक्त कराने संबंधी याचिका पर कार्यवाही शुक्रवार को बंद कर दी। एक व्यक्ति ने कोयंबटूर में आध्यात्मिक नेता जग्गी वासुदेव के फाउंडेशन पर अपनी दो बेटियों को बंधक बनाने का आरोप लगाया था। उसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में दोनों बेटियों को आश्रम से मुक्त कराने की गुहार लगाई थी।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों महिलाएं बालिग हैं। महिलाओं ने कहा है कि वे स्वेच्छा से तथा बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही हैं। पीठ ने यह भी कहा कि उसके तीन अक्तूबर के आदेश के अनुपालन में पुलिस ने उसके समक्ष स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है। पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से उत्पन्न इन कार्यवाहियों के दायरे का विस्तार करना अनावश्यक होगा। शुरू में याचिका मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने तीन अक्टूबर को तमिलनाडु के कोयंबटूर में फाउंडेशन के आश्रम में 39 और 42 वर्षीय दो महिलाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से बंधक बनाकर रखने के मामले की पुलिस जांच पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय के समक्ष दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित करते हुए शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया था कि वह उच्च न्यायालय के उस निर्देश के अनुपालन में कोई और कार्रवाई न करे, जिसमें उसने पुलिस को इन महिलाओं को कथित रूप से अवैध तरीके से बंधक बनाकर रखने के मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया था।
ईशा फाउंडेशन ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। ईशा फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कोयंबटूर पुलिस को निर्देश दिया था कि वह फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी मामलों का विवरण एकत्र करे और आगे के विचार के लिए उन्हें अदालत के समक्ष पेश करे। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया।
जग्गी वासुदेव ने किया सुप्रीम फैसले का स्वागत :
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईशा योग केंद्र के खिलाफ याचिका का निपटारा करने के बाद, आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु ने शुक्रवार को अदालत के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के विशेषाधिकारों का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करना सीखने का समय आ गया है। हम देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय को दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर की गई तुच्छ याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए अपना बहुमूल्य समय बर्बाद करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि ऐसे असंख्य वास्तविक मामले हैं जिन पर न्यायालय को ध्यान देने की आवश्यकता है। समय आ गया है कि हम लोकतंत्र के विशेषाधिकारों का अधिक जिम्मेदारी से उपयोग करना सीखें।
मां मयू और मां मथी ने जताई खुशी :
मामले से जुड़ीं मां मयू और मां मथी सुप्रीम
इस मामले से जुड़ी मां मयू और मां मथी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘हम संन्यासी जीवन जीने के अपने निर्णय के पक्ष में खड़े होने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से बेहद खुश हैं। हमारे जन्मदाता परिवार द्वारा किए गए इस परीक्षण से हमें बहुत पीड़ा हुई है। लेकिन हम ईशा स्वयंसेवकों और सद्गुरु तथा शुभचिंतकों के प्रति आभारी हैं कि वे हमारे साथ खड़े रहे।
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