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जवाहर कला केन्द्र में नाट्य प्रस्तुति ‘सम्राट रंजीत सिंह’ का मंचन किया गया।
जवाहर कला केन्द्र में नाट्य प्रस्तुति ‘सम्राट रंजीत सिंह’ का मंचन किया गया। यह नाटक केन्द्र की ओर से आयोजित 45 दिवसीय आधुनिक रंगमंच एवं गवरी लोक नाट्य शैली आधारित अभिनय व प्रस्तुतिपरक कार्यशाला में तैयार स्वगृही नाट्य प्रस्तुति है। यह शेक्सपियर के ना
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गवरी शैली पर आधारित (लोक नाट्य प्रयोग) प्रस्तुति है जिसका निर्देशन वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान ने किया है।
साहसी और बुद्धिमान रंजीत सिंह कई युद्धों में अपना पराक्रम दिखा चुका है। पड़ोसी राज्य से युद्ध में एक बार फिर रंजीत सिंह के युद्ध कौशल और प्रभावि रणनीति से इंद्रगढ़ को विजय हासिल होती है। वापसी के समय रंजीत सिंह और अन्य सेनापति मित्र अजीत सिंह को तीन डायन मिलती हैं जो रंजीत सिंह के सम्राट बनने की भविष्यवाणी करती है। इस घोषणा से रंजीत सिंह थोड़ विचलित होता है पर मन में राजा बनने की महत्वाकांक्षा जाग उठती है।
वह अपनी पत्नी को भी यह बात बताता है तो वह भी महारानी बनने के सपने बुनने लगती है। राज्य में वापस लौटने पर राजा विक्रमजीत सिंह विजय के लिए रंजीत सिंह को बधाई देता है व उसके घर मेहमान स्वरूप भोजन करने की इच्छा प्रकट करता है।यह सूचना वह अपनी पत्नी को देता है यहीं से नाटक नया मोड़ लेता है। रंजीत सिंह की पत्नी राजा को मारने का षड्यंत्र रचती है। पहले रंजीत सिंह इससे खुद को अलग रखता है लेकिन राजा बनने की लालसा में वह भी अपना विवेक खो बैठता है और राजा की हत्या कर देता है।
नाटक की कहानी इंद्रगढ़ के वफादार सेनापति रंजीत सिंह के इर्द गिर्द घूमती है।
रंजीत सिंह सम्राट बन जाता है लेकिन उसे दूसरी भविष्यवाणी की चिंता सताती है कि आगे अजीत सिंह के पुत्र सम्राट बनेंगे। अब रंजीत सिंह अजीत की भी हत्या करवा देता है। वीर रंजीत सिंह सम्राट बनते ही क्रूरता की हदें पार करने लगता है और हर उस व्यक्ति का मार देता है जिस पर उसे शक होता है। रंजीत सिंह की पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होकर मुत्यु को प्राप्त होती है। अंतत: राजा के दोनों पुत्र पडोसी राजा की मदद से रंजीत सिंह को मारकर इंद्रगढ़ का शासन हासिल करते है।
निर्देशक साबिर खान ने बताया कि हमारी लोकनाट्य शैलियों को उनके मूल तत्वों सहित, आधुनिक रंगमंच के साथ अन्तर्सम्बन्ध स्थापित कर एक प्रदर्शनात्मक ढांचा तैयार कर नाट्य प्रदर्शित करना कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य रहा। इसी उद्देश्य के लिए रंगमंच के तत्वों को मुख्य रूप से समाहित करने वाली गवरी लोक नाट्य शैली को चुना गया।
यह नाटक केन्द्र की ओर से आयोजित 45 दिवसीय आधुनिक रंगमंच एवं गवरी लोक नाट्य शैली आधारित अभिनय व प्रस्तुतिपरक कार्यशाला में तैयार स्वगृही नाट्य प्रस्तुति है।
युवा रंगकर्मियों को उदयपुर से गवरी के विशेषज्ञ अमित गमेती, गणेश लाल व उनकी टीम ने गवरी की उत्पत्ति, इतिहास, सैद्धांतिक व अनुष्ठानात्म्क पक्ष के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। साथ ही, गवरी के मुख्य वाद्द्यंत्र, मांदल, थाली, संगीत व नृत्य तथा अभिनय, मुखौटे, रंगसज्जा, वेशभूषा मंच सामग्री तथा गवरी के प्रदर्शन के के बारे में प्रशिक्षणार्थियों को पढ़ाया।
आधुनिक रंगमंच से सम्बन्धित अभिनय के मूल तत्वों यथा स्पीच एंड मूवमेंट, लाइट्स, नाट्य विश्लेषण, संगीत व नृत्य, भारतीय व पाश्चात्य रंगमंच के संक्षिप्त इतिहास आदि का प्रशिक्षण भी कार्यशाला में दिया गया। साबिर खान ने कहा कि आधुनिक नाटकों में लोक नाट्यों को शामिल करने से न केवल ये कलाएं जीवंत होगी बल्कि कलाकारों को भी अवसर मिलेगा।
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