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अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर को 82 साल के हो गए. करीब दो माह बाद सोनिया गांधी भी 78 वर्ष की हो जाएंगी. दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक लंबी और सफल पारी खेली है. बच्चन और गांधी परिवार ही नहीं, सोनिया व अमिताभ के बीच भी रिश्ते अनूठे रहे हैं- दोस्त, भाई-बहन से लेकर एक-दूसरे से रूठी सेलेब्रिटीज तक. भारत में जिन दो परिवारों की दोस्ती और कालांतर में उनमें पड़ी खटास का ज़िक्र अक्सर किया जाता है, वे गांधी और बच्चन परिवार हैं.
कैसे हुई दोस्ती की शुरुआत
हालांकि आज दोनों ही परिवारों की युवा पीढ़ियां अतीत की दोस्ती और खटास से कहीं आगे निकल चुकी हैं और अपने-अपने कामों व ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो चुकी हैं. फिर भी इतिहास इन दोनों परिवारों के मध्य के विशिष्ट रिश्ते को भुला नहीं सकता, खासकर अमिताभ और सोनिया के बीच के नाते को. अमिताभ के पिता दिवंगत डॉ. हरिवंश राय बच्चन के मुताबिक गांधी-बच्चन परिवार के बीच रिश्तों की बुनियाद इलाहाबाद में नेहरू-गांधी परिवार के पुश्तैनी घर ‘आनंद भवन’ से पड़ी थी.
तब सरोजिनी नायडू ने हरिवंश राय और उनकी पत्नी तेजी को आनंद भवन में आमंत्रित किया था. हरिवंश राय ने इसका ज़िक्र अपनी आत्मकथा में भी किया है, ‘यहीं पर तेजी और इंदिरा के बीच प्रगाढ़ तथा आजीवन मित्रता की शुरुआत हुई.’ इस दोस्ती के जो बीज पड़े, उसकी उपज की ख़ुशबू अगली पीढ़ी तक आती रही. जब राजीव और संजय अध्ययन के लिए दून स्कूल तथा अजिताभ और अमिताभ नैनीताल गए, तब बच्चन बंधुओं का गांधी भाइयों के साथ अच्छा याराना हो गया.
इनकी छुट्टियां लगभग एक ही समय पड़ती थीं. उस दौरान ये साथ ही घूमते-फिरते और राष्ट्रपति भवन के स्वीमिंग पूल में तैरने जाते. बाद में राजीव कैम्ब्रिज चले गए. वे जब भी वहां से लौटते तो अमिताभ से ज़रूर मिलते और एक-दूसरे को अपने अनुभव साझा करते.
सोनिया के पहले दोस्त थे अमिताभ
राजीव से प्यार होने के बाद जब शादी करने की बारी आई तो सोनिया 13 जनवरी 1968 को भारत आई थीं. इसके बारह दिन बाद सोनिया और राजीव की एक सादे समारोह में सगाई हो गई. लेकिन शादी में अभी वक़्त था और इसलिए इंदिरा नहीं चाहती थीं कि वह नेहरू-गांधी परिवार की भावी बहू के रूप में अभी उनके साथ रहे. तब इंदिरा के सहयोगी तथा विश्वासपात्र टी.एन. कौल और पारिवारिक दोस्त मोहम्मद यूनुस ने सुझाव दिया कि सोनिया को शादी होने तक तेजी बच्चन के यहां रहना चाहिए. इस सुझाव पर राजीव, संजय, अमिताभ और अजिताभ ने तुरंत मोहर लगा दी. अमिताभ जो अभी सुपरस्टार की श्रेणी में शामिल नहीं हुए थे, भारत में सोनिया के पहले दोस्त बने.
सोनिया की शादी में मेहंदी जैसी कुछ रस्में बच्चन परिवार के घर पर ही आयोजित की गई थीं. हरिवंश राय बच्चन और तेजी ने गाने गाए थे. अमिताभ ने भी अपने पिता द्वारा रचित कुछ हास्य गीत गुनगुनाए थे। शादी के लिए सोनिया की मां पाओला इटली से आई थीं, लेकिन हिंदू विवाह समारोह की रस्मों में मां की भूमिका तेजी ने ही निभाई थीं.
सोनिया ने साल 1985 में ‘धर्मयुग’ को जो साक्षात्कार दिया था, वह गांधी और बच्चन परिवार के आत्मीय रिश्तों के बारे में बहुत कुछ कह जाता है. उन्होंने कहा था: ‘मम्मी (इंदिरा) ने मुझे बच्चन परिवार के साथ रहने के लिए कहा था, ताकि मैं भारतीय रीति-रिवाजों और संस्कृति को काफ़ी क़रीब से देख-सीख सकूं. मुझे उस परिवार से काफ़ी कुछ सीखने को मिला. तेजी आंटी मेरी तीसरी मां हैं… मेरी पहली मां इटली में हैं, दूसरी मां मेरी सास इंदिरा गांधी थीं और तीसरी तेजी आंटी हैं. अमित और बंटी (अजिताभ) मेरे भाई हैं..’
