[ad_1]
निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को झारखंड में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में मतदान का ऐलान किया। इस रिपोर्ट में जानें झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन और NDA के सामने क्या चुनौतियां?
निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। झारखंड में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा जबकि काउंटिंग 23 नवंबर को होगी। इस चुनाव में भाजपा सूबे में फिर से सरकार बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, जबकि कांग्रेस समर्थित झामुमो की अगुवाई वाला गठबंधन सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के लिए मंईया सम्मान योजना और अबुआ आवास योजना जैसी कल्याणकारी पहलकदियों को प्रचारित कर रहा है। इस रिपोर्ट में जानें दोनों गठबंधनों की ताकत और कमजारियां…
BJP ने आक्रामक प्रचार को बनाया हथियार
इस चुनाव में भाजपा आक्रामक प्रचार अभियान चला रही है। भाजपा नेता राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं। भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के नेताओं के यहां ईडी और सीबीआई के छापों का हवाला दिया जा रहा है। भाजपा सूबे में कानून-व्यवस्था के मुद्दे, महिलाओं के खिलाफ अपराध और डेमोग्राफी में बदलाव को हथियार बनाया है। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाकर सीधे सीएम हेमंत सोरेन को निशाना बना रही है।
विकासकार्यों को भी BJP ने बनाया मुद्दा
भाजपा सूबे में विकास के मुद्दे को भी जोरशोर से उठा रही है। भाजपा राज्य में हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का अनावरण करके अपने विकास के मुद्दे को भुनाना चाहती है। बता दें कि भाजपा ने 2014 के चुनाव में 31.8 फीसदी वोट के साथ 37 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 में ये घटकर 25 रह गईं। इस बार उसने अपनी पुरानी सहयोगी आजसू पार्टी के साथ गठबंधन किया है। 2019 में 25 सीट के बावजूद BJP को 33.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि झामुमो के खाते में 19 प्रतिशत वोट के साथ 30 सीटें आई थीं।
आदिवासी नेताओं को लिया साथ
हाल ही में झामुमो के कद्दावर नेता और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हो गए। आदिवासी पट्टी में उनकी मजबूत पकड़ बताई जाती है। सिंहभूम (एसटी) निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की एकमात्र सांसद गीता कोड़ा ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। इनके अलावा, जामा विधायक सीता सोरेन, बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक अमित कुमार यादव और झारखंड में राकांपा के एकमात्र विधायक कमलेश सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए। इन नेताओं के आने से भाजपा के हौसले बुलंद हैं।
BJP के सामने चुनौतियां और अवसर
आमतौर पर चुनावों में पार्टियों को आंतरिक कलह की चुनौती का सामना करना पड़ता है। भाजपा के सामने भी यह चुनौती रहेगी। यही नहीं टिकट से वचिंत नेताओं की बगावत को थामना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। झामुमो की अगुवाई वाला गठबंधन सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर विक्टिम कार्ड खेल सकता है। हालांकि इन सबके बावजूद भ्रष्टाचार और घुसपैठ के मुद्दों पर सत्ता विरोधी लहर भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकती है।
झामुमो ने इन मुद्दों को बनाया हथियार
झामुमो की अगुवाई वाले सत्ता पक्ष ने इस चुनाव में झारखंड मंईया सम्मान कार्यक्रम, अबुआ आवास योजना, आपकी सरकार-आपके द्वार, सार्वभौमिक पेंशन, खाद्य सुरक्षा समेत अन्य कल्याणकारी योजनाओं को अपना हथियार बनाया है। वह विक्टिम कार्ड के तौर पर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के मुद्दे के जरिए आदिवासी भावनाओं को जगाने में जुटा है। सोरेन सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर जनगणना में सरना को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने की मांग की है। अलग सरना धार्मिक संहिता की मान्यता के लिए केंद्र के हस्तक्षेप की मांग की है।
झामुमो के सामने चुनौतियां
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, विधायक सीता सोरेन, राज्य में कांग्रेस की एकमात्र सांसद गीता कोड़ा और कुछ अन्य प्रमुख नेताओं का भाजपा में जाना। INDIA गठबंधन के सदस्यों के बीच अंदरूनी खींचतान को थामना भी एक बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि अभी तक गठबंधन के साझेदारों के बीच सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। झामुमो के सामने एंटी इनकंबेंसी से पार पाने की भी चुनौती है। हालांकि पति की गिरफ्तारी के बाद कल्पना सोरेन शक्तिशाली नेता के रूप में उभरी हैं। यही नहीं 28 आदिवासी सीटें हैं जहां उसका दबदबा रहा है।
[ad_2]
Source link