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एक से बढ़कर एक वादे और बड़े-बड़े दावों के बीच जनता को तय करना है कि उसे किस पर ज्यादा भरोसा है। झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं जिनमें 28 आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं।
झारखंड की जनता के सामने पांच साल बाद फिर वह मौका आ रहा है जब वह 81 विधायक और सरकार का चुनाव करेंगे। मंगलवार को नई दिल्ली में चुनाव आयोग चुनाव तारीखों का ऐलान करने जा रहा है। चुनावी बिगुल बजने के साथ ही राज्य में ‘INDIA’ बना ‘NDA’ गठबंधन के बीच जंग तेज हो जाएगी, जिसकी शुरुआत दोनों तरफ से पहले ही हो चुकी है। एक से बढ़कर एक वादे और बड़े-बड़े दावों के बीच जनता को तय करना है कि उसे किस पर ज्यादा भरोसा है। आदिवासी बहुल राज्य में मुद्दों की कमी नहीं, लेकिन कम से कम 4 ऐसे बड़े फैक्टर हैं, जिनसे चुनाव का नतीजा तय होने जा रहा है।
कौन देगा ज्यादा ‘रेवड़ी’, महिला वोटर्स पर नजर
चुनाव का नतीजा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि जनता किसके वादे पर कितना भरोसा करती है। भाजपा की अगुआई में एनडीए और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से एक से बढ़कर एक लुभावने वादे किए जा रहे हैं। इनमें से प्रमुख है महिलाओं के लिए मासिक आर्थिक मदद। झामुमो सरकार ने इसी साल मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना की शुरुआत की। इसके तहत महिलाओं को 1000 रुपए मासिक सहायता दी जा रही थी। भाजपा ने एनडीए सरकार बनने पर 2100 रुपए मासिक देने का वादा किया तो अब झामुमो ने आगे निकलने की होड़ में 2500 रुपए देने का ऐलान कर दिया है। हेमंत सोरेन सरकार ने एक दिन पहले ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट से पास कर दिया है। महिला वोटर्स को इस चुनाव में अहम फैक्टर माना जा रहा है।
आदिवासी बनाम बांग्लादेशी का बड़ा मुद्दा
भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड खासकर संथाल परगना में कथित तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2 अक्टूबर को हजारीबाग की रैली में इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया। उन्होंने कहा कि झारखंड में इस बार रोटी, बेटी और माटी बचाने की लड़ाई है। उन्होंने मंच से कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासियों की संख्या कम हो रही है। भाजपा के प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को आक्रामकता के साथ उठाया है और झारखंड भाजपा ने इस मुद्दे को आदिवासियों तक पहुंचाने के लिए गांव-गांव, गली-गली का दौरा किया है।
भ्रष्टाचार बनाम विक्टिम कार्ड
झारखंड का चुनावी नतीजा इस बात पर भी निर्भर करेगा कि जनता भाजपा की ओर से मौजूदा सरकार पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर विश्वास करती है या फिर हेमंत सोरेन के विक्टिम कार्ड पर। एक तरफ जहां भाजपा झामुमो और कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है तो दूसरी तरफ जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन विक्टिम कार्ड खेलने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। झारखंड में पिछले पांच सालों में लगातार ईडी और सीबीआई की छापेमारी चलती रही, जिसमें कई बार नोटों के ढेर मिल चुके हैं।
आदिवासी वोटर्स किसके साथ?
झारखंड में सत्ता की असली चाबी आदिवासियों की हाथ में मानी जाती है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सबसे बड़ा झटका आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर ही लगा था। पार्टी 28 आरक्षित सीटों में से 26 पर चुनाव हार गई थी। माना गया था कि प्रमुख आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी के अलग पार्टी बनाकर लड़ने से भाजपा को नुकसान हुआ। हालांकि, बाद में भाजपा में उनकी वापसी हो गई और इस समय वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। हालांकि, हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भी आदिवासी सीटों पर भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं रही। आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने जो कार्ड चला था उसकी सबसे बड़ी परीक्षा भी झारखंड में ही होगी। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन आदिवासी और मूलवासी के मुद्दे को पूरे जोरशोर से उठा रहे हैं।
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