अमिताभ के स्टार बनने के बाद राजीव उनसे मिलने अक्सर फ़िल्मों के सेट्स पर चले जाते थे और उनके शॉट्स पूरे होने का बड़े धैर्य के साथ इंतज़ार करते थे.
बक़ौल अमिताभ, ‘उनका स्वभाव ऐसा था कि उन्होंने कभी भी अपने नाम या पारिवारिक संपर्कों का दुरुपयोग नहीं किया. बल्कि ज़्यादातर मौक़ों पर तो वे अपने सरनेम का इस डर से ख़ुलासा भी नहीं करते थे कि इससे उनके और आम लोगों के बीच अनावश्यक दूरी पैदा हो जाएगी..’
फिर कैसे बिगड़े संबंध?
तो दशकों के इतने क़रीबी संबंधों के बाद आख़िर दोनों परिवारों के बीच खटास कहां से आ गई? पारिवारिक मित्र और सहयोगी इसके के लिए राजनीति को दोषी ठहराते हैं. उनके मुताबिक पहला झटका तब लगा था, जब राजीव ने अपनी सियासी पारी शुरू की और इंदिरा गांधी के निधन के बाद अमिताभ से मदद करने का ‘आग्रह’ किया. हालांकि आग़ाज़ दोनों ने ही शानदार किया था. अमिताभ ने इलाहाबाद से दिग्गज राजनेता हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया था और राजीव कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के नायक बने थे. लेकिन इसके बाद से राजीव बोफोर्स जैसे विवादों में उलझते चले गए और अमिताभ का नाम भी कई घपलों में आने लगा. आरोप-प्रत्यारोप, चारित्रिक हनन के प्रयास और मानहानि के मुक़दमों से अमिताभ इतने तंग आ गए थे कि उन्होंने राजनीति से तौबा करने का फ़ैसला कर लिया.
राजीव और सोनिया नहीं चाहते थे कि अमिताभ इस मौक़े पर राजनीति छोड़ दें, मगर अमिताभ अपने फ़ैसले पर अड़े रहे. वैसे अमिताभ के राजनीति छोड़ने के बाद भी दोनों परिवारों के बीच संबंधों में पर्याप्त आत्मीयता बनी रही. राहुल और प्रियंका अमिताभ को ‘मामून’ (अवधी में मामा) ही कहते थे. साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के समय भी अमिताभ उन कुछ चुनिंदा पारिवारिक मित्रों में शामिल थे, जिन पर हर बड़े फ़ैसले के लिए सोनिया और उनके बच्चों ने भरोसा किया.
सोनिया का फैसला अमिताभ को नहीं था पसंद
कुल मिलाकर 1997 तक सोनिया और अमिताभ के रिश्ते पटरी पर रहे. लेकिन इसी साल के अंत में यानी दिसंबर 1997 में गांधी परिवार ने फ़ैसला किया कि सोनिया क्रिसमस के आसपास राजनीति में शामिल होने की घोषणा करेंगी, ताकि वे आगामी आम चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकें. माना जाता है कि इसी मोड़ पर सोनिया की अमिताभ बच्चन से अनबन हुई थी और इसने अंतत: दोनों परिवारों के बीच के रिश्ते पर हमेशा के लिए मिट्टी डाल दी. दरअसल, अमिताभ सोनिया के राजनीति में उतरने के सख़्त ख़िलाफ़ थे. उनका मानना था कि कांग्रेस के नेता गिद्धों की तरह हैं, जो केवल अपने राजनीतिक स्वार्थों की ख़ातिर नेहरू-गांधी परिवार की आम लाेगों में पैठी प्रतिष्ठा को भुनाना चाहते हैं.
सोनिया के लिए इस रिश्ते का टूटना विशेष रूप से पीड़ादायक रहा, क्योंकि इसका मतलब यह भी था कि उन्होंने भारत में बनाए अपने पहले दोस्त को खो दिया था. हालांकि दोनों परिवारों व उनके चाहने वालों के लिए सुकून की बात यह रही कि अमिताभ और सोनिया, दोनों ने ही इतनी सौम्यता बनाए रखी कि एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कभी कोई सीधी टिप्पणी नहीं की या अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाए।
रशीद किदवई
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. ‘सोनिया: ए बायोग्राफी’, ‘बैलट: टेन एपिसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी’, ‘नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’, ‘द हाउस ऑफ़ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रीग’ और ‘भारत के प्रधानमंत्री’ उनकी चर्चित किताबें हैं. रशीद किदवई से – rasheedkidwai@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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