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कश्मीर ज्ञान, अध्यात्म और दर्शन की भूमि है, लेकिन यहां के मूल लोग बार-बार विस्थापित हुए हैं। सुशील पंडित ने 1339 से 1990 के बीच के विस्थापन पर चर्चा की और बताया कि कश्मीरी पंडितों को उनके पड़ोसियों ने…
अध्यात्म और दर्शन की भूमि है कश्मीर: सुशील पंडित नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। कश्मीर ज्ञान, अध्यात्म और दर्शन की भूमि रही है, लेकिन बार–बार कश्मीर के मूल लोग यहां से विस्थापित हुए हैं।
उक्त बातें इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी में आयोजित सत्यदेव नारायण स्मृति व्याख्यान 2024 के अवसर पर मुख्य वक्ता और कश्मीर के जानकार सुशील पंडित ने कही। व्याख्यान का विषय कश्मीर से निष्कासन का इतिहास था।
सुशील पंडित ने शैव दर्शन, मम्मट, अभिनव गुप्त सहित तमाम विद्वानों के संदर्भ के साथ कश्मीर के गौरवशाली अतीत के बारे बताया। उन्होंने कहा कि केवल एक बार नहीं बल्कि सात बार कश्मीर के लोग अपनी मूल जगहों को हिंसा, आत्मसम्मान और बर्बरता के कारण छोड़े। उन्होंने 1339 से 1990 के बीच के विस्थापन पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि सबसे दुखद बात यह है कि 1990 में जब कश्मीर में घटना हुई तो यहां एक चुनी हुई सरकार थी, संविधान था, न्यायालय था। लेकिन आजतक इस मामले में किसी को कोई सजा नहीं दी गई।
पड़ोसियों ने कश्मीरी पंडितो को लूटा
सुशील पंडित ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को किसी बाहरी ने नहीं लूटा, उनके घरों पर कब्जा नहीं किया बल्कि उनके पड़ोसियों ने ऐसा किया। उन्होंने कहा की कश्मीरी पंडित नाम हमने स्वयं को नहीं दिया बल्कि जो पंडित कश्मीर छोड़ कर उत्तर भारत मे आये उनको स्थानीय लोगों ने कश्मीरी पंडित कहना शुरू किया।
आक्रांताओं ने संस्कृति को रौंदा
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जेएनयू में संस्कृत के प्रधानाध्यापक प्रोफेसर रजनीश मिश्र ने कहा कि कश्मीर की संस्कृति ज्ञान की संस्कृति है। वहां शास्त्र और साधना की संस्कृति है। कश्मीर में सदियों की परंपरा है। लेकिन आक्रांता आकर उसे रौंद गए। उन्होंने कहा कश्मीर हमारे विश्वविद्यालय और शिक्षण जगत से भी निष्काषित है। हमे इसे मुख्यधारा में लाना होगा। 70 से अधिक संस्कृत के विद्वान कश्मीर से हैं। डीयू के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक प्रो. इंद्रमोदन कपाही ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन सर विद्या सिन्हा ने किया।
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